उच्च हिमालय में फंसे दस ग्रामीण जान हथेली में डाल धारचूला पहुंचे

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धारचूला। पलायन को ठेंगा दिखाने के लिए शीतकाल भी अपने उच्च हिमालयी गांवों में व्यतीत करने का संकल्प लिए ग्रामीणों को भारी हिमपात के चलते धारचूला आना पड़ा। चीन सीमा पर अवैतनिक प्रहरी कहे जाने वाले दस लोग 32 किमी तक बर्फ में एक दूसरे का हाथ थाम कर धारचूला पहुंचे हैं।
कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग पर पडने वाले उच्च हिमालयी गांवों बूंदी, गब्र्याग, गुंजी, नाबी, रौंगकोंग और नललच्यू में कुछ ग्रामीण अब पूरा साल उच्च हिमालयी गांवों में व्यतीत करने लगे हैं। जिसमें बुजुर्ग से लेकर महिलाएं और युवा होते हैं। युवा बुर्जुगों का ध्यान रखने और आपात काल होने पर उन्हें बर्फ से नीचे लाने के लिए गांवों में डटे रहते हैं। शीतकाल में जहां गुंजी तक ही आइटीबीपी की चैकियां रहती हैं वहा इन गांवों में भी प्रति गांव एक दर्जन से अधिक लोग चीन सीमा से लगे अपने गांवों में जमे रहते हैं। जिसके चलते इन अवैतनिक सीमा प्रहरी माना जाता है।
इस बार भी काफी संख्या में ग्रामीण अपने मूल उच्च हिमालयी गांवों में ही डटे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि सीमा से लगे गांवों से पलायन नहीं हो इसके लिए ग्रामीणों ने यह संकल्प लिया है। इधर भारी हिमपात के चलते अब इन गांवों में रह पाना मुश्किल हो चुका है। जिसके चलते कुछ ग्रामीण कई किमी बर्फ में चल कर धारचूला की तरफ आ रहे है। 14 दिसंबर तक हुए भारी हिमपात के बाद इस वर्ष के मौसम को देखते हुए कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग में दस हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित गब्र्यांग गांव के दस लोग धारचूला लौट आए हैं।
धारचूला लौटे दस ग्रामीणों में पूर्व प्रधान पुष्पा देवी, रोमा देवी, खंबा देवी ने बताया कि उन्हें 32 किमी तीन से चार फीट तक जमी बर्फ में चलना पड़ा। तीन दिन में 32 किमी का सफर तय करने के बाद जब वह नजंग मोटर रोड पहुंचे तब जाकर बर्फ से छुटकारा मिला। उन्होंने बताया कि कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग पर भारी हिमपात हुआ है। भारी हिमपात के चलते पेयजल लाइन और स्रोत सब बर्फ से ढक चुके हैं। कहा बाद में जब बर्फ कम हो जाएगी सीमा के अवैतनिक प्रहरी फिर से गांव जाने को तैयार हैं।

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