‘‘वाला’’ शब्द देहादून के गांव और पुरानी कालाोनियों की पहचान

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देहरादून। देहरादून ऐसा शहर एवं जिला है, जहां गांव और पुरानी कॉलोनियों की पहचान उनके नाम के साथ जुड़े वाला शब्द से होती है। गांव-कॉलोनियों के नाम पर यह वाला शब्द क्यों जुड़ा, इसकी प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन, माना जाता है कि संबंधित स्थान की विशेषता, महत्ता और स्थानीय संस्कृति के अनुसार ही इलाके नाम के साथ वाला शब्द जुड़ा होगा।
जानकारों के अनुसार पुराने समय में शायद किसी गांव, कस्बे या कॉलोनी की पहचान ही उसके नाम के साथ जुड़े पहले शब्द से होती रही होगी। इसलिए कालांतर में लोग संबंधित इलाके के नाम, उसके साथ वाला जोड़कर पुकारने लगे। धीरे-धीरे यही नाम लोगों की जुबान पर चढ़ गया। यही वजह है कि वर्तमान में देहरादून शहर व जिले के लगभग 150 गांव और कॉलोनियों के नाम में वाला शब्द जुड़ा हुआ है। आइए! इनमें से कुछ गांव-कॉलोनियों के नाम का अर्थपूर्ण परिचय हम आपसे भी कराते हैं।
डोईवाला: कहा जाता है कि एक जमाने में यह इलाका लकड़ी से बनी करछुल अथवा डोइयों के लिए प्रसिद्ध था। यहां दूरदराज के लोग डोईयों की खरीदारी करने आते थे। माना जाता है कि इसीलिए इस इलाके का डोईवाला नाम पड़ा।
चक तुनवाला: यहां कभी तुन के वृक्ष बहुत अधिक संख्या में पाए जाते थे। इसलिए लोगों ने इस जगह को तुनवाला कहना शुरू कर दिया। आज भी यहां तुन के वृक्ष देख सकते हैं।
ब्राह्मणवाला: माजरा से पहले आइटीआइ के ठीक सामने वाले मार्ग पर बसे ब्राह्मणवाला में एक समय अनेकों ब्राह्मण (पुरोहित) परिवार रहा करते थे। इन ब्राह्मणों को लोग पूजा-अनुष्ठान के लिए बुलाया करते था। कहा जाता है कि इसी वजह से इस इलाके को ब्राह्मणवाला कहा गया।
रांगड़वाला: रांगड़ एक प्रकार का चावल होता है, जो कभी पंजाब में उगाया जाता था। इस क्षेत्र में पहले इसी चावल की खेती बहुतायत में होती थी। इसलिए इसे रांगड़वाला कहा जाने लगा।
बड़ोवाला: एक वक्त इस क्षेत्र में बड़ (वट) के वृक्ष बहुतायत में पाए जाते थे। इसी कारण इस इलाके का नाम बड़ोवाला पड़ा।
आमवाला: कभी यहां बड़ी तादाद में आम के बागीचे हुआ करते थे। सो, यह क्षेत्र आमवाला कहलाया।
अनारवाला: अनार के पेड़ों की बहुलता के कारण इस क्षेत्र को अनारवाला कहा गया।
जामुनवाला: यह इलाका कभी जामुन के लिए प्रसिद्ध रहा है। इसी के चलते जामुनवाला नाम प्रचलन में आया।

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