पीसीसी की नई सूची जारी होने के बाद से कांग्रेस में मचे बवाल पर हरदा ने तोड़ी चुप्पी

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हल्द्वानी। पीसीसी की नई लिस्ट जारी होने के बाद से प्रदेश कांग्रेस में भूचाल मचा है। धारचूला से देहरादून और फिर हल्द्वानी में सड़क तक पहुंच गई कांग्रेस की कलह पर पूर्व सीएम हरीश रावत ने ट्वीट कर पहली बार अपना पक्ष रखा है। हरदा ने स्घ्पष्घ्ट रूप से कहा कि हरीश धाामी समेत उन्घ्होंने छह नाम महासचिव के लिए दिए थे। लेकिन उन्घ्हें सचिव पद दिया गया। हरदा ने प्रदेश नेतृत्घ्व पर सवाल उठाते हुए कहा कि सूची जारी करने से पहले यदि मुझे अवगत करा दिया गया होता तो मैंने सक्षम अथाॅरिटी से बात कर सुधार करने का आग्रह कर लिया होता।
एक बड़ा सवाल उछाला जा रहा है, हरीश धामी का नाम किसने दिया, हां नाम मैंने दिया, दर्जनों और नाम भी दिए। हरीश धामी खुद दो बार व एक बार मुझे विधानसभा का चुनाव जिता चुके हैं, खुद जिला पंचायत के निर्वाचित सदस्य रहे हैं और उस क्षेत्र में जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत, ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में पार्टी को महत्वपूर्ण उपलब्धियां दिलवा चुके हैं।
सीमान्त क्षेत्र में कांग्रेस के स्तम्भ हैं। मैंने महासचिव पद के लिए उनका नाम दिया। ऐसे नामों को जिन्हें मैंने, अन्य दो दर्जन नामों के साथ महासचिव पद के लिए दिया, वहां पार्टी ने उन्हें सचिव पद पर नियुक्त कर दिया, ऐसे छः लोग हैं।
मुझे खुशी है, राज्य में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने हरीश धामी जी की प्रशंसा में बहुत कुछ कहा है, उनको उचित पद नहीं दिया गया, इस तथ्य को स्वीकार किया है और कहा है, यह जिम्मेदारी नाम देने वाले व्यक्ति की है। काश सूची जारी करने से पहले इस तथ्य को ध्यान में रखकर श्री धामी, गुलजार आदि से बात कर ली जाती। मैं भी कहीं अदृश्य नहीं था, मुझे सूचित कर लिया जाता, मैं लिस्ट में सुधार हेतु सक्षम अथॉरिटी से बात कर लेता। इतना सब कुछ कहने, सुनने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
श्री धामी, पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं, वरिष्ठतम लोगों को उनकी स्वभाविक प्रतिक्रिया पर सार्वजनिक टिप्पणी करने से पहले सोचना चाहिए था। पद सब चाहते हैं, यदि पद नहीं दे सकते हैं तो सम्मान। हमें कार्यकर्ताओं को देना पड़ेगा। हममें से बहुत सारे लोग चुनाव नहीं जीत पाते हैं, यह कहना कि, जो ग्राम प्रधान का पद नहीं जीत सकते, उन्हें पद मांगने का अधिकार नहीं है, एक अलग बात है। ऐसे बयान, रात-दिन पार्टी के लिए परिश्रम कर रहे कार्यकर्ताओं का अपमान हैं।

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