कभी किराए के मकान में छपती थीं रामचरितमानस और भगवद्गीता, क्या आपको पता है गीता प्रेस की कहानी

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Gita Press History: कभी किराए के मकान में छपती थीं रामचरितमानस और भगवद्गीता, क्या आपको पता है गीता प्रेस की कहानी
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थित गीताप्रेस ने अपने स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर लिये हैं। इस बीच केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि गीताप्रेस को 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। इस मामले पर अब विवाद छिड़ चुका है।
गीता प्रेस गोरखपुर के बारे में आज लगभग हर बच्चा जानता है। हिंदू धर्म की करोड़ों किताबों को प्रकाशित करने वाली गीताप्रेस को स्थापित हुए 100 वर्ष हो चुके हैं। इस कारण गीता प्रेस अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। इस बीच केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि गीता प्रेस को 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। पीएम नरेंद्र मोदी ने इस बाबत गीता प्रेस को बधाई देते उनके योगदानों की सराहना की। इस बीच गीतप्रेस पर पक्ष और विपक्ष की राजनीतिक दलों में विवाद छिड़ चुका है। इस बीच हम आपको आज गीताप्रेस गोरखपुर के इतिहास के बारे में बताएंगे।
गीता प्रेस की स्थापना उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में साल 1923 में की गई थी। लेकिन इससे पहले की कहानी भी बेहद रोचक है। दरअसल गीताप्रेस की नींव तो साल 1921 में ही पश्चिम बंगाल के कोलकाता में स्थित गोविंद भवन ट्रस्ट ने रख दी थी। इस ट्रस्ट के जरिए भगवद्गीता का प्रकाशन होता था। लेकिन इस प्रकाशन के दौरान गीता में कुछ गलतियां रह जाती थीं। इस दौरान जब जयदयाल गोयनका ने प्रेस के मालिक से इस बात की शिकायत की तो प्रेस के मालिक ने स्पष्ट तौर पर बोल दिया कि अगर गीता का शुद्ध प्रकाशन त्रुटिरहित चाहिए तो अपनी अलग प्रेस स्थापित कर लें। इसके बाद गीताप्रेस को गोरखपुर में स्थापित करने का फैसला किया गया और जयदयाल गोयनका, घनश्याम दास जलान और हनुमान प्रसाद पोद्दार ने मिलकर 29 अप्रैल 1923 को गीताप्रेस की स्थापना गोरखपुर में की। इसी के बाद से इसी गीता प्रेस गोरखपुर के नाम से जाना जाने लगा। गीताप्रेस की शुरुआत जिस किराए के मकान से शुरू हुई थी। उसी मकान को गीताप्रेस ने साल 1926 में 10 हजार रुपये में खरीद लिया। बता दें कि हिंदू हिंदू धर्म की सर्वाधिक धार्मिक किताबों को प्रकाशित करने का श्रेय गीता प्रेस को जाता है। गीता प्रेस के कारण ही आसान व सरल भाषा में सभी धार्मिक किताबें समाज में मौजूद हैं जिन्हें हर कोई पढ़ता और सीखता है।
गीताप्रेस दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है। गीताप्रेस 14-15 भाषाओं में अपनी पुस्तकों को प्रकाशित करता है। अबतक गीताप्रेस ने 41.7 करोड़ पुस्तकों का प्रकाशन किया है। इसमें 16.21 करोड़ प्रतिया श्रीमद्भगवद्गीता की हैं। वहीं गीताप्रेस ने रामचरितमानस, रामायण, तुलसीदास और सूरदारस के कई साहित्यों को प्रकाशित किया है। शिवपुराण, गरुण पुराण, पुराण की करोड़ों किताबें गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित किए जा चुके हैं। बता दें कि गीताप्रेस का कार्यभार गवर्निंग काउंसिल यानी ट्रस्ट बोर्ड संभालती है। गीताप्रेस न तो चंदा मांगती है और न ही विज्ञापन करके कमाई करती है। समाज के लोग ही गीताप्रेस के खर्चों का वहन करते हैं।

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