एजेंसी समाचार
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में शहरों की सरकार बनाने में भाजपा सबसे आगे है। 17 में से 17 नगर निगम सीटों के शुरूआती रुझान आ गए हैं। सभी सीटों पर भाजपा का कब्जा होता नजर आ रहा है। झांसी, सहारनपुर, शाहजहांपुर, बरेली और अयोध्या सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज कर ली है। बाकी के परिणाम आना बाकी है। भाजपा की इस जीत के पीछे सवर्ण वोटर का एकजुट होना माना जा रहा है। अतीत में झांकें तो ऐसे कई उदाहरण है जब सवर्ण जातियों ने किंग मेकर की भूमिका निभाई। इस चुनाव में भी इन जातियों की अहम भूमिका है और सभी दलों की निगाहें इस तरफ थीं। जबकि मुस्लिम वोट बसपा के साथ बंटने से सपा को नुकसान होता दिख रहा है।
उत्तर प्रदेश की बात करें तो सवर्ण मतदाताओं की आबादी 26 फीसदी से ज्यादा है। इनमें सबसे ज्यादा 11 फीसदी से अधिक ब्राह्मण वोटर हैं। 9 फीसदी से ज्यादा क्षत्रिय मतदाता हैं। वैश्य मतदाता 6 प्रतिशत से अधिक और कायस्थ करीब 2 फीसदी हैं। शहरी सीटों पर वैश्य मतदाताओं की मौजूदगी ज्यादा है। ग्रामीण परिवेश में ब्राह्मण, क्षत्रिय, त्यागी, कायस्थ आदि मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है।
पश्चिमी यूपी के चुनावी बिसात को देखें तो दलों ने जिस तरह से सवर्ण प्रत्याशी उतारे थे उससे इनकी अहमियत स्पष्ट रूप से सामने आई। मेरठ शहर सीट पर भाजपा ने इस बार ब्राह्मण पर दांव खेला था, तो कांग्रेस ने भी ब्राह्मण को ही यहां से उम्मीदवार बनाया था। इस सीट पर पहले भी भाजपा की ओर से बड़ा चेहरा डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी चुनाव लड़ते रहे हैं। सरधना सीट पर इस बार तगड़ा मुकाबला रहा। यहां भी भाजपा ने मौजूदा विधायक संगीत सोम को ही चुनावी मैदान में उतारा था। उधर, बसपा ने कई सीटों पर इसी तरह का दांव चला। मेरठ की कैंट और बागपत की बड़ौत सीट पर ब्राह्मण उम्मीदवार को उतारा गया था।
धौलाना सीट पर भी भाजपा ने ठाकुर पर दांव लगाया था। साहिबाबाद से तो भाजपा और रालोद-सपा गठबंधन यानी दोनों ने ही ब्राह्मण पर दांव खेला था। मोदीनगर सीट पर भी बसपा, गठबंधन और भाजपा तीनों का सवर्णों पर दांव था। कौल, अनूपशहर आदि सीटों पर भी भाजपा ने यही फॉमूर्ला इस्तेमाल किया गया।
इन जिलों में सवर्ण वोटरों की काफी है संख्या
प्रदेश में गाजियाबाद, हमीरपुर, गौतमबुद्धनगर, प्रतापगढ़, बलिया, जौनपुर, गाजीपुर, फतेहपुर, बलरामपुर, गोंडा ठाकुरों की मौजूदगी अच्छी खासी है। वहीं, ब्राह्मणों की जिन जिलों में अच्छी खासी संख्या है, उनकी संख्या 24 से ज्यादा है। शामली, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, हापुड़, बुलंदशहर, अलीगढ़, मुरादाबाद, मेरठ, बरेली, बागपत, आगरा, अमरोहा, गौतमबुद्धनगर सहित कई जिलों में सवर्णों की तादाद काफी है। पहले चरण के चुनाव की बात करें तो सवर्ण इन सीटों पर किसी का भी परिणाम बदल सकते हैं।
सवर्ण खुद दर्ज कराते रहे हैं अपनी अहमियत
स्वर्ण वोट बैंक की खासियत यह रही है कि ये किसी पार्टी विशेष के बंधन में नहीं बंधे। समय और परिस्थिति के हिसाब से ये जातियां अपनी उपस्थिति अपने हिसाब से दर्ज कराकर चुनाव के परिणाम बदलती रही हैं। 1990 से पहले उत्तर प्रदेश की सत्ता पर ब्राह्मण और क्षत्रियों का खासा दबदबा रहा है।
प्रदेश में कुल आठ ब्राह्मण मुख्यमंत्री और पांच बार ठाकुर मुख्यमंत्री बने। पिछले चुनावों की बात करें तो भाजपा ने इस वर्ग में सबसे तगड़ी सेंध लगाई है।