बलिया में अवैध खननः खाकी, खादी और माफिया का गठजोड़, यही है असली खेल

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खनन के खेल के पीछे सफेदपोश भी हैं, जिनकी शह पर माफिया बेखौफ हैं। पुलिस-प्रशासन भी खामोश रहता है। मिट्टी या रेत का अवैध खनन हो या फिर मौरंग का अवैध धंधा। कहीं-न-कहीं, किसी-न-किसी सफेदपोश से इसके तार जुड़े हैं। एक तरह से खनन माफिया उनकी सरपरस्ती में ही पनप रहे हैं। सफेदपोश भी मोटी कमाई कर रहे हैं।
मिट्टी और रेत का बड़े पैमाने पर अवैध खनन करने वाला बड़ा खनन माफिया का एक रिश्तेदार विधायक रहा है। सत्तारूढ दल का होने की वजह से उसका दबदबा रहा। इसलिए खनन माफिया बेखौफ अवैध कारोबार को अंजाम देते रहे। स्थानीय निवासी प्रदीप (बदला नाम) ने बताया कि पूरा खेल सफेदपोशों का ही है।
उनके रिश्तेदार व करीबी ही अवैध खनन कराते हैं। ये सफेदपोशों को या तो सीधे लाभ पहुंचाते हैं, या चुनाव में मदद करते हैं। अभी भी एक हारे हुए विधायक का दबदबा कायम है। उनका रिश्तेदार धड़ल्ले से खनन करवाता है। नेता, खनन माफिया, पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी, सभी की मिलीभगत रहती है। जिम्मेदार ही खेल में शामिल होंगे तो कार्रवाई कैसे होगी। सफेदपोश ने कई खनन माफिया को शह दे रखी है। ये खनन माफिया ठेकेदारों को तय स्थान से रेत और मिट्टी खनन का अवैध ठेका देते हैं। ठेकेदार अपने स्तर से खनन करवा कर ठिकानों पर पहुंचाते हैं। हर किसी की एकमुश्त रकम बंधी है। रकम पहुंचती रहती है। काम जारी रहता है। पुलिस प्रशासन हस्तक्षेप न करे और उनसे सांठगांठ रहे, इसमें नेताओं का संरक्षण काम आता है। जिले में चल रहे रेत व मिट्टी खनन में एक पूर्व विधायक का हाथ रहा है। अभी भी है। हालांकि खनन के खेल में जिसकी सत्ता रहती है, उसके नेताओं का हाथ रहता है। खनन माफिया भी सत्ताधारियों के करीब हो जाते हैं। यानी जिसकी सत्ता, खनन माफिया उसके। ताकि उनका धंधा चलता रहे। लाल बालू (मौरंग) का अवैध कारोबार बहुत ही बड़े पैमाने पर हो रहा है। बिहार से नदी के रास्ते लाल बालू गंगा के घाटों पर लाई जाती है। यहां से खनन माफिया लाल बालू को अलग-अलग जिलों में सप्लाई करते हैं। इसमें भी एक पूर्व विधायक की अहम भूमिका रही है। कई साल पहले पूर्व विधायक ने ही यह धंधा शुरू किया था। दावा किया था कि किसानों और गरीबों को सस्ती लाल बालू मिल जाएगी। मगर मकसद कुछ और ही था। वह धंधा आज का सबसे बड़ा काला धंधा बन चुका है। कुछ जनप्रतिनिधियों की शह पर माफिया अवैध कारोबार कर रहे हैं। इसलिए पुलिस और प्रशासन के अफसर भी खामोश रहते हैं। खुद की कमाई में जुटे रहते हैं

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