चांद के दीदार का पर्व करवा चैथ 17 को

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हुकूमत एक्सप्रेस
मुरादाबाद। भारतीय संस्कृति में त्योहार न केवल हमें हमारी परंपराओं से परिचित कराते हैं बल्कि हमारे अंदर आस्था और विश्वास जगाने का भी काम करते हैं। यही वजह है कि विकास के दौर में भी ईश्वर के प्रति हमारी श्रद्धा कम नहीं हुई है। धार्मिक त्योहारों का उल्लास वैसे तो धनतेरस से शुरू होगा, लेकिन सुहागिनों का पर्व करवा चैथ पर चांद के दीदार की बेकरारी त्योहार के उल्लास में चार चांद लगा देते हैं। महानगर का हर बाजार त्योहार के रंग में रंग चुका है। पौराणिक ग्रंथों के साथ ही सामाजिक मान्यताएं हमे अपने धर्म के प्रति धर्मनिष्ठ बनाती हैं। इसी मंशा के चलते हम हर त्योहार को अपने ढंग से मनाने में आगे रहते हैं।
करवाचैथ के व्रत में शिव पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और चंद्रमा का पूजन करना चाहिए। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार करवा चैथ के दिन शाम के समय चंद्रमा को अघ्र्य देकर ही व्रत खोला जाता है। पूजा के बाद मिट्टी के करवे में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री रखकर सास या सास की उम्र के समान किसी सुहागिन के पैर छूकर सुहाग की सामग्री भेंट करना उत्तम होता है। छत या आंगन में गाय के गोबर से लीपकर और स्वास्तिक बनाकर पूजन करना चाहिए। निर्जला व्रत रहीं महिलाएं उगते चंद्र को अघ्र्य देकर सुहाग की दीर्घायु की मंगलकामना करेंगी। चंद्रोदय केएक घड़ी (24 मिनट) के भीतर ही चंद्र को अघ्र्य देकर और गौरी गणेश का पूजन कर चैथ माई के व्रत का पारण कर लेना उत्तम होगा।
मान्यता है कि धातु से बने करवे से चैथ का पूजन करना फलदायी होता है, लेकिन यथा शक्ति मिट्टी के करवे से पूजन भी किया जा सकता है। मान्यता है कि इस दिन के बाद से ही ठंड शुरू हो जाती है। कहा जाता है कि करवे की टोटी से ही जाड़ा निकलता है और धीरे-धीरे वातावरण में ठंड का एहसास बढ़ जाता है।

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