क्या इस बार भी पब्लिक स्कूलों की मनमानी के आगे बेबस रहेगा जिला प्रशासन?

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परवेज जैदी गांधी
मुरादाबाद। महानगर के लोगों का आरोप है कि महानगर के पब्लिक स्कूलों पर प्रशासन लगाम लगाने में नाकामयाब रहता है। इस बारे में लोग बताते हैं कि जब हो हल्ला कटता है तब प्रशासन इन पब्लिक स्कूलों के प्रिंसिपलों की मीटिंग बुलाता है और उन्हें निर्देश देता है कि पुस्तकें इत्यादि लेने के लिए किसी विशेष दुकान से बाध्य नहीं किया जाये और फीसों में भी कोई बढ़ोत्तरी नहीं की जाये मगर यह मीटिंग ज्यादातर निरर्थक ही जाती है क्योंकि तब तक प्राइवेट स्कूल अपनी मनमानी कर चुके होते है।
जब योगी सरकार बनी थी तो उन्होनें भी बड़े बड़े दावे किये थे कि फीस के मामले में पब्लिक स्कूलों पर लगाम कसी जायेगी। मगर अब देखना यह है कि शहर के अधिकारी सरकार के मंसूबों को कामयाब बनाते हैं या प्राइवेट स्कूलों की मनमानी इसी तरह बरकरार रहती है और प्रशासन केवल औपचारिकता निभाते हुए सरकार के इरादों को पलीता लगाते हैं। परीक्षायें हो चुकी हैं। स्कूली बच्चे छुट्टी मना रहे हैं उन्हें पुस्तकों की लिस्ट थमा दी गयंी है और वह अपने परीक्षाफल के इंतजार में है। परीक्षाफल मिलते ही हर एक स्कूल अपनी चुनिंदा दुकान बच्चों के अभिभावकों को थमा देगा कि उस दुकान पर यह सब सामान मिलेगा। अब उस चीज के कितने भी रेट हो अभिभावक वहां से कोर्स लेने के लिए मजबूर होगा क्योंकि उसे बच्चे को पढ़ाना है। गत वर्ष में एक ही दुकान ऐसी थी जहां ज्यादातर पब्लिक स्कूलों की पुस्तकें, कापियां मिल रहीं थी और दुकानदार अपनी मनमानी कर रहा था। इतना ही नहीं मांगने पर बिल नहीं देता था तथा अभिभावको से अभद्रता करता था कि सामान लेना है तो लो नहीं तो जाओ। प्रश्न यह है कि अब जब स्कूल खुलने वाले हैं और नया सेशन प्रारम्भ होने वाला है तो क्यों नहीं प्रशासन इन पब्लिक स्कूलों के प्रिंसिपलों की मीटिंग बुलाकर इन सबके बारे में निर्देशित करता। लोगों के मन में भ्रम है कि प्रशासनिक अधिकारियो के बच्चे इन स्कूलों में पढ़ते हैं और उनको सहूलियतें मिलती है इसलिए प्रशासन इस तरफ से मात्र अपनी खाना पूरी करता है। देखना है कि यह भ्रम जो लोगों के मन में पैदा हो गये हैं इन्हें दूर करने के लिए प्रशासन क्या कदम उठाता है? या यह भ्रम सच साबित होंगे? क्योंकि जब बच्चे पुस्तकें खरीद लेंगे और फीस जमा कर चुके होंगे तो मीटिंग बुलाने का कोई औचित्य नहीं क्योंकि तब न ही किसी फीस वापस हो सकती है और न पुस्तकों के विषय में कुछ किया जा सकता है और न ही स्कूल ट्रांसपोर्ट फीस पर लगाम लगाई जा सकेगी।

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