‘साहब’ और ‘नेताजी’: कुछ ऐसा रहा आजम खान और मुलायम सिंह यादव के बनते-बिगड़ते रिश्तों का ताना-बाना

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लखनऊ। उत्तर प्रदेश की सियासत में भले ही किसी भी पार्टी का राज हो, उनका राजनीतिक कद कभी कम नहीं हुआ। एक ओर अमर सिंह, तो दूसरी ओर आजम खान उनके दोनों हाथ की तरह थे। हालांकि यूपी की राजनीति में वो इत्तेफाक से आए थे। मुलायम सिंह के साथ उनकी जोड़ी जम गई और ऐसी जम गई कि संजय दत्त से लेकर अमिताभ बच्चन तक समाजवादी खेमे में नजर आने लगे थे। ऐसे में ‘साहेब’ यानी आजम खान का कद कम होने लगा था। आलम यह था कि एक म्यांन में दो तलवार में से कोई एक ही रह सकती थी। तब मुलायम के लिए यह बड़ा मुश्किल हो गया कि वे क्या करें। लेकिन जो भी अलग हुआ, उनके रिश्ते भी ‘नेताजी’ के साथ कभी नहीं बिगड़े। समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव और पार्टी के संस्थापक सदस्य आजम खान के बीच गाढ़े रिश्तों का अंदाजा इस शेर से लगाया जा सकता है। समाजवादी पार्टी एसपी से रुखसती के एक साल बाद दिसंबर 2010 में आजम की दोबारा पार्टी में वापसी हुई थी। वैसे आपसी बोलचाल में भी दोनों नेताओं की अलग केमिस्ट्री दिखती थी। मुलायम जहां आजम के लिए आजम ‘साहब’ शब्द का इस्तेमाल करते थे, वहीं आजम ने कभी अपने प्यारे नेताजी का नाम नहीं लिया। शेरो-शायरी के शौकीन आजम ने एक बार मुलायम पर शेर कहा था, ‘इस सादगी पर कौन न मर जाए ऐ खुदा, करते हैं कत्ल और हाथ में तलवार तक नहीं।’ हालांकि कभी अमर सिंह तो कभी कल्याण सिंह की वजह से आजम खान के लिए पार्टी में स्थिति असहज हुई लेकिन आजम ने कभी मुलायम के लिए तीखे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया। यहां तक कि जब 2012 के विधानसभा चुनाव के बाद मुलायम ने अपने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री पद के लिए चुना तब भी आजम ने खुलकर उनके फैसले का समर्थन किया।
रामपुर में जब अमर सिंह ने जया प्रदा को आगे किया, उस दौरान आजम की नाराजगी थी लेकिन मुलायम ने कभी आजम के प्रति सख्ती नहीं बरती।

2009 के लोकसभा चुनाव के बाद टूटा रिश्ता
एसपी के 27 साल के इतिहास में सिर्फ एक बार ऐसा हुआ जब आजम और मुलायम के बीच तनातनी देखने को मिली और इसकी परिणति आजम के पार्टी छोड़ने के साथ हुई। यूपी में मुस्लिम वोटरों पर अच्छी पकड़ रखने वाले आजम खान के लिए 2009 का लोकसभा चुनाव एक बुरे सपने की तरह था। विश्लेषकों के मुताबिक इस चुनाव से ठीक पहले अमर सिंह के कहने पर मुलायम ने बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम कल्याण सिंह को अपनी पार्टी में ले लिया। इस चुनाव में आजम ने खुलकर जयाप्रदा का विरोध किया, इसके बावजूद वह रामपुर से चुनाव जीतने में कामयाब रहीं।

अमर बाहर और आजम अंदर
चुनाव के बाद उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में एसपी से निष्कासित कर दिया गया। पार्टी से निकाले जाने के बावजूद आजम की मुलायम के प्रति कभी तल्खी देखने को नहीं मिली। फरवरी 2010 में अमर सिंह को एसपी से निकाल दिया गया। इसी के साथ आजम की घर वापसी का रास्ता साफ हो गया। 4 दिसंबर 2010 को आजम खान की एसपी में वापसी हो गई।

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