सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर सबसे ज्यादा हमला भाजपा की तरह से हो रहा था और हो रहा है, कांग्रेस और बसपा कभी-कभी ही अखिलेश के खिलाफ मुंह खोलते हैं। वहीं अखिलेश भी भाजपा और योगी सरकार के खिलाफ हमलावर हैं। वह तो कांग्रेस और बसपा को लड़ाई में मानते ही नहीं हैं। एक तरह भाजपा हिन्दुत्व का कार्ड खेल रही है तो दूसरी ओर अखिलेश यादव न खुलकर हिन्दुओं के पक्ष में बोल रहे हैं, न ही मुसलमानों के पक्ष में। एक तरह से अखिलेश दुधारी तलवार पर चल रहे थे, लेकिन अखिलेश यादव ने जैसे ही प्रथम चरण के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए प्रत्याशियों की पहली लिस्ट जारी की सबको इस बात का विश्वास हो गया कि अखिलेश का मिजाज बदला नहीं है।उत्तर प्रदेश में अब तक सभी सर्वे सत्ताधारी भाजपा के पक्ष में रिपोर्ट दे रहे हैं. हर सर्वे कह रहा है कि भाजपा सत्ता में वापसी कर सकती है. बहुत पहले हुए सर्वे के आकलन एकतरफा लगते थे, लेकिन धीरे धीरे मुकाबला थोड़ा मुश्किल मालूम पड़ रहा है।अब तो करीब करीब साफ हो चुका है कि उत्तरप्रदेश की लड़ाई मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (और समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव के बीच होने जा रही है, लेकिन फासला अब भी ज्यादा ही बताया जा रहा है ।नया समाचार ये है कि दो दावेदारों के बीच एक तीसरा मोर्चा भी मार्केट में लांच हो चुका है । भागीदारी परिवर्तन मोर्चा । ये मोर्चा खड़ा करने की कोशिशें काफी दिनों से चल रही थीं, लेकिन बार बार संभावित सदस्यों के कहीं और चले जाने से खड़ा होने से पहले ही लड़खड़ा जाता. ए आई ऐम आई ऐम नेता शुरू से ही ये मोर्चा खड़ा करने की कोशिश में जुटे रहे और अब जाकर इसकी सार्वजनिक घोषणा भी की जा चुकी है ।नये मोर्चे की घोषणा भी काफी धमाकेदार हुई है. सत्ता में आने की सूरत में दो-दो मुख्यमंत्री और तीन डिप्टी सीएम बनाये जाने का ऐलान किया गया है । एक डिप्टी सीएम मुस्लिम भी होगा. मोर्चे में असदुद्दीन ओवैसी के अलावा मायावती के करीबी नेता रहे बाबू सिंह कुशवाहा और भारत मुक्ति मोर्चा के वामन मेश्राम भी शामिल हैं । कहने को तो भीम आर्मी वाले चंद्रशेखर आजाद भी आधा दर्जन से ज्यादा राजनीतिक दलों को अपनी आजाद समाज पार्टी के साथ जोड़ने का दावा कर रहे हैं ।उत्तरप्रदेश में राजनीतक दलों में तो बंटवारा साफ साफ नजर आने लगा है, लेकिन धर्म और जाति के बीच बंटा वोटर बहुत सारे भ्रम पाले हुए है । ऐसे बहुत लोग हैं जिनको कोई कंफ्यूजन नहीं है, लेकिन तमाम चुनावी वादों के बावजूद ऐसा कई तबके हैं जो तय नहीं कर पा रहे हैं कि किसे वोट वोट दें?
