जकार्ता। यूक्रेन पर रूसी हमले से गहराते संकट के बीच आसियान देशों में बेचैनी बढ़ रही है। दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के इस संगठन के सदस्य देशों में अंदेशा है कि यूक्रेन युद्ध का दक्षिण चीन सागर विवाद पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। आसियान में कुल दस देश शामिल हैं।
आसियान देशों के अंदर ये अंदेशा गहरा गया है कि अगर यूक्रेन में रूस अपना मकसद पूरा करने में सफल हो गया, तो उससे दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में चीन की आक्रामक गतिविधियों में इजाफा हो सकता है। सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली शेंग लूंग ने एक ट्विट में कहा है- ह्ययूक्रेन में जो रहा है, वह हमारे लिए महत्त्वपूर्ण है। अगर अंतरराष्ट्रीय संबंधों में जिसकी लाठी उसकी भैंस का सिद्धांत चलने लगा, तो दुनिया छोटे देशों के लिए एक खतरनाक जगह बन जाएगी। यही वजह है कि सिंगापुर अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र का पुरजोर समर्थन करता है।
कंबोडिया आसियान का अध्यक्ष
यूक्रेन पर हमला होते ही कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन सेन और मलेशिया के प्रधानमंत्री इस्लाइल साबरी ने इस बारे में बातचीत की थी। कंबोडिया इस समय आसियान का अध्यक्ष है। इस बीच कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन सेन खाड़ी के अखबार स्ट्रेट्स टाइम्स से कहा है- ह्यहालांकि हम दूर हैं और एक छोटा देश हैं। लेकिन इस जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दे हमसे अति संबंधित हैं।ह्ण आसियान के सदस्य देश सैनिक रूप से समजोर समझे जाते हैं।
आसियान के विदेश मंत्रियों ने एक बयान में कहा है- ह्ययूक्रेन में उभरती स्थिति और वहां बढ़ रहे सशस्त्र टकराव से हम बेहद चिंतित हैं। हम संबंधित पक्षों से अधिकतम संयम दिखाने की अपील करते हैं।ह्ण पर्यवेक्षकों ने ध्यान दिलाया है कि आसियान विदेश मंत्रियों के बयान में रूस का नाम लेकर जिक्र नहीं किया गया। रूस ने जब 2014 में क्राइमिया को अपने में मिला लिया था, तब आसियान ने कोई बयान जारी नहीं किया था। उसे देखते हुए यह माना गया है कि इस बार आसियान देश अपनी भावना खुल कर बता रहे हैं।
आठ देश रहे रूस के खिलाफ
पिछले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र महासभा में जब रूस की निंदा के लिए प्रस्ताव लाया गया था, तो आसियान के दस सदस्यों में से आठ ने उसके पक्ष में मतदान किया था। वियतनाम और लाओस मतदान ने खुद को मतदान से अलग रखा था। विशेषज्ञों का कहना है कि आसियान इस देश बार इसलिए चिंतित हैं, क्योंकि उनकी राय में यूक्रेन में जो हुआ, वह दक्षिण चीन सागर की स्थिति से मेल खाता है। उन्हें आशंका है कि दक्षिण चीन सागर में चीन जबरन यथास्थिति को बदलने की कोशिश कर सकता है।
इंडोनेशिया के प्रमुख अखबार जकार्ता पोस्ट में छपे एक खास लेख में थिंक टैंक सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज इंडोनेशिया के अनुसंधानकर्ता गिलांग केम्बारा ने लिखा है- ह्यचिंता इस बात को लेकर है कि अगर अमेरिका यूरोप के टकराव में फंसा रहा, तो चीन एशिया में बने खालीपन का लाभ उठा सकता है। वह या तो ताइवान पर हमला कर सकता है या फिर दक्षिण चीन सागर में अपनी मौजूदगी और मजबूत कर सकता है।