सुनो राष्ट्र के नव दिनकर

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सुनो राष्ट्र के नव दिनकर,
कर्तव्य पथ का भान करो।
तुम राष्ट्र के भाग्य विधाता,
आओ नवभारत निर्माण करो।
ठेल तिमिर अंर्तमन का,
ह्दय को नवदीप प्रदान करो।
काट पत्थर रूकावटों के,
राष्ट्र को सुपथ प्रदान करो।
असफलता को मान चुनौती,
सदैव मन से स्वीकार करो।
मेहनत के धागों को बुनकर,
राष्ट्र को सफलता वस्त्र प्रदान करो।
नैतिकता का पथ अपनाकर,
रूत को नया आयाम दो।
अंर्तमन की पुकार सुन,
अपनी काबिलियत पर ध्यान दो।
गर ठोकर खाकर गिर जाओ, फिर उठ उम्मीद का दामन थाम लो।
तुम अदम्य बन जीवन में,
धधकती जीत के प्रमाण बनो।
लिए भगत का रक्त लहू में,
दृढ़ राष्ट्र निर्माण करो।
तुम राष्ट्र के सौम्य स्वप्न
बन अग्नि दीप्ति राष्ट्र प्रकाशवान करो।
बुराई रूपी हलाहल का,
बन नीलकंठ पान करो,
कर हौसला बुलंद बन अदम्य साहसी,
भारत को विश्व गुरू का मान दो।

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