निर्भया बस सेवा 184 दिन बाद ही ठप

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देहरादून। केवल महिला यात्रियों के लिए 12 मार्च 2015 से दून-हरिद्वार एवं दून-ऋषिकेश के लिए शुरू की गई रोडवेज की श्निर्भया बस सेवाश् छह माह में दम तोड़ गई थी। महज 184 दिनों के सफर में ही यह बस सेवा महिलाओं ने नकार दी थी। इसकी प्रमुख वजह इन बसों का व्यवहारिकता की कसौटी पर फेल होना था। बस में न पति-पत्नी एक साथ सफर कर सकते थे न ही भाई-बहन। यदि किसी महिला को इस बस में जाना था तो उसके पुरुष साथी, रिश्तेदार या परिचित को दूसरी बस से जाना पड़ता था। कई बार इस बात को लेकर यात्रियों की चालक व परिचालक से नोंकझोंक भी हुई और अंततरू बसें खाली चलने लगीं।
सार्वजनिक परिवहन सेवाओं में महिला सुरक्षा के तहत 11 मार्च 2015 को कांग्रेस शासनकाल में तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ. इंदिरा हृदयेश ने केवल महिला यात्रियों के लिए श्निर्भया बसोंश् का शुभारंभ किया था। परिवहन निगम ने अगले दिन 12 मार्च से दून-ऋषिकेश और दून-हरिद्वार के लिए इन बसों का नियमित संचालन शुरू किया। इन दोनों बसों में पहले दिन 202 महिलाओं ने सफर किया। हालांकि, जैसी उम्मीद की जा रही थी, वैसा उत्साह महिलाओं में दिखाई नहीं दिया।
दून से हरिद्वार की निर्भया बस सेवा में पहले हफ्ते में महिला यात्रियों का आंकड़ा 543 रहा तो, ऋषिकेश बस सेवा में यह संख्या 699 रही। निर्भया बस सेवा ने अपना खर्चा तक नहीं निकाला। हरिद्वार रूट पर रोज पांच हजार रुपये व ऋषिकेश रूट पर 4300 रुपये नुकसान उठाना पड़ा।
दोनों बसें हरिद्वार और ऋषिकेश के दो-दो फेरे रोज लगा रही थीं। हरिद्वार की बस पर 7100 रुपये रोजाना खर्चा आ रहा था और ऋषिकेश की बस पर 5300 रुपये। हरिद्वार की बस की औसत कमाई दो हजार रुपये आई जबकि ऋषिकेश की महज एक हजार रुपये। यह हाल मार्च से लेकर अगस्त तक चला। तंग आकर परिवहन निगम ने सितंबर से इन बसों को साधारण बसों की श्रेणी में संचालित करना शुरू कर दिया था।

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