Holi 2023: होली क्यों मनाई जाती है? जानिए इसे मनाने के पीछे की क्या है पौराणिक कथाएं
Holi 2023: होली मनाने के पीछे की वजह क्या है जानिए इस पर्व से जुड़ी प्रचलित पौराणिक कथाएं। साथ ही जानिए आखिर रंग वाली होली की शुरुआत कैसे हुई।
Holi Mythological Story: हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होली मनाई जाती है। इस दिन पूरा देश गुलाल-अबीर और रंग में सराबोर रहता है। हर कोई एक-दूसरे पर प्यार के रंग बरसाते हैं। होली के रंगों को प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है। कृष्ण नगरी मथुरा में धूमधाम तरीके से होली का पर्व मनाया जाता है। कृष्ण-राधा के प्रेम में रंगने के लिए और ब्रज की होली के साक्षी बनने के लिए दूर-दूर से भक्त यहां आते हैं। होली में भगवान नारायण और महादेव की भी पूजा का विधान है।
यूं तो अधिकतर लोगों को पता है कि होली क्यों मनाई जाती है। लेकिन आज भी बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें नहीं पता कि आखिर हम सब फाल्गुन में ही होली क्यों खेलते हैं। तो आइए आज जानते हैं कि होली मनाने की शुरुआत कैसे हुई और इसके पीछे कौन-कौन सी प्रचलित कथाएं हैं।
होली मनाने के पीछे की पौराणिक कथाएं-
शिवजी से जुड़ी कथा
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, माता पार्वती महादेव से विवाह के लिए कठिन तप कर रही थी। वहीं भगवान शिव भी अपनी तपस्या में लीन थे। शिवजी और मां गौरी के पुत्र के हाथों द्वारा ही राक्षस ताड़कासुर का वध निश्चचित था। ऐसे में भोलेनाथ और माता का विवाह होना बहुत ही जरूरी था। तब इंद्र और अन्य देवताओं ने मिलकर कामदेव को शिवजी की तपस्या भंग करने के लिए भेजा। कामदेव ने शिवशंकर की तपस्या भंग करने के लिए उनपर ‘पुष्प’ वाण छोड़ा दिया। इससे शिवजी जी की समाधि भंग हो गई और उन्होंने क्रोध में आकर अपना तीसरा नेत्र खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया। लेकिन शिवजी की तपस्या तो भंग हो चुकी थी तब देवताओं ने उन्हें पार्वती जी के साथ विवाह करने के लिए राजी कर लिया। वहीं कामदेव की पत्नी रति ने अपने पति को दोबारा जीवित करने की प्रार्थना की। तब रति को अपने पति के पुनर्जीवन का वरदान मिला। वहीं शिवजी और माता पार्वती की विवाह क खुशी में देवताओं ने इस दिन को उत्सव की तरह मनाया। कहते हैं वो दिन दिन फाल्गुन पूर्णिमा का ही दिन था।
पौराणिक प्रचलिच कथा के अनुसार, भक्त प्रह्लाद भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे। उनके पिता हिरण्यकश्यप को अपने बेटे की यह भक्ति बिल्कुल रास नहीं आती थी। एक बार उन्होंने अपनी बहन होलिका के साथ प्रह्लाद को मारने की साजिश रची। दरअसल, होलिका को ऐसा वस्त्र वरदान में मिला हुआ था जिसको पहन कर आग में बैठने से उसे आग नहीं जला सकती थी। यही वस्त्र पहनकर होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई। भगवान विष्णु के आशीर्वाद से भक्त प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ और होलिका आग में जल गई। बुराई पर अच्छाई की जीत और शक्ति पर भक्ति की विजय के रूप में होली का पर्व मनाया जाता है।
मान्यताओं के मुताबिक, भगवान कृष्ण का रंग सांवला था और राधा रानी गोरी थीं। इस बात को लेकर अक्सर कान्हा अपनी मईया यशोदा से शिकायत करते थे कि वह क्यों नहीं गोरे हैं। इसके बाद एक दिन यशोदा जी ने भगवान कृष्ण को कहा कि जो तुम्हारा रंग है उसी रंग को राधा के चेहरे पर भी लगा दो फिर तुम दोनों का रंग एक जैसा हो जाएगा। फिर क्या था कृष्ण अपनी मित्र मंडली ग्वालों के साथ राधा को रंगने के लिए उनके पास पहुंच गए। कृष्ण ने अपने मित्रों के साथ मिलकर राधा और उनकी सखियों को जमकर रंग लगाया। कहते हैं कि तब से ही रंग वाली होली की परंपरा शुरू हुई। आज भी मथुरा में भव्य और धूमधाम तरीके से होली खेली जाती है।