एजेंसी समाचार
देहरादून/बदरीनाथ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आधुनिक कनेक्टिविटी राष्ट्ररक्षा की गारंटी है। भारतमाला, सागरमाला योजना के बाद अब पर्वतमाला की बारी है। पर्वतमाला के तहत उत्तराखंड और हिमाचल में रोपवे नेटवर्क का बड़ा काम आगे बढ़ने वाला है। पीएम चीन सीमा के पास स्थित माणा गांव में एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि सीमा पर बसा हर गांव देश का पहला गांव है। उन्होंने देश के 130 करोड़ नागरिकों से प्रार्थना की कि वे देश में जहां भी जाएं, अपनी यात्रा का पांच प्रतिशत स्थानीय उत्पादों की खरीद पर खर्च करें। इससे वहां की आर्थिकी को मजबूती मिलेगी।
मोदी ने जनसभा से पहले केदारपुरी पहुंचकर बाबा केदार की पूजा अर्चना कर रुद्राभिषेक किया। इसके बाद केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्यों का निरीक्षण भी किया। फिर वह बदरीनाथ धाम पहुंचे जहां दर्शन और पूजा-अर्चना की। इस दौरान उनके साथ राज्यपाल ले.ज.गुरमीत सिंह (सेनि.) और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी मौजूद थे।
करीब 3400 करोड़ लागत के गौरीकुंड-केदारनाथ रोपवे और गोविंदघाट-हेमकुंड साहिब रोपवे तथा माणा से माणा पास और जोशीमठ से मलारी डबल लेन सड़क परियोजना का शिलान्यास करने के बाद उन्होंने माणा में जनसभा की। विधानसभा चुनाव के बाद पहली बार जनसभा में उन्होंने कहा कि आधुनिक कनेक्टिविटी राष्ट्ररक्षा की भी गारंटी होती है। इसलिए बीते आठ सालों से हम इस दिशा में एक के बाद एक कदम उठा रहे हैं। भारतमाला के तहत देश के सीमावर्ती क्षेत्रों को बेहतरीन और चौड़े हाईवे से जोड़ा जा रहा है।
सागरमाला से अपने सागर तटों की कनेक्टिविटी को सशक्त किया जा रहा है, सागरमाला और भारतमाला के बाद अब पर्वत माला की बारी है। इससे पहाड़ों पर विकास हो रहा है। रोपवे और ट्रेनें चलेंगी। उन्होंने कहा कि पहले जिन इलाकों को देश की सीमाओं का अंत मानकर नजरांदाज किया जाता था, हमने वहां से समृद्धि का आरंभ मानकर काम शुरू किया। पहले देश का आखिरी गांव जानकर जिसकी उपेक्षा की जाती थी, हमने वहां के लोगों की अपेक्षाओं पर फोकस किया।
पीएम ने कहा कि कुछ लोगों को गुलामी की मानसिकता ने ऐसा जकड़ा हुआ है कि प्रगति का हर कार्य उनको अपराध की तरह लगता है। लंबे समय तक हमारे यहां अपने आस्था स्थलों के विकास को लेकर एक नफरत का भाव रहा। विदेशों में वहां की संस्कृति से जुड़े स्थानों की ये लोग तारीफ करते-करते नहीं थकते थे, लेकिन भारत में इस प्रकार के काम को हेय दृष्टि से देखा जाता था। उन्होंने सोमनाथ और राम मंदिर का उदाहरण दिया। पीएम ने कहा कि इन सवालों के जवाब देने के लिए ईश्वर ने मुझे यह काम दिया है।
मोदी ने कहा कि ये लोग हजारों वर्ष पुरानी हमारी संस्कृति की शक्ति को समझ नहीं पाए। वे ये भूल गए कि आस्था के ये केंद्र सिर्फ एक ढांचा नहीं बल्कि हमारे लिए प्राणवायु की तरह हैं। वो हमारे लिए ऐसे शक्तिपुंज हैं, जो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी हमें जीवंत बनाए रखते हैं। उनकी घोर उपेक्षा के बावजूद न ही हमारे आध्यात्मिक केंद्रों का महत्व कम हुआ, न ही उन्हें लेकर हमारे समर्पण में कोई कमी आई। आज काशी, उज्जैन, अयोध्या, अनगिनत ऐसे श्रद्धा के केंद्र अपने गौरव को पुन: प्राप्त कर रहे हैं।
मोदी ने कहा कि अहमदाबाद, पुणे, चेन्नई में एनसीसी 75 साल चली और अब वह सीमांत गांवों में चलेगी। पूरे देश में सीमावर्ती क्षेत्र में जो अच्छे स्कूल होंगे, वहां एनसीसी शुरू की जाएगी।
उन्होंने कहा कि केदारनाथ, बदरीनाथ, हेमकुंड साहिब को आधुनिक सुविधाओं से जोड़ा जा रहा है। यह हमारी नीति होनी चाहिए कि आस्था के ये स्थल मेरे देश की नई पीढ़ी के लिए भी श्रद्धा और आकर्षण का केंद्र बनेंगे।
पीएम ने कहा कि देवभूमि उत्तराखंड स्वयं इस परिवर्तन की साक्षी बन गई। डबल इंजन की सरकार बनने से पहले केदारनाथ में एक सीजन में ज्यादा से ज्यादा पांच लाख श्रद्धालु आते हैं। अब इस जीवंत सीजन में 45 लाख श्रद्धालु आए।
पीएम ने कहा कि आस्था-अध्यात्म स्थलों के पुनर्निर्माण का एक अन्य पक्ष की उतनी चर्चा नहीं होती। विरासत पर गर्व और विकास 21वीं सदी के विकसित भारत के निर्माण के दो प्रमुख स्तंभ हैं।
पीएम ने कहा कि माणा गांव, भारत के अंतिम गांव के रूप में जाना जाता है, लेकिन मेरे लिए सीमा पर बसा हर गांव देश का पहला गांव है। उन्होंने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की इस बात को दोहराया।
पहले की सरकारों ने पहाड़ के सामर्थ्य को उसके खिलाफ इस्तेमाल किया
मोदी ने पूर्व सरकारों पर भी तंज किया। कहा कि पहले की सरकारों ने पहाड़ के सामर्थ्य को उसके खिलाफ इस्तेमाल किया। पहाड़ के लोग मेहनती होते हैं। उन्हें साहस और जुझारूपन के लिए जाना जाता है। वह प्रकृति के प्रति शिकायत नहीं करते। दशकों तक सरकारें ये सोचकर पहाड़ की उपेक्षा करती रहीं। पहाड़ के लोगों का नंबर सबसे बाद में आता था। पहाड़ के लोगों के साथ हो रहे इस अन्याय को मुझे समाप्त करना ही था। इसलिए हमने वहां से समृद्धि का आरंभ मानकर काम शुरू किया।