केदारनाथ से जुड़े रहस्य: पांच पीठों में सर्वश्रेष्ठ वैराग्य पीठ है बाबा का ये धाम, ऐसा करने पर अधूरी मानी जाती है पूजा

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मान्यता है कि द्वापर युग में महाभारत युद्ध में गोत्र व गुरु हत्या के पाप से मुक्ति के लिए पांडव भगवान शिव के दर्शन के लिए हिमालय क्षेत्र में पहुंचे थे, लेकिन शिव उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते और केदारनाथ पहुंच गए। यहां भगवान शिव ने भैंस का रूप धारण कर लिया और भूमिगत होने लगे। तभी भीम ने भैंस की पूंछ पकड़ ली, जिस कारण पृष्ठ भाग ऊपर ही रह गया।
इसी पृष्ठ भाग की स्वयंभू लिंग के रूप में केदारनाथ में पूजा-अर्चना होती है। भगवान शिव ने यहां पर पांडवों को दर्शन देकर वंश व गुरु हत्या के पाप से मुक्त किया था। नौंवी सदी में आदिगुरु शंकराचार्य भी इस स्थान से सशरीर स्वर्ग गए थे। केदारनाथ में पिंडदान और तर्पण का विशेष महत्व है, इसलिए केदारनाथ को हिमवत वैराग्य पीठ भी कहा जाता है, जो पांच पीठों में श्रेष्ठ है।
देवभूमि उत्तराखंड के चारधाम में केदारनाथ में पूजा का विशेष महत्व है। यहां भगवान आशुतोष के स्वयंभू लिंग के पृष्ठ भाग की पूजा होती है। जलाभिषेक के साथ ही दूध और घी का लेपन किया जाता है। मान्यता है कि केदारनाथ में भक्त और भगवान का सीधा मिलन होता है। जब तक स्वयंभू लिंग पर घी, चंदन व मक्खन का लेपन नहीं किया जाता, पूजा अधूरी मानी जाती है।

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