देहरादून। राजीव गांधी नवोदय विद्यालय का नाम लेते ही मस्तिष्क पर स्वाभाविक रूप से एक अच्छे आवासीय विद्यालय की छवि उभर आती है। उत्तराखंड में ऐसी ही उम्मीदों के साथ इन विद्यालयों की नींव डाली गई, लेकिन छात्रों के भविष्य के साथ राज्य में किए गए इस प्रयोग की हकीकत रुला देने वाली है। 2003 से सभी जिलों में संचालित 13 नवोदय विद्यालयों में सिर्फ पांच के पास ही अपने भवन हैं। चार के पास भवन नहीं हैं। चार निर्माणाधीन हैं। स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति की सेवा नियमावली आज तक नहीं बनी। शिक्षकों के स्वीकृत 624 पदों में 45 फीसद से ज्यादा पद खाली हैं। इनमें 2755 बच्चे पढ़ रहे हैं। विभागीय समीक्षा में ये हाल देखकर मुख्य सचिव भौंचक रह गए। 16 साल पूरे हो चुके हैं, अपने प्रयोग से जब तंत्र की ही आंखें फटी हैं तो जनता के पास आंख बंद करने के सिवाय चारा भी क्या है।
शिक्षा महकमा एक पुरानी कहावत के साथ शिद्दत से कदमताल कर रहा है। पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगो तो बनोगे खराब, ये कहावत भले ही बेमायने साबित हो चुकी है। ऐसा ये महकमा कतई नहीं मानता। पुरानी बात पर कायम है। 5919 प्राथमिक, 1405 उच्च प्राथमिक और 1233 माध्यमिक विद्यालयों के पास अपने खेल मैदान नहीं हैं। सात हजार से ज्यादा विद्यालय खेल मैदान को तरस रहे हैं। शासन तक बात पहुंची तो सुझाव मिला, विधायक निधि से खेल मैदान के लिए धन का बंदोबस्त कराया जाए। विधानसभावार सूची ऐसे विद्यालयों की सूची विधायकों को दें और खेल मैदान के लिए गुहार लगाएं। जिला योजना में खेल मैदानों के लिए धन की व्यवस्था का सुझाव दिया गया। वर्तमान माहौल में जिसतरह तनाव पसर रहा है, ऐसे में बचपन को खेल-कूद का माहौल देकर सेहतमंद बनाना जरूरी है। सुझाव हैं, पर मानने को तैयार नहीं हो रहा शिक्षा महकमा।