मध्य प्रदेश के पुराने कांग्रेसी दिग्गजों को पार्टी ने नहीं दिया महत्व? चुनाव प्रचार में कम दिखे

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मध्य प्रदेश के पुराने कांग्रेसी दिग्गजों को पार्टी ने नहीं दिया महत्व? चुनाव प्रचार में कम दिखे
मध्य प्रदेश कांग्रेस के पुराने दिग्गज नेता कमलनाथ और दिग्विजय सिंह लोकसभा चुनावों के कैंपेन में बहुत ही सीमित भूमिका में नजर आए जिसके बाद सियासी गलियारों में उनके घटते प्रभाव पर चर्चा शुरू हो गई है।
भोपाल: मध्य प्रदेश में लोकसभा के चुनाव के लिए 4 चरणों में मतदान हो चुका है जबकि देश में सातवें और अंतिम चरण का मतदान 1 जून को होने वाला है। इस बार के चुनाव में मध्य प्रदेश के दिग्गज कांग्रेसी नेताओं का पार्टी भी बेहतर उपयोग नहीं कर पाई। चुनाव के दौरान गिनती के नेता ही पूरे राज्य में प्रचार में सक्रिय दिखे और कुछ ही नेता राज्य के बाहर नजर आए। राज्य की 29 लोगसभा सीटों पर पहले चार चरणों में मतदान हुआ था। कांग्रेस के पुराने दिग्गज नेताओं में शुमार पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह इस दौरान सीमित तौर पर ही सक्रिय नजर आए।
कमलनाथ कम ही जगहों पर प्रचार के लिए पहुंचे
छिंदवाड़ा से कमलनाथ के पुत्र नकुलनाथ चुनाव मैदान में थे और राजगढ़ से खुद दिग्विजय सिंह ताल ठोक रहे थे। दोनों इन सीटों पर अपनी-अपनी प्रतिष्ठा बचाने की चिंता में बाहर निकल ही नहीं सके। छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र में पहले चरण में मतदान हुआ और उसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ एक-दो संसदीय क्षेत्र तक ही प्रचार करने पहुंचे। उन्होंने राज्य के बाहर भी पार्टी के लिए ज्यादा सक्रियता नहीं दिखाई। दिग्विजय सिंह ने अपने संसदीय क्षेत्र राजगढ़ में प्रचार किया और उसके अलावा आसपास के संसदीय क्षेत्र में उम्मीदवारों के समर्थन में जनसभाएं और बैठकें कीं। उसके बाद राज्य के बाहर कुछ संसदीय क्षेत्र में जाकर प्रचार भी किया।सूबे के नेताओं की दिल्ली में पूछ-परख हुई कम’
राज्य में चुनाव प्रचार में मुख्य तौर पर राज्यसभा सांसद विवेक तंखा, प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी, नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव सक्रिय नजर आए। कांग्रेस के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि राज्य के अधिकांश नेताओं की दिल्ली में पूछ-परख कम हो गई है। भले ही राष्ट्रीय स्तर पर राज्य के नेताओं की हनक रही हो, मगर अब स्थितियां बदल चुकी हैं। इन नेताओं का प्रभाव कम हुआ है और उम्मीदवार भी नहीं चाहते थे कि वे उनके इलाके में जाकर प्रचार करें। एक तरफ पार्टी आलाकमान ने इन नेताओं पर ज्यादा भरोसा नहीं दिखाया तो वही उम्मीदवार भी इन्हें बुलाने में ज्यादा रुचि नहीं ले रहे थे। यही वजह है कि चुनावों में वे कम सक्रिय नजर आए

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