अयोध्या राम मंदिर के अलावा ये भी हैं पौराणिक स्थान, दर्शन मात्र से मिट जाता है कष्ट, मिलता है दोगुना फल

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अयोध्या राम मंदिर के अलावा ये भी हैं पौराणिक स्थान, दर्शन मात्र से मिट जाता है कष्ट, मिलता है दोगुना फल
अयोध्या रामलला के दर्शन करने जा रहे हैं तो इन पौराणिक मंदिरों के दर्शन करना न भूलें। आज हम आपको अयोध्या के उन मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां भगवान राम ने अपने बाल्यकाल में अद्भुत लीलाएं की हैं। वहीं कुछ जगहों पर वह पूजा-अर्चना भी किया करते थे। यहां के दर्शन करने से हर कष्ट मिट जाते हैं।
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अब अयोध्या आने वाले दर्शनार्थियों में प्रभु राम के दर्शन का उत्साह देखने को मिल रहा है। अयोध्या नगरी अब राम नाम से आए दिन गूंज उठती दिखाई दे रही है। अयोध्या में आने वाले भक्तजन गाजे-बाजे के साथ रामलला के दर्शन करने आ रहे हैं। अयोध्या में राम मंदिर के अलावा भी प्रभु राम से जुड़े और भी पौराणिक स्थान हैं। अगर आप अयोध्या आते हैं तो राम मंदिर जाने के साथ ही साथ प्रभु राम से जुड़े इन पौराणिक स्थानों पर भी जाएं, जिसके बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं।
हनुमान गढ़ी- अगर आप रामलला के दर्शन करने आ रहे हैं तो सबसे पहले आपको हनुमान गढ़ी जाकर रामलला के दर्शन के लिए बजरंगबली से अनुमति लेनी पड़ेगी। मान्यता है कि हनुमान जी की अनुमति लिए बिना रामलला के दर्शन अधूरे माने जाते हैं। हनुमान गढ़ी से राम मंदिर की दूरी लगभग 500 मीटर है। हनुमान गढ़ी से आप पैदल राम मंदिर तक आराम से जा सकते हैं।
दशरथ महल- अयोध्या में यह स्थान त्रेतायुग के समय से है। यह वही स्थान है जहां अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट महाराज दशरथ का महल हुआ करता था। वर्तमान समय में इस स्थान पर एक महल के रूप में मंदिर है जिसके अंदर एक बड़ा सा आंगन है। यह वही स्थान है, जहां भगवान राम बचपन में अपने चारों भाइयों संग खेला करते थे। यहां श्रद्धालु आज भी दर्शन करने आते हैं, दशरथ महल की राम मंदिर से लगभग 300 मीटर की दूरी है।
दंत धावन कुंड- दंत धावन कुंड वह पौराणिक स्थान है जिसके बारे में मान्यता है कि भगवान राम अपने चारों भाइयों संग यहां प्रातः दातून करने आया करते थे। दातून करने के बाद वह अपना मुख यहां कुंड में धुला करते थे। इस कारण इस स्थान का नाम दंत धावन कुंड पड़ गया। यह कुंड राम मंदिर से लगभग 1 से 1.5 किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है।
बड़ी देवकाली- यहां भगवान राम अपनी कुल देवी मां देवकाली की पूजा किया करते थे। यह स्थान मां काली का सिद्धपीठ मंदिर है, यहां जो भी भक्त सच्चे मन से दर्शन करने आते हैं उनकी हर मुराद देवी मां पूर्ण करती हैं। मंदिर में दुर्गा मां तीन शक्तियों के संगम में समाहित है। मंदिर के मूर्ति विग्रह में आपको मां महालक्ष्मी, मां सरस्वती और मां काली के एक ही मूर्ति में तीनों देवियों के दर्शन होंगे। देवकाली मंदिर में आपको भगवान राम के बाल रूप की प्रतिमा के भी दर्शन होंगे, जिसमे रामलला मां कौशल्या की गोद में लाडले रूप में बैठे हुए हैं। यह दर्शन आपके मन मैं वात्सल्य का भाव ले आएगा। राम मंदिर से बड़ी देवकाली की दूरी लगभग 2 से 3 कीलोमीटर की है।
गुप्तार घाट- अयोध्या के प्रमुख तीर्थ घाटों में से यह सबसे पौराणिक स्थान है। भगवान राम ने अपने जीवन के अंतिम समय में यहीं सरयू मे जल समाधि ली और अपने बैकुंठ लोक पधारे। अयोध्या दर्शन करने वाले लोग यहां आकर अपने जीवन को धन्य करते हैं। स्कंद पुराण में इस स्थान की तुलना स्वर्ग से की है। पुराण में बताया गया है कि यहां दान-पुण्य और दर्शन मात्र से सभी कष्ट भक्तों के मिट जाते हैं और अंत में उन्हें मोक्ष मिलता है। सरयू जल में स्नान करने मात्र से सभी कष्ट पल भर में मिट जाते हैं। राम मंदिर से इस स्थान की दूरी लगभग 6 किलोमीटर है।
सूर्य कुंड- अयोध्या में सूर्य कुंड वह स्थान है जहां प्रभु राम के जन्म के समय सूर्य देव 33 कोटि के देवी देवताओं के साथ पधारे थे। सूर्य देव भगवान राम के बाल रूप को देख कर इतना मोहित हो गए थे कि उन्होंने अपनी सुद-बुद उस समय के लिए खो दी थी और वह अपने रथ समेत पूरे एक महीने के लिए इस जगह रुके रह गए थे। इस बात का वर्णन रामचरितमानस में भी मिलता है। सूर्य देव जब अयोध्या में एक महीने के लिए भगवान राम के जन्म के समय रुके थे। तब यहां 1 महीने तक के लिए रात नहीं हुई थी। सूर्य कुंड अयोध्या के दर्शन नगर में स्थित है और इसकी दूरी अयोध्या से लगभग 5 से 6 कीलोमीटर है।
भरत कुंड- भगवान राम को जब 14 वर्ष के लिए वनवास जाना पड़ा था। तब उनके भाई भरत ने प्रण लिया था कि वह भगवान राम के 14 वर्ष वनवास काल के दौरान इस जगह रह कर घोर तप उनके कुशल मंगल के लिए करेंगे और उनकी चरण पादुका को यहां सिंहासन पर रख कर उसी को आज्ञा रूप मान कर अयोध्या का रजापाट संचालित रखेंगे। 14 वर्षों तक भरत जी ने अयोध्या का राजपाट इसी स्थान से संभाले रखा था। यह स्थान भरत जी की तोपस्थली कहलाता है और यहां एक विशाल कुंड भी है। इस स्थान को भरत कुंड एवं भरत मिलाप स्थान नाम से भी जाना जाता है। भगवान राम का जब 14 वर्ष का वनवास पूर्ण हुआ था तब वह अयोध्या में सबसे पहले यहां आकर अपने भाई भरत से मिले थे। भरत कुंड अयोध्या से लगभग 22 से 25 किलोमीटर की दूरी पर नंदीग्राम में स्थित है।

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