मु0 रिज़वान/परवेज जैदी गांधी
मुरादाबाद। जिले के अधिकारी खुद जिन बातों पर अमल नहीं कर रहे उन पर अमल करने की नसीहत आम जनता को देते हैं। जबकि पहले उन्हें खुद उस रास्ते पर चलना चाहिये जिस पर चलने के लिए दूसरों को कहा जा रहा है। बात हो रही है बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाने की। हाईकोर्ट ने आदेश जारी किये थे कि सभी नौकरशाह एवं सरकारी कर्मचारियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाना अनिवार्य किया जाये मगर आज तक इस आदेश पर अमल नहीं हो पाया और नतीजा यह है कि तमाम अधिकारियों के बच्चे महंगे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई कर रहे है। इसी का नतीजा है कि प्राइवेट स्कूलों की मनमानी दिनबदिन बढ़ती जा रही है और आम लोगों की जेब पर प्राइवेट स्कूल डाका डाल रहे हैं। अधिकारी इसलिए मौनधारण किये हुए हैं कि उनके खुद के बच्चे प्राइवेट स्कूलो में पढ़ रहे है।
देखा जाये तो सरकारी स्कूलों में शिक्षकों का वेतन न्यूनतम 30 हजार से लेकर 60 हजार तक है। जबकि प्राइवेट स्कूलों में शिक्षक शिक्षिकायें 5 से 10 हजार में बच्चों को पढ़ा रहे है। अब आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ज्यादा तनख्वाह पाने वाले बेहतर शिक्षा दे सकते है या कम तनख्वाह पाने वाले। आज कल लोगों में अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलो में पढ़ाने की होड़ लगी हुई है क्योंकि उन्हें सरकारी स्कूलों की शिक्षा की गुणवत्ता पर इसलिए भरोसा नहीं है कि वह देख रहे हैं कि जब जिले के अफसरों के बच्चे ही सरकारी स्कूलो में नहंी पढ़ रहे तो हम क्यों पढ़ाये। जबकि इससे ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिस तरह से सरकारी अधिकारी अपनी कथनी और करनी में फर्क कर रहे हैं इसी तरह से सरकारी स्कूल के अध्यापक और अध्यापिकायें भी बच्चों को पढ़ाने में दिलचस्पी नहीं ले रहे और हर महीने मोटी तनख्वाह हासिल कर रहे है।
इस सम्बन्ध में डीआईओएस कार्यालय के एक बाबू प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर जवाब देते हैं कि लोग अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ा ही क्यों रहे हैं। सरकारी स्कूल किसलिए हैं। इस पर जब बाबू से पूछा गया कि आपके साहब सहित पूरे स्टाफ के बच्चे क्या सरकारी स्कूल में पढ़ रहे हैं? इस पर महाशय कहते हैं कि जिस पर पैसा है वह प्राइवेट में अपने बच्चो को पढ़ायेगा ही।
बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा इस बाबत दिये गये आदेश में उ0प्र0 सरकार के मुख्य सचिव को साफ तौर पर कहा गया था कि ऐसी व्यवस्था की जाये कि इसका अनुपालन सरलता के साथ हो मगर यूपी के सभी सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था धरातल पर है। अगर इसका निरीक्षण किया जाये तो बच्चे सरकारी स्कूलो में खेलते हुए नजर आयेंगे और शिक्षक शिक्षिकायें मोबाइल पर व्यस्त देखे जा सकते है।
यहां बता दें कि कई बार खुद अधिकारियों के निरीक्षण में सरकारी स्कूलों में दूसरी-तीसरी क्लास के बच्चों को ठीक से ए,बी,सी,डी भी याद नहीं होती। क्या अधिकारी सरकारी स्कूलों को इस स्तर का नहीं मानते कि वहां शिक्षा का उच्च स्तर है अगर ऐसा मानते हैं तो फिर उसमंे सुधार क्यों नहीं करते। हाईकोर्ट का आदेश था कि जब बड़े ओहदे वाले नेता और अधिकारी अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ायेंगे तो शिक्षा का स्तर स्वतः ही ऊपर उठेगा और आम लोग भी सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रेरित होंगे मगर आज देखा जा रहा है कि सरकार के अधिकारी ही सरकारी स्कूलों की भद पिटवाने में लगे है।