एजेंसी समाचार
लखनऊ। 43 साल पहले मुरादाबाद जिले में ईद की नमाज के बाद भड़के दंगे का सच अब सामने आएगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में शुक्रवार को कैबिनेट ने मुरादाबाद दंगे की एक सदस्यीय न्यायिक जांच की रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखने के प्रस्ताव को मंजूरी दी। आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, मुरादाबाद के डॉ. शमीम अहमद खान इस दंगे का सूत्रधार था। उसने वाल्मीकि समाज, सिख और पंजाबी समाज को फंसाने के लिए 13 अगस्त 1980 को ईद की नमाज के समय पथराव और हंगामा कराया गया था। इसका मकसद राजनीतिक लाभ हासिल करना था।
हैरानी की बात यह है कि 1980 से लेकर 2017 के दरम्यान किसी भी दल की सरकार इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की हिम्मत नहीं जुटा सकी। वित्त मंत्री ने कहा कि जांच आयोग की रिपोर्ट गोपनीय है, उसे अभी सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। राज्य सरकार अब इस रिपोर्ट को सदन में रखेगी, जिसके बाद दंगे का पूरा सच सामने आ सकता है। बता दें कि तत्कालीन मुख्यमंत्री वीपी सिंह ने दंगे की जांच के लिए एक सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग का गठन किया था। इस आयोग की रिपोर्ट को 40 साल बाद शुक्रवार को कैबिनेट में प्रस्तुत किया गया। कैबिनेट से अनुमोदन के बाद अब रिपोर्ट विधानमंडल में पेश की जाएगी। वित्त मंत्री ने बताया कि करीब 40 साल पहले शासन में रिपोर्ट प्रस्तुत होने के बाद भी पूर्ववर्ती सरकारों ने रिपोर्ट को कैबिनेट एवं सदन के पटल पर रखने की अनुमति नहीं दी। उल्लेखनीय है कि 1980 से अब तक प्रदेश में 15 मुख्यमंत्री बने, लेकिन कोई भी इस रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखने की हिम्मत नहीं जुटा सका।
मुरादाबाद में 13 अगस्त 1980 को ईद की नमाज के समय पथराव और हंगामा हुआ था। इसके बाद सांप्रदायिक हिंसा भड़कने से 83 लोग मारे गए थे और 112 लोग घायल हुए थे। मामले की जांच के लिए गठित आयोग ने अपनी रिपोर्ट 20 नवंबर 1983 को शासन को सौंपी थी। सूत्रों के मुताबिक जांच में सामने आया था कि मुस्लिम लीग के डॉ. शमीम अहमद खां और उनके समर्थकों ने वाल्मीकि समाज, सिख और पंजाबी समाज के लोगों को फंसाने के लिए अपने समर्थकों के साथ घटना को अंजाम दिया था।
तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एमपी सक्सेना की अध्यक्षता में दंगे की जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन किया था। आयोग की रिपोर्ट आने के 43 साल बीतने के बाद भी किसी भी आरोपी पर कार्रवाई नहीं की जा सकी। उस दौरान दंगे में मरने वाले लोगों की संख्या 250 से अधिक बताई गई, हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई थी। दरअसल दो समुदायों के बीच हिंसा भड़ने के बाद पुलिस को गोलियां चलानी पड़ी जिससे कई लोग मारे गए। इसके बाद मुरादाबाद में करीब एक माह तक कर्फ्यू लगा रहा।
आयोग ने मुस्लिम लीग के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष शमीम अहमद खान, उनके कुछ समर्थकों और दो अन्य मुस्लिम नेताओं को दंगा भड़काने का दोषी पाया था। उन्होंने अपनी जांच रिपोर्ट में भाजपा या आरएसएस जैसे हिंदू संगठनों के हिंसा भड़काने में कोई भूमिका के प्रमाण नहीं मिलने की बात कही थी। आयोग ने पीएसी, पुलिस और जिला प्रशासन को भी आरोपों से मुक्त कर दिया था। आयोग ने जांच में पाया कि ज्यादातर मौतें पुलिस फायरिंग में नहीं, बल्कि भगदड़ से हुई थी। रिपोर्ट में ये भी जिक्र किया गय था कि सियासी दल मुसलमानों को वोट बैंक के रूप में न देखें। सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने के दोषी पाए जाने वाले किसी भी संगठन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।