भाजपा ने पिछली बार की कामयाबी के हिसाब से सीटों का आंकड़ा 300 के पार लाने का लक्ष्य रखा है, लेकिन सर्वे में ये 250 के इर्द गिर्द ही नजर आता है । दूसरे नंबर पर शुरू से ही अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी जगह बनाये हुए हैं, लेकिन किसी भी सर्वे में वो दो सौ के करीब भी पहुंच रही हो, ऐसा नहीं पाया गया है ।एक ताजा सर्वे में उत्तरप्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से भाजपा के हिस्से में 201-233 सीटें आने का अनुमान लगाया गया है, जबकि अखलेश यादव की झोली में 148-159 सीटें आ सकती हैं ।पहले भाजपा और सपा के बाद बसपा का नंबर हुआ करता था और आखिरी पायदान पर कांग्रेस लेकिन प्रियंका गांधी के फील्ड वर्क से माहौल थोड़ा बदला हुआ लगता है । लिहाजा कांग्रेस को 9-15 और बसपा को 8-14 सीटें मिलने का आकलन किया गया है। बताया यह भी जाता है कि यदि बसपा कुछ ज्यादा सीटें ले जाती है तो योगी व अखिलेश का समीकरण बदल सकता हैं ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को देखते हुए भाजपा की कोशिश है कि उत्तरप्रदेश का चुनाव जैसे भी मुमकिन हो मोदी बनाम अखिलेश हो जाये, लेकिन समजवादी पार्टी और उसके अघोषित मित्रवत साथी लड़ाई को योगी बनाम अखिलेश ही बनाये रखने पर फोकस कर रहे हैं ।इंडिया टुडे और सी वोटर के मूड आॅफ द नेशन सर्वे के मुताबिक, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शासन को लेकर करीब 49 फीसदी लोग संतोष जता रहे हैं. करीब 17 फीसदी लोग ऐसे भी हैं जो योगी सरकार के कामकाज से थोड़े असंतुष्ट बताये जा रहे हैं । लेकिन 34 फीसदी लोगों ने खुल कर योगी आदित्यनाथ के कामकाज को लेकर असंतोष जाहिर किया है ।पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तो अब एक्टिव हुए हैं, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा तो आम चुनाव के बाद से लगातार योगी आदित्यनाथ के खिलाफ हमलावर रही हैं, लेकिन बसपा नेता मायावती की खामोशी पर अब भी सवाल खड़े हो रहे हैं ।अखिलेश यादव तो नहीं लेकिन प्रियंका गांधी के साथ साथ भाजपा नेता अमित शाह भी मायावती की खामोशी पर सवाल उठाते रहे हैं ।अपने ताजा हमले में प्रियंका गांधी ने मायावती पर भाजपा के दबाव में होने का अंदेशा जताया है ।सर्वे में चुनावी मुद्दों को लेकर भी लोगों से सवाल पूछे गये हैं । सर्वे में शामिल 35 फीसदी लोगों ने बेरोजगारी को बड़ा मुद्दा माना है. बेरोजगारी के मुद्दे पर तो विपक्ष भाजपा सरकार पर सवाल लगातार उठाता रहा है, लेकिन तरीका बहुत प्रभावी नहीं लगा है ।सर्वे में भाग लेने वाले 23 फीसदी लोगों की नजर में महंगाई, तो 10 फीसदी को कोरोना महामारी, 7 फीसदी को भ्रष्टाचार और 2 फीसदी लोगों आर्थिक हालात भी चुनावी मुद्दा लगा है ।भाजपा तो नये चुनावी वादों से पहले योगी आदित्यनाथ सरकार के कामकाज को सामने रख रही है, लेकिन अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी में नौकरियों को लेकर वादों की अलग से होड़ चल रही है । प्रियंका गांधी ने 20 लाख सरकारी नौकरियों का वादा किया है तो अखिलेश यादव आईटी सेक्टर में ही 22 लाख नौकरियों का वादा कर रहे हैं।ये तो हुई मुख्य मुकाबले की बातें । और हो सकता बहुतों ने किसी न किसी आधार पर अपनी पार्टी और अपना उम्मीदवार चुन भी लिया हो, लेकिन अभी ऐसे कई तबके हैं जिनकी पसंद और नापसंद का पैमाना ऐसा है कि फैसला ले पाना मुश्किल हो रहा है ।चूंकि जातिवादी राजनीति के सवर्ण तबके खांचे में अखिलेश यादव और मायावती मिसफिट हैं, इसलिए लोग टीना फैक्टर की तरफ इशारा करने लगते हैं और विकल्प कहां है? अगर ऐसी बातचीत में विकल्प के तौर पर कांग्रेस का नाम सुझाया जाता है तो कहते हैं वो तो ठीक है लेकिन अभी वोट कौन बर्बाद करे ?
अशोक भाटिया,
स्वतंत्र पत्रकार