मुरादाबाद का नामचीन स्कूल शायद ही भविष्य में मुख्यमंत्री योगी के आदेशों पर अमल करे

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हुकूमत एक्सप्रेस
मुरादाबाद। प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार ने कैबिनेट बैठक में निजी स्कूलों में मनमानी फीस पर नियमावली बनाकर प्रस्ताव पारित कर दिया। लोग इसकी खुले दिल से प्रशंसा कर रहे है। मगर साथ ही यह भी मंशा है कि मुख्यमंत्री के इस सराहनीय कदम के लिए अधिकारी कितनी सख्ती निजी स्कूलों के खिलाफ दिखा पाते है। इसके तहत निजी स्कूलों में काॅपी किताबें लेने के लिए किसी अभिभावक को किसी विशेष दुकान से लेने के लिए स्कूल प्रबंधन बाध्य नहीं कर सकता। लेकिन अधिकतर निजी स्कूलों में स्कूल प्रबंधन ने ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि जो पुस्तकें/ काॅपियां उनके विद्यालय में चलती हैं वह केवल एक विशेष दुकान पर ही मिलती है इसका मतलब साफ है कि अभिभावक को अप्रत्यक्ष रूप से उसी दुकान से पुस्तकें आदि लेने के लिए बाध्यक कर दिया जाता है जहां उस स्कूल का संबंध होता है। कांठ रोड स्थित अगवानपुर रेलवे क्रासिंग के निकट एक निजी स्कूल में ऐसा ही हो रहा है कि वहां अभिभावकों को अप्रत्यक्ष रूप से एक विशेष दुकान से ही पुस्तकें आदि लेने के लिए बाध्य कर दिया जाता है क्योंकि जो पुस्कतें वह अपने स्कूल में चलाते हैं वह अन्य किसी पुस्तक विक्रेता के यहां मिलेंगी ही नहीं।
इस निजी स्कूल में जो महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध स्थान जो भगवान के नाम पर बना हुआ है और जिन्हें लोग पूजते हैं के नाम पर चल रहा है। इस स्कूल में फीस का आलम यह है कि सन् 2012 में एलकेजी की ट्यूशन फीस 750 रूपये प्रति माह और स्मार्ट क्लास की फीस 300 रूपये प्रतिमाह थी तथा 6-7 किलो मीटर की दूरी पर एक बच्चे की ट्रांसपोर्टेशन फीस 750 रूपये प्रतिमाह थी। वही बच्चा जब एलकेजी से चैथी क्लास में आ गया तो उसकी एक महीने की फीस 3933 रूपये हो गयी और ट्रांसपोर्टेशन की फीस 6-7 किलो मीटर की दूरी पर बढ़कर 1300 रूपये प्रतिमाह हो गयी यानि फीस में पांच गुना की बढ़ोत्तरी पांच साल में हो गयी। वहीं ट्रांसपोर्टेशन की बढ़ोत्तरी दो गुनी हो गयी। ऐसे निजी स्कूलों पर क्या माननीय मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली सरकार की कैबिनेट में लिये गये निर्णय का कोई असर होगा। दिलचस्प बात यह है कि यह निजी स्कूल जब बच्चों को कहीं भी घुुमाने ले जाते हैं तो बच्चे से इतना अधिक पैसा लेते हैं कि अभिभावक नहीं चाहते कि उनका बच्चा स्कूल के माध्यम से घूमने जायें लेकिन बच्चों की जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ता है और बच्चों को स्कूल के माध्यम से घूमने के लिए मनमाने पैसो पर ही भेजना पड़ता है।
अभिभावकों का कहना है कि अब देखना यह है कि जनपद के आला अफसर मुख्यमंत्री के इस निर्णय पर कहां तक खरे उतरते हैं और निजी स्कूलों के खिलाफ क्या कार्यवाही करते है या फिर जैसा कि अब तक चलता आया है कि मुख्यमंत्री के आदेशों को अधिकारी हवा में उड़ाते रहते हैं। इस कैबिनेट मीटिंग में पारित किये गये प्रस्ताव का भी यही हश्र होगा।

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