देहरादून। गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने की मांग साठ के दशक में पहली बार उठी थी। इस मांग को उठाने वाले कोई और नहीं, बल्कि पेशावर कांड के महानायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली थे। यही वजह रही कि उत्तराखंड क्रांति दल ने उस दौर में गैरसैंण को गढ़वाली के नाम पर चंद्रनगर रखा था।
उत्तरप्रदेश से एक अलग राज्य उत्तराखंड बनाने के साथ ही उसकी राजधानी गैरसैण को बनाने की मांग उठने लगी थी। राज्य आंदोलनकारियों और उत्तराखंड क्रांति दल ने समय-समय पर इसकी मांग के लिए आंदोलन तेज किया। उनका अलग राज्य गठन का ये संघर्ष 9 नवंबर 2000 को खत्म हुआ और उत्तराखंड को राज्य का दर्जा मिला। हालांकि फिर उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण न होकर देहरादून(अस्थाई) बन गई। इसको लेकर फिर से आंदोलन शुरू हुए और राज्य आंदोलनकारियों ने श्पहाड़ी प्रदेश की राजधानी पहाड़ होश् का नारा बुलंद किया। इसलिए गैरसैण को जनभावनाओं की राजधानी भी कहा जाने लगा।
अलग राज्य बनने के बाद गैरसैंण की धरती पर भी राजधानी के लिए कई आंदोलन शुरू हुए और समय के साथ इसकी मांग भी तेज होने लगी। इसके बाद प्रदेश में सरकारें बदली और गैरसैण राजधानी का सपना भी जनता को दिखाया गया, लेकिन ये हकीकत नहीं बन पाया। इसे मुद्दा बनाकर राजनीतिक दल हमेशा अपनी राजनीति चमकाते रहे। फिर कांग्रेस सरकार के शासनकाल में गैरसैण राजधानी की उम्मीदें एकबार फिर प्रबल हुई और तत्कालीन सीएम विजय बहुगुणा ने यहां विधानसभा भवन, सचिवालय, ट्रांजिट हॉस्टल और विधायक आवास का शिलान्यस किया। इसके बाद पूर्व सीएम हरीश रावत के कार्यकाल के दौरान ये बनकर तैयार हुए, जिसके बाद से अब तक यहां छह सत्र आयोजित हो चुके हैं।