बांग्लादेश से बड़ी संख्या में लोग बॉर्डर पार करके भारत में आए थे

9
Share

क्या है नागरिकता कानून की धारा 6A? सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा
प्रवासियों की समस्या गहराती जा रही थी। 1985 में असम स्टूडेंट्स यूनियन और भारत सरकार के बीच हुए असम समझौते के बाद धारा 6 ए को कानून में जोड़ा गया था।सुप्रीम कोर्ट ने आज नागरिकता कानून की धारा 6A की संवैधानिक वैधता पर एक बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने नागरिकता कानून की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है। दरअसल, धारा 6 ए नागरिकता अधिनियम 1955 का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है। इसे असम समझौते के तहत लागू किया गया था। यह प्रावधान 24 मार्च 1971 से पहले असम में दाखिल होनेवाले अप्रवासियों को नागरिकता प्रदान करता है। असम में लंबे अर्से से अवैध प्रवासियों की समस्या रही है। खासतौर से बांग्लादेश से बड़ी संख्या में लोग बॉर्डर पार करके भारत में आए थे। प्रवासियों की समस्या गहराती जा रही थी। 1985 में असम स्टूडेंट्स यूनियन और भारत सरकार के बीच हुए असम समझौते के बाद धारा 6 ए को कानून में जोड़ा गया था। ऐसा करने का उद्देश्य था असम में रहनेवाले विदेशियों की पहचान और नियमन को स्पष्ट करना।
6 ए के तहत दो प्रमुख कट-ऑफ डेट तय किए गए हैं। पहला 1 जनवरी 1966 से पहले असम में दाखिल होने वाले सभी भारतीय मूल के लोगों को नागरिकता प्रदान की जाएगी। वहीं दूसरा कट ऑफ डेट है 1 जनवरी 1966 से 24 मार्च 1971 तक असम में दाखिल होनेवाले लोगों को नागरिकता दी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट की धारा 6 ए को चुनौती देते हुए कहा गया कि असम के लिए नागरिकता की अलग-अलग कट ऑफ निर्धारित करना संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता के अधिकार) का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने धारा 6ए को बरकरार रखा
सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत का फैसला सुनाते हुए नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। चीफ जस्टिस वाई.चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि असम समझौता अवैध प्रवास की समस्या का राजनीतिक समाधान है। असम समझौते के अंतर्गत आने वाले लोगों की नागरिकता के मामलों से निपटने के लिए एक विशेष प्रावधान के रूप में नागरिकता अधिनियम में धारा 6ए जोड़ी गई थी।
चीफ जस्टिस ने अपना फैसला लिखते हुए धारा 6ए की वैधता को बरकरार रखा और कहा कि असम की भूमि के छोटे आकार और विदेशियों की पहचान कर पाने की लंबी प्रक्रिया के मद्देनजर इस राज्य में प्रवासियों के आने की दर अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है। जस्टिस सूर्यकांत ने अपनी और जस्टिस एम एम सुंदरेश एवं जस्टिस मनोज मिश्रा की ओर से फैसला लिखते हुए चीफ जस्टिस से सहमति जताई और कहा कि संसद के पास इस प्रावधान को लागू करने की विधायी क्षमता है। सुप्रीम कोर्ट के बहुमत के फैसले में कहा गया कि असम में प्रवेश और नागरिकता प्रदान करने के लिए 25 मार्च, 1971 तक की समय सीमा सही है। सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए के संबंध में कहा कि किसी राज्य में विभिन्न जातीय समूहों की उपस्थिति का मतलब अनुच्छेद 29(1) का उल्लंघन कदापि नहीं है। जस्टिस पारदीवाला ने असंवैधानिक करार दिया
बहरहाल, जस्टिस पारदीवाला ने असहमति जताते हुए धारा 6ए को असंवैधानिक करार दिया। पीठ ने धारा 6ए की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए में उन अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है जो एक जनवरी, 1966 से 25 मार्च, 1971 के बीच असम में आए थे। इनमें अधिकतर अवैध प्रवासी बांग्लादेश से आये हैं। यह प्रावधान 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और ‘ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन’ के बीच असम समझौते पर हस्ताक्षर के बाद शामिल किया गया था।