लखनऊ: प्राइम लोकेशन पर बेकार पड़ी हैं नगर निगम की बेशकीमती जमीनें, न आमदनी हो रही न ही इस्तेमाल

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एक ओर नगर निगम 300 करोड़ के कर्ज तले दबा है तो दूसरी ओर उसकी शहर की प्राइम लोकेशन पर कई बड़ी जमीनें बेकार पड़ी हैं। एक हजार करोड़ रुपये से अधिक की अनुमानित कीमत वाली ये जमीनें गोमतीनगर, लालबाग, चारबाग, अयोध्या रोड सहित कई इलाकों में हैं। इनमें से कई जगह जमीनें यूं ही पड़ी हैं तो कई जगहों पर बने ऑफिस, कॉम्प्लेक्स और दुकानों पर अवैध कब्जे हैं। ऐसे में नगर निगम को न तो इनसे आमदनी हो रही है और न ही वह इनका इस्तेमाल कर पा रहा है। इसके बाद भी निगम प्रशासन इन्हें लेकर ठोस कदम नहीं उठा रहा, जबकि उसे शासन से मिलने वाला वेतन-पेंशन का बजट भी कम होता जा रहा है। अयोध्या रोड पर कुकरैल बंधे से पहले मेन रोड पर करीब 15 हजार वर्गफीट जमीन है। यहां नगर निगम ने वर्ष 1991 में कॉम्प्लेक्स बनवाया था, जो फेल हो गया। इसमें बनी दुकानाें से किराया भी नहीं मिल रहा है और इनमें कब्जा है। छह साल पहले यहां नया कॉम्प्लेक्स बनाने की योजना बनी, जिस पर 12 करोड़ रुपये खच होने थे। 100 दुकानों के साथ बेसमेंट में पार्किंग बननी थी। सारा काम पीपीपी मॉडल पर होना था, पर योजना कागज पर ही रह गई। ऐेसे में प्राइम लोकेशन वाली इस जगह से नगर निगम को एक ढेले की आमदनी नहीं हो रही है, जबकि इस जमीन की कीमत पांच से आठ करोड़ रुपये है
गोमतीनगर में जहां फन मॉल है, उसी पटरी पर महज 500 मीटर की दूरी पर अपट्रॉन बिल्ंिडग नगर निगम की है। 2,17,936 वर्गफीट की जिस जमीन पर यह बिल्डिंग है, इस समय उसकी कीमत करीब 200 करोड़ की है। इस पर कोई मॉल, होटल या शॉपिंग कॉम्प्लेक्स खुल सकता है। वहीं, इस जमीन के किराये से ही निगम को करोड़ों की आय हो सकती है, पर अभी जमीन यूं ही पड़ी है। वहीं, यहां बनी बिल्डिंग में चल रहे सरकारी ऑफिस से भी किराया नहीं मिलता है। सौ करोड़ का सुपर मार्केट, किराया एक ढेला नहीं
लालबाग स्थित दयानिधान पार्क में 30 साल पहले नगर निगम ने सुपर मार्केट नाम से बाजार बनाया था। इसमें करीब 400 दुकानें थीं। दो दशक से इस बाजार एक पैसा किराया नहीं मिल रहा है। बाजार में ज्यादातर अवैध कब्जे हो गए हैं, जिन्हें नगर निगम खाली भी नहीं करा रहा है। वहीं, आवंटन निरस्त होने के नोटिस से कानूनी विवाद हो गया और पूरा मामला ठंडे बस्ते में चला गया। ऐसे में 150 से 200 करोड़ की यह जमीन भी निगम के किसी काम नहीं आ रही है। दो साल पहले पीपीपी मॉडल पर नए सिरे से यहां कॉम्प्लेक्स बनाने का प्रस्ताव सदन से पास भी हुआ, लेकिन इसके बाद मामला ठंडा पड़ गया। चारबाग में मोहन होटल के सामने नगर निगम की कीमती जमीन पर बिल्डिंग भी बनी है। हालांकि, करीब 20 हजार वर्गफीट की इस जमीन से नगर निगम को कोई आय नहीं हो रही है। वहीं, बिल्डिंग में कब्जे हैं। दस साल पहले यहां पीपीपी मॉडल पर होटल बनाने का प्रस्ताव बना, पर हुआ कुछ नहीं। इस जमीन की कीमत दस करोड़ रुपये से अधिक आंकी जाती है। वहीं, गोमतीनगर में नगर निगम की केंद्रीय कार्यशाला के सामने करीब 70 एकड़ जमीन खाली पड़ी है। 150 करोड़ की इस जमीन पर दस साल से आवासीय योजना लाने की बात हो रही है। प्रस्ताव भी बन रहा, पर अब तक एक ईंट नहीं रखी जा सकी है। महापौर संयुक्ता भाटिया का कहना है कि जमीनों को लेकर किसी से अनुबंध या व्यावसायिक उपयोग का अधिकार सीधे महापौर को नहीं है। इसे लेकर शासन की अनुमति जरूरी है। नगर निगम प्रस्ताव बनाकर पास कर सकता है, पर मंजूरी शासन ही देता है। पूर्व में तीन जमीनों के व्यावसायिक इस्तेमाल का प्रस्ताव शासन को भेजा गया था, लेकिन वहां से अभी हरी झंडी नहीं मिली है। जैसे ही आदेश आएगा, आगे की कार्यवाही शुरू होगी।

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