संस्कृत देववाणी, हर काल व समय में इसकी प्रासंगिकता

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हरिद्वार। उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. सुनील जोशी ने कहा कि संस्कृत देववाणी है। यह हर काल और समय में प्रासंगिक है। इसके प्रचार प्रसार के लिए सभी को अपने दायित्व को निभाना होगा।
उत्तराखंड संस्कृत अकादमी की ओर से आयोजित राज्य स्तरीय संस्कृत छात्र प्रतियोगिता की शुरुआत मुख्य अतिथि उत्तराखंड आयुर्वेद विवि के कुलपति प्रो. सुनील जोशी और अति विशिष्ट अतिथि गुरुकुल कांगड़ी विवि के प्रो. रूप किशोर शास्त्री ने किया। प्रो. सुनील जोशी ने कहा प्रतियोगिता में हार या जीत से किसी की सफलता व असफलता का आकलन नहीं किया जा सकता। अनुशासित जीवन में इंद्रियों पर जीत ही वास्तविक जीत है। आदर्श जीवन, उच्च आदर्शों की प्राप्ति व आचरण की परिकल्पना संस्कृत वांग्डमय में ही मिलती है। इसलिए हर व्यक्ति को संस्कृत वांग्डमय का अध्ययन व स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए। अति विशिष्ट अतिथि गुरुकुल कांगड़ी विवि के कुलपति प्रो. रूप किशोर शास्त्री ने कहा कि देश में संस्कृत के कई संस्थान होने के बाद भी इसके प्रति घटती संख्या चिता का विषय है। इसके प्रति समाज को जागृत होने की आवश्यकता है। विशिष्ट अतिथि संस्कृत भारती के क्षेत्रीय संगठन मंत्री प्रताप सिंह ने कहा सकारात्मक मन से की जाने वाली प्रतिस्पर्धा का परिणाम सकारात्मक ही आता है। अध्यक्षता करते हुए अकादमी के उपाध्यक्ष प्रो. प्रेमचंद शास्त्री ने कहा कि संस्कृत के उत्थान के लिए सभी संस्कृत वालों को मिलकर प्रयास करना चाहिए। अकादमी के सचिव गिरधर सिंह भाकुनी ने कहा संस्कृत प्रतियोगिताओं के माध्यम से संस्कृत का वातावरण बना रहता है। प्रतियोगिता के राज्य संयोजक व अकादमी के शोध अधिकारी डॉ. हरिश्चंद्र गुरुरानी के निगरानी में पहले दिन कनिष्ठ और वरिष्ठ वर्ग में संस्कृत समूह नृत्य, संस्कृत आशु भाषण, संस्कृत वाद विवाद, संस्कृत नाटक आदि प्रतियोगिता कराई गई। उन्होंने कहा कि सभी प्रतियोगिताओं के परिणाम की घोषणा बुधवार को पुरस्कार वितरण के साथ किया जाएगा। इस अवसर पर डॉ. ओमप्रकाश भट्ट, डॉ. अजीत पंवार, डॉ. नवीन पंत, डॉ. भारत नंदन चैबे, डॉ. प्रकाश पंत, डॉ. दीपक कुमार आदि लोग मौजूद रहे।

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