अबला जीवन हाय, तेरी यही कहानी ये पंक्तियां बचपन से ही महिला विमर्श की सभाओं, गोष्ठियों, आलेखों और संवादों के पटल से आप और हम सुनते-पढ़ते आये हैं। इस पर भी जब अबला और हाय शब्दों को दयनीयता का अतिरिक्त लबादा ओढ़ाकर नम आँखों के साथ संप्रेषित किया जाता है तब प्रत्येक श्रोता भीतर तक स्त्री जीवन की असहायता को महसूस करता है और भावुक हो जाता है।एक मानव होने के कारण मैंने भी इस भावुकता को न केवल अनुभव किया है। बल्कि स्वयं भी इन पंक्तियों को अक्सर उद्धृत किया है।परन्तु उम्र के पचासवें दशक तक पहुँचते पहुँचते पता नहीं क्यों मुझे अब इन पंक्तियों को सुनने और बोलने से खिन्न होने लगी है। इस खिन्नता का कारण राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की यह ऐतिहासिक पंक्ति नहीं है,वरन् मेरी खिन्नता इस बात से है कि इस पंक्ति के माध्यम से लिखा गया मानव समाज का एक ऐतिहासिक पिछड़ापन आधुनिक तथाकथित सभ्य समाज में भी लगातार उद्धृत किये जाने योग्य बना हुआ है।इतने वर्षों उपरांत भी नारी की स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन न हो पाना,आधुनिकता के मुँह पर तमाचा है,विकास की कहानियों पर धिक्कार है।इस पंक्ति की आड़ में हम बेचारगी को महिमा मंडित करते हैं या फिर हम बेचारगी को ओढ़ लेते हैं।सवाल यह है कि बेचारगी को भाग्य मान लेना क्या हमें सशक्त कर पायेगा?
नहीं, कदापि नहीं।मैंने अनुभव से सीखा है,मैं तब ही कमजोर पड़ी जब मैंने स्वयं को कमजोर माना,स्वयं को दूसरों के चश्मे से देखा या फिर मेरा खुद का आत्मविश्वास कम हुआ और यह आत्मविश्वास कब कम होता है,जब हम दयनीयता को अपना भाग्य मान लेते हैं और कुछ सकारात्मक प्रयास किये बिना ही उस बेचारगी का अफसोस करते हुए सांसें गिनते रहते हैं।
तो बहनों ! बन्द करिये महिला सशक्तिकरण के मंचों से बेचारगी का ये रुदन। इस महिला दिवस पर मैं आह्वान करती हूँ हर महिला का (जो स्वयं एक लेखिका हैं परिवार, समाज और राष्ट्र के भाग्य की) कि इतिहास तो वह नहीं मिटा सकती पर अपना वर्तमान और भविष्य वह खुद लिखे।
मैं शक्ति स्वरूपा हूँ, मैं सकारात्मक ऊर्जा पुंज हूँ और अपनी निरीह स्थिति को बदलने के लिए, मुझे कहीं भी गिड़गिड़ाने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि यह बदलाव केवल और केवल मैं खुद ही कर सकती हूँ। इन पंक्तियों को मंत्र बना लीजिए।और फिर देखिए आपका बढ़ा हुआ आत्मविश्वास किस तरह आपकी स्थितियों और परिस्थितियों को बदल देगा।आंसुओं के सागर सूख जायेंगे,बेचारगी मुंह छुपायेगी और भविष्य को अपनी कोख में संवारने वाली मातृशक्ति भविष्य का नेतृत्व भी करेगी। महिला दिवस पर यह संकल्प करते हुए, मैं कामना करती हूँ-एवमस्तु।
लेखिका
हेमा तिवारी भट्ट।