छोटे दल भी आजमाते हैं दांव, पर जमा नहीं पाते पांव

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एजेंसी समाचार
लखनऊ। लोकसभा और विधानसभा चुनावों की तरह छोटे दलों ने पिछले नगर निकाय चुनाव में भी उम्मीदवार उतारे थे, पर कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाए थे। ऐसे तमाम छोटे दल हैं, जिनके उम्मीदवार जमानत तक नहीं बचा पाए थे। इनसे बेहतर प्रदर्शन तो निर्दल उम्मीदवारों का रहा। इस बार के चुनाव में कई छोटे दल नई ताकत से फिर से मैदान में हैं।
वर्ष 2017 में हुए निकाय चुनाव में करीब आधा दर्जन छोटे दलों ने अपने सिंबल पर चुनाव मैदान में प्रत्याशी उतारे थे लेकिन एक भी सीट पर उनका खाता नहीं खुल पाया। निकाय चुनाव में महापौर और अध्यक्ष की एक भी सीट पर चुनाव नहीं जीते थे। अलबत्ता नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों में पार्षद के एक या अधिकतम दो सीटें ही जीत पाए थे। जबकि निर्दलीयों ने नगर निगम में पार्षद के 225 सीटें जीती थीं।
इसी प्रकार नगर पालिका परिषदों में अध्यक्ष के 43 और पार्षद के 3379 सीटों के अलावा नगर पंचायतों में अध्यक्ष के 182 और सदस्य के 3,876 सीटों पर निर्दलीयों ने कब्जा किया था। निकाय चुनाव लड़ने वाले सभी छोटे दलों की जमानत जब्त हो गई थी। पिछले निकाय चुनाव में छोटे दल ही नहीं, कई बड़े दल भी कोई खास उपलब्धि नहीं हासिल कर पाए थे। कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दल ने महापौर के चुनाव में मात्र 8.46 प्रतिशत, पालिका परिषद में 4.55 और पंचायतों में 3.88 प्रतिशत वोट हासिल किया था। यही स्थिति आम आदमी पाटी की भी रही। आप को नगर निगम में 0.03, पालिका परिषद में 0.13 और पंचायतों में 0.11 प्रतिशत ही वोट मिले थे। हालांकि बसपा ने नगर निगम में महापौर के दो सीटों पर कब्जा जरूर किया था लेकिन वोट प्रतिशत के लिहाज इसका प्रदर्शन भी उल्लेखनीय नहीं रहा। बसपा को मात्र 12.05 प्रतिशत ही वोट मिले थे। इनके अलावा भाकपा (मार्क्सवादी) को 0.02 प्रतिशत और आॅल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन को 0.29 प्रतिशत वोट मिले थे।

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