मांसाहारी महिलाओं के दूध में मिल रहा साढ़े तीन गुना ज्यादा कीटनाशक मां से पहुंच रहा शिशुओं में

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एजेंसी समाचार
लखनऊ। फसलों व खानपान की चीजों में खतरनाक रसायनों के अंधाधुंध उपयोग से हमारे नवजात भी अछूते नहीं हैं। मां के दूध से इनमें जन्म के साथ ही कीटनाशक और अन्य खतरनाक रसायन पहुंच रहे हैं। मांसाहार करने वाली महिलाओं के मामले में स्थिति और खतरनाक है। शाकाहारी माताओं के मुकाबले इनके दूध से साढ़े तीन गुना तक ज्यादा कीटनाशक शिशुओं में पहुंच रहा है। केजीएमयू के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग (क्वीन मेरी) में हुए अध्ययन में ये तथ्य सामने आए हैं।
इंवायर्नमेंटल रिसर्च जर्नल में प्रकाशित यह अध्ययन डॉ. नैना द्विवेदी, प्रो. अब्बास अली मेंहदी और प्रो. सुजाता देव ने किया है। प्रो. सुजाता देव बताती हैं कि खान-पान का हम पर असर पड़ता ही है। लिहाजा हम यह पता लगाना चाहते थे कि, क्या स्तनपान से शिशुओं में भी कीटनाशक पहुंचता है। इसके लिए विभाग में आईं 130 महिलाओं पर अध्ययन किया गया। इनमें करीब एक तिहाई महिलाएं मांसाहार करने वाली थीं। प्रसव के बाद लिए गए महिलाओं के दूध में कीटनाशक का प्रभाव मिला। इससे साफ है कि भले ही नवजात कीटनाशकयुक्त अनाज या अन्य पदार्थों का सेवन नहीं करते हों, पर मां के दूध के साथ कीटनाशक उनमें पहुंच रहा है। चौंकाने वाली बात रही कि मांसाहार करने वाली महिलाओं के दूध में कीटनाशक की मात्रा साढ़े तीन गुना तक ज्यादा मिली। इसी तरह अधिक उम्र में मां बनने वाली और समय से पहले प्रसव वाली माताओं के दूध में भी कीटनाशक का प्रभाव सामान्य महिलाओं के मुकाबले कई गुना ज्यादा मिला।
यह अध्ययन अहम क्यों?
प्रो. सुजाता के अनुसार दुर्भाग्य है कि अब भी अपने यहां कीटनाशक के उपयोग से संबंधित गाइडलाइन नहीं है। किसान मनमानी तरीके और मनचाही मात्रा में इनका इस्तेमाल कर रहे हैं। फसलों की ज्यादा पैदावार और कीड़ों से रखवाली के लिए बाजार में जो कीटनाशक हैं, उनके लिए कोई मानक नहीं हैं। यही कीटनाशक खाने के माध्यम से हमारे और बच्चों में पहुंच रहे हैं।
इसके बारे में हमें जानने की जरूरत क्यों?
केजीएमयू के फॉरेंसिक एंड टॉक्सिकोलॉजी विभाग की डॉ. शिऊली राठौर ने बताया कि कोई भी कीटनाशक या रसायन हमारे शरीर को नुकसान पहुंचाता है। हम सजग रहकर ही इनसे बच सकते हैं। इनका प्रभाव दो तरह से होता है। कुछ मामलों में इसका असर तुरंत दिखाई देता है। वहीं, कुछ मामलों में धीरे-धीरे ये खतरनाक रसायन शरीर में जमा होते रहते हैं और बाद में इनका दुष्प्रभाव सामने आता है। अलग-अलग कीटनाशकों का हमारे अंगों पर अलग-अलग दुष्प्रभाव होता है।
हम कैसे बचाव कर सकते हैं?
डॉ. शिऊली राठौर बताती हैं कि फिलहाल कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग से बचना होगा। वहीं, प्रो. सुजाता इसी सवाल पर कहती हैं-इसके लिए कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल के लिए एक सख्त गाइडलाइन की जरूरत है। यही नहीं, मां के दूध के जरिये बच्चे में पहुंच रहे कीटनाशक और खतरनाक रसायन उसपर कितना दुष्प्रभाव डालते हैं, इस बारे में अभी और अध्ययन की जरूरत है।
चिकन या जानवरों का वजन बढ़ाने के लिए दी जाने वाली दवाइयों का कितना दुष्प्रभाव होता है?
डॉ. शिऊली इस सवाल पर कहती हैं, आमतौर पर चिकन या अन्य जानवरों का वजन, आकार बढ़ाने के लिए जो इंजेक्शन दिए जाते हैं वे हार्मोनल होते हैं। इनका दुष्प्रभाव तो निसंदेह होगा ही। जहां तक बात मांस में कीटनाशकों की मौजूदगी का है, तो इस पर कोई टिप्पणी विशेष शोध के बाद ही की जा सकती है। यह संभव है कि वे जो मांसाहार करती हों उसमें कीटनाशक की मौजूदगी हो, लेकिन स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता।

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