फिल्म समीक्षा: घोस्ट (दर्शको को डराने में कामयाब रहे विक्रम भट्ट)

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इंसान कितना ही ताकतवर, पैसे वाला और रसूखदार क्यों ना हो। जब भी बुरा समय आता है, तब उसे जो भी कहा जाता है, वह सब करता है। पूजा-पाठ, तंत्र-मंत्र, टोटके जो भी संभव हो, वह सारे हथकंडे आजमाता है, इसके पीछे जो भावना काम करती है वह है डर। सबसे बड़ा डर होता है अनजाने का, जो दिखाई नहीं देता पर नुकसान जरूर करता है। इसी भावना को दुनिया भर के फिल्मकारों ने भरपूर इस्तेमाल किया है।
यह कहना भी गलत नहीं होगा डरावनी फिल्में सफलता की गारंटी मानी जाती हैं, मगर साथ ही हॉरर फिल्में बनाना हर किसी के बस का भी नहीं। हिंदी फिल्मों में यह परंपरा रामसे से लेकर रामू तक सफलता से चली और अब इस परंपरा को निभा रहे हैं जाने-माने फिल्म निर्देशक विक्रम भट्ट, जिन्होंने हॉरर फिल्मों पर महारत हासिल कर ली है, इस बार विक्रम लेकर आए हैं घोस्ट, जो एक सच्ची घटना पर आधारित है।
यह कहानी है लंदन में बसे एक भारतीय मूल के राजनेता करण खन्ना की (शिवम भार्गव) जिसके ऊपर अपनी पत्नी के खून का आरोप है। सारे सबूत उसके खिलाफ हैं। वह अपनी एडवोकेट सिमरन सिंह (शनाया ईरानी) को कहता है उसने खून नहीं किया, बल्कि उससे यह खून एक आत्मा ने कराया है। पहले तो सिमरन इस बात पर बिल्कुल भरोसा नहीं करती, मगर बाद में जब उसे खुद अनुभव होता है तो करण की बात समझकर उसका केस लड़ने के लिए तैयार हो जाती है।
आगे क्या होता है, इसी ताने-बाने पर बुनी गई है फिल्म घोस्ट। विक्रम भट्ट पूरी फिल्म में दर्शकों को सीट पर सिमटने के लिए मजबूर कर देते हैं। बिगड़ी हुई सूरतों वाले भूतों के बिना ही वह आपको डराने में कामयाब हो जाते हैं। अभिनय की बात करें तो टेलीविजन की जानी मानी स्टार शनाया ईरानी अपनी पहली फिल्म में शानदार परफॉर्मेंस करती नजर आती हैं। वहीं अपनी डेब्यू फिल्म कर रहे शिवम भार्गव भी आत्मविश्वास से भरे नजर आते हैं। निर्देशक विक्रम भट्ट सहित दूसरे कलाकार छोटी-छोटी भूमिका में आते हैं और अपना काम न्याय संगत करते हुए नजर आते हैं। कुल मिलाकर निर्देशक विक्रम भट्ट की घोस्ट आपको डराने में कामयाब नजर आती है। अगर आप हॉरर फिल्मों के शौकीन हैं तो निश्चित ही घोस्ट आपको प्यारा लगेगा। -मु0 रिज़वान

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