Khursheed Bano Death Anniversary: हिंदी सिनेमा की बेहतरीन अदाकारा थीं खुर्शीद बानो, जानें क्यों चली गई थीं पाकिस्तान?

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हिंदी सिनेमा की मशहूर गायिका और अभिनेत्री खुर्शीद बानो इंडस्ट्री की जानी-मानी कलाकार हैं। पाकिस्तान जाने से पहले उनका करियर 1930 और 1940 के दशक में काफी चला। साल 1931 में आई फिल्म लैला मजनू में नजर आईं खुर्शीद बानो ने भारत में तीस से अधिक फिल्मों में काम किया। खुर्शीद बानो को साल 1943 में आई अभिनेता-गायक केएल सहगल के साथ उनकी फिल्म तानसेन के लिए जाना जाता है। खुर्शीद बानो का जन्म कराची में हुआ था। शुरुआत में उनका नाम इरशाद बेगम था, लेकिन बाद में उन्हें खुर्शीद बानो के नाम से जाना गया। खुर्शीद बानो ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत साल 1931 में आई मूक फिल्म आई फॉर ए आई से की। इसके बाद वह लैला मजनू (1931), मुफ़लिस आशिक (1932), नकली डॉक्टर (1933), बॉम्ब शेल और मिर्ज़ा साहिबान (1935), किमियागर (1936), ईमान फरोश (1937), मधुर मिलन ( 1938) और सितारा (1939) जैसी फिल्मों में भी नजर आईं। अभिनेत्री के जीवन में बड़ा मोड़ तब आया जब वह के.एल सहगल और मोतीलाल जैसे अभिनेताओं के साथ रंजीत मूवीटोन फिल्मों में अभिनय करने के लिए बॉम्बे चली गईं । साल 1942 में आई चतुर्भुज दोशी निर्देशित भक्त सूरदास और उसके बाद 1943 में आई तानसेन में प्रसिद्ध गायक-अभिनेता केएल सहगल के साथ बड़े पर्दे पर नजर आने के बाद उन्हें काफी लोकप्रियता मिली। वहीं, खुर्शीद बानो के गानों की बात करें तो “बरसो रे”, “घटा घन घोर घोर”, “दुखिया जियारा”, “अब राजा भाई मोरे बलम”, और केएल सहगल के साथ एक युगल गीत, “मोरे बाला पुन के साथे चेला” जैसे गाने उनके मशहूर गानों में शामिल है। भारत में उनकी आखिरी फिल्म पपीहा रे (1948) थी, जिसने भारतीय फिल्म उद्योग में गहरी छाप छोड़ी। आजादी के बाद साल 1948 में खुर्शीद अपने पति के साथ पाकिस्तान चली गईं और कराची सिंध में बस गईं। खुर्शीद बानो ने लाला याकूब से शादी की, जो एक छोटे अभिनेता थे और भाटी गेट समूह, लाहौर, पाकिस्तान के सदस्य थे। हालांकि, दोनों की यह शादी ज्यादा समय तक नहीं चली और 1956 में उन्होंने तलाक ले लिया। इसके बाद खुर्शीद बानो ने उसी साल यूसुफ भाई मियां से शादी की, जो शिपिंग व्यवसाय में थे। साल 1956 में उनकी आखिरी फिल्म के बाद फिल्मों में काम करना बंद कर दिया था। अपने 87वें जन्मदिन के चार दिन बाद 18 अप्रैल 2001 को पाकिस्तान के कराची में उनका निधन हो गया।

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