पैदा होते ही देखा अनाथालय का मुंह, 4 साल की उम्र में की बॉलीवुड एंट्री और बन गईं ‘ट्रेजडी क्वीन’, कहलाई हुस्न की मलिका

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पैदा होते ही देखा अनाथालय का मुंह, 4 साल की उम्र में की बॉलीवुड एंट्री और बन गईं ‘ट्रेजडी क्वीन’, कहलाई हुस्न की मलिका
बॉलीवुड में अपनी एक्टिंग के दम पर ट्रेजडी क्वीन कहलाने वाली मीना कुमारी बेहद खूबसूरत थीं। उनकी जिंदगी जरा भी आसान नहीं रही। आज उनकी जयंती के मौके पर जानते हैं कि उन्होंने अपनी जिंदगी में बड़ा मुकाम कैसे हासिल किया।
महजबीन बानो जिन्हें मीना कुमारी के नाम से भी जाना जाता है, अपने समय की एक बेहतरीन अभिनेत्री होने के साथ-साथ एक बहुत अच्छी कवयित्री भी थीं। उन्होंने कई बेहतरीन फिल्मों में काम किया और आज भी उन्हें ट्रेजडी क्वीन के नाम से जाना जाता है। उन्हें भारतीय सिनेमा के इतिहास की सबसे बेहतरीन और महान अभिनेत्रियों में से एक माना जाता है। मीना ने महज 4 साल की उम्र में ही अभिनय करना शुरू कर दिया था। अपने 33 साल के फिल्मी करियर में मीना ने 90 से ज्यादा फिल्मों में अपनी शानदार एक्टिंग से लोगों का दिल जीता।
मीना कुमारी का जन्म 1 अगस्त 1933 को अली बक्स और इकबाल बेगम के घर हुआ था। मीना का जन्म उनके पिता को बिल्कुल पसंद नहीं आया, क्योंकि अली बक्स एक बेटा चाहते थे। मीना के जन्म के बाद उन्हें अनाथालय में छोड़ दिया गया, लेकिन कुछ वक्त बीतने के बाद उन्होंने अपना मन बदल लिया और उन्हें वापस घर ले गए। वह अली और इकबाल की दूसरी बेटी थीं और उनकी दो और बहनें थीं। बड़ी बहन का नाम खुर्शीद जूनियर और छोटी बहन का नाम महलिका था। मीना कुमारी को कभी फिल्मों का शौक नहीं था और न ही उन्होंने कभी फिल्मों में काम करने के बारे में सोचा था क्योंकि मीना को शुरू से ही स्कूल जाना और पढ़ाई करना पसंद था। इसके बावजूद उनके माता-पिता उन्हें काम के लिए फिल्म स्टूडियो ले जाते थे। निर्देशक विजय भट्ट ने मीना को फिल्म ‘लेदरफेस’ में कास्ट किया और काम के पहले दिन उन्हें 25 रुपये दिए गए। ‘लेदरफेस’ 1939 में रिलीज हुई थी। मीना ने यह फिल्म मात्र 4 साल की उम्र में की थी। फिल्म के बाद मीना का दाखिला स्कूल में कराया गया, लेकिन फिल्मों में काम करने की वजह से मीना को कई बार अपनी क्लास छोड़नी पड़ी। मीना के पिता मास्टर अली बक्स एक सुन्नी मुसलमान थे, जो भेरा (अब पाकिस्तान में) से पलायन करके आए थे। वे पारसी थिएटर के दिग्गज थे, हारमोनियम बजाते थे, उर्दू शायरी लिखते थे, संगीत रचना करते थे और कुछ फिल्मों में छोटी भूमिकाएं भी निभाते थे। मीना कुमारी की मां इकबाल बेगम, जिनका मूल नाम प्रभावती देवी था, ईसाई थीं, जिन्होंने अपनी शादी के बाद इस्लाम धर्म अपना लिया था। इकबाल बेगम अली बक्स की दूसरी पत्नी थीं। अली बक्स से मिलने और उनसे शादी करने से पहले वे एक स्टेज अभिनेत्री थीं और कहा जाता था कि उनका संबंध बंगाल के टैगोर परिवार से था।मीना कुमारी ने शुरुआत में विजय भट्ट के ज्यादातर प्रोडक्शन में काम किया, जिनमें ‘लेदर फेस’, ‘अधूरी कहानी’, ‘पूजा’ और ‘एक ही भूल’ जैसी फिल्में शामिल हैं। विजय भट्ट ने फिल्म ‘एक ही भूल’ के दौरान मेहजबीन बानो यानी मीना कुमारी का नाम बदलकर ‘बेबी मीना’ रख दिया था। रमणीक प्रोडक्शन की फिल्म ‘बच्चों का खेल’ मीना कुमारी के नाम पर ही बनी थी। मीना कुमारी की जिंदगी में सबसे बड़ा सदमा उनकी मां की मौत थी, जिनका निधन 25 मार्च 1947 को हुआ था। मीना ने ‘दुनिया एक सराय’, ‘पिया घर आजा’ और ‘बिछड़े बालम’ समेत कई फिल्मों में एक्टिंग और गाने भी गाए थे। 1940 के दशक के आखिर तक उन्होंने अपना रुख पौराणिक या काल्पनिक फिल्मों की तरफ मोड़ लिया था। मीना को असली पहचान फिल्म ‘बैजू बावरा’ से मिली।लीवर सिरोसिस से पीड़ित थीं मीना, अधूरा रह गया प्यार
साल 1968 में मीना कुमारी को पता चला कि वह लीवर सिरोसिस से पीड़ित हैं। 31 मार्च 1972 को उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद उनकी बेहद करीबी दोस्त अभिनेत्री ने मीना के अंतिम संस्कार का खर्च उठाया। कहा जाता है कि जब मीना का अस्पताल का खर्च हद से ज्यादा बढ़ गया तो उनके पूर्व पति कमाल अमरोही गायब हो गए। कहा जाता है कि धर्मेंद्र का मीना कुमारी की जिंदगी में खास स्थान था और दोनों की जोड़ी भी लोगों को काफी पसंद थी।