UCC के विरोध में मस्जिदों में लगे QR कोड, स्कैन करते ही विधि आयोग को जाता है ई-मेल
यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मस्ज़िदों में ‘No UCC’ के QR कोड लगाए हैं। उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में कुरार गांव की हद नूरानी मस्जिद सहित आसपास की मस्जिदों में ये ‘No UCC’ के QR कोड लगाए गए हैं।
समान नागरिक संहिता यानी कि यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर हलचल तेज होती जा रही है। इसको लेकर मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा हिस्सा लगातार विरोध दर्ज करा रहा है। देश में मुसलमानों के सबसे बड़े संगठन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने समान नागरिक संहिता (UCC) का हाईटेक तरीके से विरोध करना शुरू किया है। पर्सनल लॉ बोर्ड ने अब मस्ज़िदों में ‘No UCC’ के QR कोड लगाने शुरू कर दिए हैं। इस कोड को अपने फोन में स्कैन करते ही एक ऑटोमैटिक ई-मेल बन जाता है जो सीधे विधि आयोग को भेजा जा सकता है।
इस मुहिम के साथ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि वह UCC कानून लागू नहीं होने देगा। उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में कुरार गांव की हद नूरानी मस्जिद सहित आसपास की मस्जिदों में ये ‘No UCC’ के QR कोड लगाए गए हैं। इसके साथ ही अपील की गई है कि ज्यादा से ज्यादा लोग ‘No UCC’ के कोड को स्कैन कर विरोध जताएं। इस कोड का कैसे इस्तेमाल करना है, इसको लेकर इक वीडियो भी बनाया गया है। बहुत सारे लोग व्हाट्सअप स्टेटस पर ये कोड लगाकर लोगों तक पहुंचा रहे हैं।AIMPLB ने विधि आयोग को भेजी आपत्ति
बता दें कि करीब एक हफ्ते पहले ही यूसीसी पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपनी आपत्ति संबंधी दस्तावेज बोर्ड की साधारण सभा से अनुमोदन मिलने के बाद विधि आयोग को भेज दिया था। गौरतलब है कि विधि आयोग ने यूसीसी पर विभिन्न पक्षकारों और हितधारकों को अपनी आपत्तियां दाखिल करने के लिए 14 जुलाई तक का वक्त दिया है। हालांकि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसे 6 महीने तक बढ़ाने की गुजारिश की थी।
“यूसीसी न तो आवश्यक है और ना ही वांछित”
AIMPLB द्वारा जारी एक बयान के मुताबिक यूसीसी को लेकर विधि आयोग के समक्ष प्रस्तुत आपत्ति में बोर्ड ने कहा है कि आयोग की तरफ से इस सिलसिले में जारी की गई नोटिस अस्पष्ट और बेहद साधारण सी है। इसमें कहा गया है कि आयोग इससे पहले भी यूसीसी को लेकर जनमत ले चुका है और उस वक्त वह इसी निष्कर्ष पर पहुंचा था कि यूसीसी न तो आवश्यक है और ना ही वांछित, ऐसे में आयोग ने अपनी मंशा का कोई ब्लूप्रिंट सामने रखे बगैर फिर से इस पर जनमत मांगा है, जिसका औचित्य नहीं है।