राज्यपाल ने भारतीय वन सेवा के प्रक्षिशु अधिकारियों के दीक्षांत समारोह में प्रतिभाग किया

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देहरादून-राज्यपाल श्रीमती बेबी रानी मौर्य ने मंगलवार को वन अनुसंधान संस्थान देहरादून में इन्दिरा गाॅंधी राष्ट्रीय वन अकादमी के भारतीय वन सेवा अधिकारियों और भूटान के प्रशिक्षुओं हेतु आयोजित 2017-19 बैच के दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि प्रतिभाग किया। कुल 64 भारतीय वन सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों तथा 2 भूटान वन सेवा के प्रशिक्षुओं ने वन सेवा का प्रशिक्षण कार्यक्रम सफलतापूर्वक पूरा किया हैं। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम दिसम्बर 2017 में आरम्भ हुआ था।  राज्यपाल ने सफलतापूर्वक प्रशिक्षण पूर्ण करने वाले सभी अधिकारियों को इंदिरा गांॅंधी राष्ट्रीय वन अकादमी के एसोसिएट डिप्लोमा से सम्मानित किया तथा विभिन्न पुरस्कार वितरित किए।  राज्यपाल ने युवा अधिकारियों से अपेक्षा की है कि वह महिलाओं एवं ग्रामीण समुदायों की आवाज को हमेशा सुनें, ताकि ग्रामीण समुदाय का भार कम हो और रोजगार के अवसरों में वृद्धि होनी चाहिए, जिससे उन्हें आजीविका में मदद मिल सके।
वन सेवा को प्रकृति की सेवा के माध्यम से मानवजाति की सेवा बताते हुए राज्यपाल श्रीमती बेबी रानी मौर्य ने वन सेवा के अधिकारियों से कहा कि भारत में वनों के वैज्ञानिक प्रबंधन के समृद्ध इतिहास रहा है, जो दुनिया में सबसे पुरानी प्रबंधन व्यवस्थाओं में से एक है। भारतीय वन सेवा के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों, प्राकृतिक वातावरण और पारंपरिक संस्कृति के संरक्षण का महत्वूपर्ण दायित्व भी अधिकारियों पर है।
राज्यपाल ने कहा कि किसी राष्ट्र की शक्ति मुख्य रूप से प्राकृतिक और मानव संसाधनों में निहित होती है। प्राकृतिक संसाधनों की विविधता और प्रचुरता की दृष्टि से भारत दुनिया के शीर्ष बारह देशों में आता है।
राज्यपाल ने कहा कि विशेषकर पहाड़ी राज्यों, जैसे उत्तराखण्ड में लोगों की आजीविका में वनों के विशेष महत्व है। कृषि उत्पादकता में अपेक्षित सुधार करने के लिए हमें वाटरशेड विकास और वर्षा जल संचयन के लिए व्यापक कार्यक्रम बनाने की आवश्यकता है ताकि हर गांव को आर्थिक और पारिस्थितिक सुरक्षा प्राप्त हो सके। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में वनों से प्राप्त होने वाले लाभों को मुख्यधारा में लाने की काफी संभावनाएं हैं। स्थानीय लोगों को इसके लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए कि वे ईको-टूरिज्म के माध्यम से आजीविका अर्जित कर सकें। राज्यपाल ने कहा कि  हाल के समय में वनों मे आग लगने की घटनाओं में काफी वृद्धि हुई है। इस स्थिति में हमें आत्म-निरीक्षण की आवश्यकता है। लापरवाही से लगने वाली आग से वनों को बचाने के लिए हमें एक मानक आॅपरेटिंग प्रोटोकाॅल बनाना और निष्ठापूर्वक लागू करना होगा। वन संसाधनों के प्रबंधन में महिलाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे वनोपज एकत्र करती हैं ताकि जीवन निर्वाह की आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके और ग्रामीण क्षेत्रों में परिवार की आय में वृद्धि हो सके। उत्तराखण्ड की महिलाएं तो वृक्षों को अपने भाइयों की तरह मानती हैं। वनों से सीधे जुड़े होने के कारण वनों के नुकसान से सबसे अधिक प्रभावित भी महिलाएं ही होती हैं। चिपको आंदोलन भी पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक घटना मानी जाती है।
इस अवसर पर महानिदेशक व विशेष सचिव पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिर्वतन मंत्रालय, श्री सिद्धांत दास, अपर महानिदेशक श्री सैबल दासगुप्ता, निदेशक इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी श्री ओमकार सिंह, प्रशिक्षु अधिकारी व उनके अभिभावक उपस्थित थे।

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