10 वर्षों के अनुसंधान के बाद खोजा पराली का गजब समाधान, अब आप भी कहेंगे जय विज्ञान
जिस पराली के धुएं से हर साल दिल्ली एनसीआर समेत अन्य जगहों पर हाहाकार मच जाता था और जिसकी वजह से प्रदूषण स्तर में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी का दोष मढ़ा जाता था, अब उसका समाधान वैज्ञानिकों ने 10 वर्षों के गहन अनुसंधान के बाद खोज निकाला है।
सीएसआइआर और राष्ट्रीय जैव ऊर्जा संस्थान के वैज्ञानिकों ने किया कमालपराली से खोजी सस्ता कोयला बनाने की तकनीकिएनटीपीसी को सस्ता कोयला मिलने से बिजली दरों में गिरावट आने की उम्मीद
जिस पराली के धुएं से हर साल दिल्ली एनसीआर समेत अन्य जगहों पर हाहाकार मच जाता था और जिसकी वजह से प्रदूषण स्तर में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी का दोष मढ़ा जाता था, अब उसका समाधान वैज्ञानिकों ने 10 वर्षों के गहन अनुसंधान के बाद खोज निकाला है। वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) और राष्ट्रीय जैव ऊर्जा संस्थान ने अब पराली से कोयला बनाने का नायाब विकल्प तैयार किया है। इसे पराली संकट के समाधान में बड़ी सफलता के तौर पर देखा जा रहा है। इस तकनीकि में दोनों संस्थानों के वैज्ञानिकों ने पराली के साथ ही अन्य कृषि अवशेषों को मिलाकर कोयला बनाने की विधि ईजाद की है।
पंजाब के जालंधर में लगा पहला प्लांट
वैज्ञानिकों ने पराली और अन्य कृषि अवशेषों से कोयला बनाने का पहला संयंत्र पंजाब के जालंधर में लगाया है। सीएसआइआर और राष्ट्रीय जैव ऊर्जा संस्थान की इस क्रांतिकारी खोज में राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (एनटीपीसी) ने भी रुचि दिखाई है। इस तकनीकि को विकसित करने वाली टीम का नेतृत्व उद्योगपति अजय पलटा कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि पांच वर्ष पहले इस तकनीकि से उन्होंने कोयला बनाना शुरू किया था, लेकिन उसमें कुछ तकनीकी खामियां थीं। मगर इसे बेहतर करने के लिए कार्य किया गया। अब इसमें पराली के साथ अन्य कृषि अवशेष और पत्तों का इस्तेमाल भी हो सकता है। राष्ट्रीय प्रयोगशाला में पास हुआ पराली से बना कोयला
सीएसआइआर से जुड़े नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी ने वैज्ञानिकों द्वारा पराली से तैयार किए गए कोयले का निरीक्षण भी कर लिया है। उनके निरीक्षण में यह कोयला पास हो गया है। इस मशीन के जरिये 10 टन कृषि अवशेष से एक साथ कोयला बनाने की क्षमता है। अभी इस मशीन को सार्वजनिक नहीं किया गया है। वैज्ञानिक जल्द ही इसे सार्वजनिक करने पर विचार कर रहे हैं। ताकि इसका लाभ ज्यादा से ज्यादा राज्यों के किसान उठा सकें।
पराली अब प्रदूषण नहीं, आर्थिक समृद्धि का बनेगी जरिया
जो पराली अब तक वायु प्रदूषण का कारण थी, अब वही पराली वैज्ञानिकों के इस नए अनुसंधान के बाद किसानों की आर्थिक तरक्की का जरिया बनेगी। यानि जिस पराली को किसान खेतों में जला देते थे या फिर उसे रौंद देते थे अथवा कहीं फेंक देते थे, अब उसी पराली को बेचकर वह आर्थिक मुनाफा भी ले सकेंगे। यह तकनीकि निश्चित रूप से वातावरण के साथ ही साथ किसानों के लिए वरदान साबित होगी।
नमी रहित कोयला बनाती है मशीन
इस तकनीकि की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके जरिये नमी रहित कोयला बनाया जाता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जो कोयला खदान से निकलता है, उसमें बहुत अधिक नमी रहती है, लेकिन इस कोयले में नमी नहीं होना सबसे बड़ा फायदे का सौदा है। छोटे थर्मल पावर स्टेशनों के लिए तो यह किसी वरदान से कम नहीं है। इसके जरिये बनने वाली बिजली अब लोगों के घरों को रोशन करेगी। साधारण कोयले से तीन गुना तक सस्ता
पराली से बना कोयला साधारण कोयले से अच्छा और तीन गुना तक सस्ता भी होगा। साधारण कोयला बाजार में फिलहाल 30 रुपये प्रति किलो की दर से मौजूद है। वहीं पराली से बनाए जाने वाले इस कोयले की कीमत बाजार में 12 रुपये प्रति किलो तक होगी। इससे एनटीपीसी की लागत में भी कमी आएगी। इससे बनने वाली बिजली को भी सस्ता करके आमजनों तक पहुंचाया जा सकता है। इससे लोगों को बिजली के लिए कम पैसे खर्च करने पड़ेंगे।