‘न बाप रहे-न दादा…’, छठ पूजा को यादकर भर आईं ‘भूल भुलैया 3’ के बड़े पंडित की आंखें, बोले- अब घाट ले जाने वाला कोई नहीं
बॉलीवुड के सीनियर एक्टर संजय मिश्रा अचानक ही छठ पर्व का नाम आते ही उदास हो गए। उन्होंने अपने दिल की बात लोगों से साझा कि और नम आंखों के साथ बताया कि अब पहले वाली बात नहीं रह गई है।
छठ पूजा 2024: बिहार के लोगों के लिए छठ पूजा सिर्फ एक त्योहार नहीं है, ये फीलिंग है, जो सभी को जोड़ती है। अमीर-गरीब, औरत-आदमी सभी एक मजबूत ताने-बाने में बंधकर छठ पूजा करते हैं। ये त्योहार लोगों को उनकी जड़ों से जोड़ता है। घरों से दूर रह रहे लोगों को परिवार के करीब लाता है। ये भावना सिर्फ आम लोगों तक सीमित नहीं रहती बल्कि सितारों में भी इस त्योहार को लेकर उत्साह देखने को मिलता है। भोजपुरी सितारें हों या बिहार से आने वाले बॉलीवुड सितारे सभी बड़े प्यार और सदभाव के साथ इस पर्व को मनाते हैं। छठ पूजा का जिक्र आते इन सितारों की भी भावनाओं का सैलाब देखने को मिलता है। बॉलीवुड अभिनेता संजय मिश्रा ने हाल ही में छठ पूजा से जुड़ी अपनी पुरानी और दिल छू लेने वाली यादों को ताजा किया और वो इसे बताते हुए रो पड़े।
‘वध’, ‘भूल भुलैया 2’ और ‘गोलमाल’ जैसी फिल्मों में अपनी कॉमिक टाइमिंग के लिए मशहूर बॉलीवुड अभिनेता संजय मिश्रा ने हाल ही में छठ पूजा को लेकर बात की और अपने गहरे जुड़ाव के बारे में बताया। बिहार के दरभंगा में जन्मे मिश्रा ने अपने जीवन का काफी हिस्सा बनारस में भी बिताया। इस क्षेत्र में छठ पूजा का खास महत्व है। इस त्योहार से एक्टर का खास लगाव और बचपन का जुड़ाव भी है। इन्हीं गहरे संबंधों को उन्होंने याद किया। ‘डिजिटल कमेंट्री’ के साथ एक साक्षात्कार में संजय मिश्रा ने कहा, ‘छठ मेरे शुरुआती वर्षों का एक बड़ा हिस्सा था।’
इसी कड़ी में संजय मिश्रा ने आगे कहा, ‘मैं छठ को अपने बचपन से रिलेट करता हूं, लेकिन अब नहीं कर पाता हूं। क्योंकि मेरे दादा नहीं हैं मेरी उंगली पकड़कर ले जाने वाले। मैं कल ही सोच रहा था इस बार में, मेरे फादर नहीं हैं जगाने वाले और उठाने वाले कि उठो…घाट छेकने जाना है। अब तो छठ के समय में ठंड भी नहीं पड़ती। उस दौर में बाप रे बाप…और कोई भाई धीरे से गंगा जी में लुढ़का दे और कहे कि रो कांहे रहे हो चाची जी को भी तो इसी पानी में पूरा दिन खड़ा रहना है, तुम तो खाली डूब के आए हो। वो सब नहीं है तो जिन लोगों से छठ था, सब चाचा आते थे, बुआ आती थीं, चाची व्रत करती थी और अब वहीं लोग नहीं रहे। इसमें बुरा मानने वाली कोई बात नहीं है, लेकिन जीवन बस समय के साथ बदलता रहता है।