रामलला मंदिर के लिए शासकीय न्यास के दावेदारों की कतार में कई दिग्गज

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एजेंसीं न्यूज
अयोध्या। मंदिर निर्माण के लिए न्यास का गठन तो केंद्र सरकार को करना है पर इस न्यास में शामिल होने के दावेदारों में कई दिग्गज हैं। इस क्रम में सबसे पहला नाम रामनगरी की शीर्ष पीठ मणिरामदास जी की छावनी के महंत नृत्यगोपालदास हैं।
मंदिर आंदोलन के पर्याय रहे दिगंबर अखाड़ा के महंत रामचंद्रदास परमहंस के साकेतवास के बाद 2003 से ही रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष का दायित्व संभालने वाले महंत नृत्यगोपालदास 1984 में शुरुआत के साथ ही मंदिर आंदोलन के संरक्षकों में शुमार रहे हैं। मंदिर आंदोलन के फलक पर उनकी गणना महंत रामचंद्रदास एवं गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ जैसे आला किरदारों के साथ त्रिमूर्ति के तौर पर होती रही। 2003 में परमहंस एवं 2014 में महंत अवेद्यनाथ के साकेतवास के बाद वे निर्विवाद तौर पर मंदिर आंदोलन के सर्वाधिक वरिष्ठ प्रतिनिधि रहे हैं। शांत-संयत और अल्पभाषी नृत्यगोपालदास की राममंदिर को लेकर परिकल्पित किसी भी इकाई में सबसे पहले गणना होती है।
रामनगरी में राममंदिर के मुखर दावेदारों में रामचंद्रदास परमहंस और नृत्यगोपालदास के अलावा जिस शख्स का चेहरा बराबर उभरता रहा है, वे रामजन्मभूमि न्यास के ही सदस्य एवं भाजपा से दो बार सांसद रहे डॉ. रामविलासदास वेदांती हैं। प्रखर वक्तृत्व के लिए विख्यात वेदांती राममंदिर की अलख जगाने के लिए पूरे देश में जाने जाते हैं। हालांकि रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का मार्ग सर्वोच्च अदालत के माध्यम से प्रशस्त हुआ है पर अदालत से बाहर मंदिर के दावेदारों का जिक्र होने पर जो चुुनघ्ंिदा नाम सामने आते हैं, उनमें डॉ. वेदांती प्रमुख हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि रामलला के हक में आए फैसले के पीछे सर्वाधिक अहम रामजन्मभूमि पर रामलला के विग्रह की स्थापना थी और रामलला की स्थापना में हनुमानगढ़ी से जुड़े महंत अभिरामदास की अहम भूमिका थी। हालांकि रामलला के प्राकट््य के बाद प्रतिरोध के चलते प्रशासन ने इस स्थल को कुर्क तो किया पर पुजारी के रूप में अभिरामदास को मान्यता दी। इस मामले में मस्जिद के पैरोकारों ने उन्हें पहले ही आरोपी बना रखा था और 1961 में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड जब अदालत पहुंचा, तो उसने भी अभिरामदास को पक्षकार बनाया।
1982 में अभिरामदास के साकेतवास के बाद उनके शिष्य एवं उत्तराधिकारी महंत धर्मदास ने भी गुरु की विरासत आगे बढ़ाते हुए मंदिर की दावेदारी को बुलंद किया। वे सुप्रीम फैसला आने तक अदालत में पक्षकार रहे हैं और आपसी सहमति से भी मसले के समाधान की गतिविधियों से जुड़े रहे हैं।
रामचंद्रदास परमहंस के उत्तराधिकारी एवं दिगंबर अखाड़ा के वर्तमान महंत सुरेशदास भी मंदिर आंदोलन के शलाका पुरुष की विरासत का प्रतिनिधित्व करने के चलते शासकीय न्यास के दावेदारों में शुमार हैं। मंदिर आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के अलावा वे सुप्रीमकोर्ट में राममंदिर के पक्षकार भी रहे हैं।
सुप्रीमकोर्ट के आदेश के अनुरूप शासकीय न्यास में निर्मोही अखाड़ा की नुमाइंदगी तय मानी जा रही है। हालांकि निर्मोही अखाड़ा के सरंपच के रूप में साकेतवासी महंत भास्करदास और वर्तमान सरपंच राजारामचंद्राचार्य मंदिर का मुकदमा शुरुआत से ही लड़ते रहे हैं। चूंकि राजारामचंद्राचार्य की उम्र 90 वर्ष से अधिक की है। ऐसे में अखाड़ा के वर्तमान महंत दिनेंद्रदास अखाड़ा की ओर से न्यास में नुमाइंदगी के स्वाभाविक दावेदार माने जा रहे हैं।
रामजन्मभूमि की मुक्ति के लिए 491 वर्ष से चल रहे संघर्ष के पटाक्षेप में रामलला के सखा त्रिलोकीनाथ पांडेय की अहम भूमिका रही है। सुप्रीमकोर्ट ने रामलला के सखा के ही वाद को ध्यान में रख कर फैसला सुनाया।रामजन्मभूमि की मुक्ति के लिए रामलला के सखा की हैसियत से सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति देवकीनंदन अग्रवाल ने 1989 में ही वाद दाखिल कर दिया था। 1996 में उनकी मृत्यु के बाद यह जिम्मेदारी बीएचयू के सेवानिवृत्त प्रोफेसर ठाकुरप्रसाद वर्मा ने संभाली। 2008 में उनके बाद रामलला के सखा का दायित्व त्रिलोकीनाथ पांडेय ने संभाला। प्रसिद्धि-प्रचार से दूर दायित्व निर्वहन में लगे रहने वाले पांडेय की प्रतिबद्धता रंग ला चुकी है। जाहिर है कि रामलला के साथ अब वे स्वयं भी पुरस्कार के हकदार हैं।
आईपीएस अधिकारी रहे आचार्य किशोर कुणाल मंदिर-मस्जिद विवाद के विशेषज्ञ माने जाते रहे। 1991 में वे प्रधानमंत्री कार्यालय में इस विवाद के समाधान के लिए बने अयोध्या प्रकोष्ठ के विशेष कार्याधिकारी भी थे। उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा से डेढ़ दशक पूर्व गुजरात का एडीजी रहते स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली पर राममंदिर से उनका सरोकार जीवंत बना रहा।
कुछ वर्ष पूर्व उन्होंने अयोध्या रिविजटेड नाम का शोधपरक ग्रंथ लिखा, जो मंदिर-मस्जिद विवाद पर सम्यक रोशनी डालने वाला सिद्ध हुआ। सुप्रीमकोर्ट में वे स्वयं भी पक्षकार थे और उनकी कृति को निर्णय की दृष्टि से अहम माना जाता है। ऐसे में न्यास में उनकी दावेदारी को भी दमदार माना जा रहा है।

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