तंगहाली से गुजर रहा है आगरा का ‘पागलखाना’, नहीं मिल रहा बजट, जिससे हालात हैं दयनीय

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तंगहाली से गुजर रहा है आगरा का ‘पागलखाना’, नहीं मिल रहा बजट, जिससे हालात हैं दयनीय
यह अस्पताल मनोरोगियों के इलाज के लिए प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश और दुनिया में प्रसिद्ध है। लेकिन यह मेंटल हॉस्पिटल बदहाली की ओर है। वजह है सरकार का इस पर ध्यान न देना। सरकार का बजट न देना, जिस वजह से यहां के हालात दयनीय और चिंताजनक हो गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यहां MD और M.Phil की पढ़ाई होती हैM.Phil के स्टूडेंट्स की फीस को 45 हजार से बढ़ाकर 1.5 लाख करने का प्रस्तावयहां होने वाले खर्चे के लिए बजट देने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है
आगरा, जहां का ताजमहल पूरी दुनिया में फेमस। आगरा, जहां के पेठे की मिठास पूरी दुनिया की जुबान पर रहती है। आगरा को एक और वजह से जाना जाता है, वह है यहां का पागलखाना यानि मनोरोगियों का अस्पताल। यह अस्पताल (पागलखाना) यहां अंग्रेजों के जमाने से है। यह अस्पताल मनोरोगियों के इलाज के लिए प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश और दुनिया में प्रसिद्ध है। लेकिन यह मेंटल हॉस्पिटल बदहाली की ओर है। वजह है सरकार का इस पर ध्यान न देना। सरकार का बजट न देना, जिस वजह से यहां के हालात दयनीय और चिंताजनक हो गए हैं।आपको बता दें कि पूरे यूपी में आरसीआई द्वारा मान्यता प्राप्त क्लीनिकल साइकोलॉजी कोर्स की कुल 52 सीटें हैं, उनमें से 10 सीटें इस हॉस्पिटल में हैं। बजट न मिलने से मेंटल हॉस्पिटल में एम फिल के स्टूडेंट्स बिना शिक्षकों के शोध कर रहे हैं।फ़ीस तो बढ़ा दी लेकिन शिक्षक हैं ही नहीं
दो दिन पूर्व कमिश्नर अमित गुप्ता ने हॉस्पिटल की प्रबंध समिति की एक बैठक भी बुलाई थी। उसमें M.Phil के स्टूडेंट्स की फीस को 45 हजार से बढ़ाकर 1.5 लाख करने का प्रस्ताव रखा गया। जबकि पिछले 4-5 महीने से यहां शिक्षकों की नियुक्तियां तक नहीं हुई हैं। बजट न होने के कारण शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो पा रही है। यहां तक हॉस्पिटल के स्टाफ का वेतन भी 3 महीने से लटका हुआ है।हजारों युवा आते हैं यहां रिसर्च करने
मनोरोगियों के इलाज व उनकी देखरेख के लिए आगरा का यह हॉस्पिटल पूरे देश में मशहूर है। यहां रिसर्च एवं ट्रेनिंग लेने का सपना इस क्षेत्र में अपना भविष्य बनाने वाले लाखों युवा सपना देखते हैं। रिहैबिलिटेशन काउंसिल ऑफ इंडिया (आरसीआई) द्वारा पूरे प्रदेश में चार इंस्टीट्यूट क्लीनिकल साइकोलॉजी के लिए एप्रूव्ड हैं। जिनमें आगरा मेंटल हॉस्पिटल, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनीवर्सिटी (केजीएमयू), लखनऊ के अलावा गौतमबुद्ध यूनीवर्सिटी, ग्रेटर नोएडा समेत एक निजी विश्वविद्यालय इस चुनिंदा नामों में शामिल है।अस्पताल और कोर्स को संचालित करने की जिम्मेदारी सरकार की – कोर्ट आपको बता दें कि इस अस्पताल के रखरखाव और देखरेख की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। यहां होने वाले खर्चे के लिए बजट देने की जिम्मेदारी भी राज्य सरकार की ही है। मेंटल हॉस्पिटल को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहले ही गाइड लाइन तय कर चुका है। दरअसल 1995 अमन हिंगोरानी वर्सेज भारत संघ मामले में सुनवाई के बाद से यह कोर्स संचालित हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ही यहां MD और M.Phil के कोर्स चल रहे हैं। जनवरी में हाईकोर्ट ने भी प्रदेश सरकार को निर्देश दिए थे कि यह कोर्स बंद नहीं होने चाहिए। इनके संचालन के लिए जो भी आवश्यकता हैं, वो राज्य सरकार पूरी करे। मामले में मार्च तक प्रदेश सरकार को सारी रिपोर्ट कोर्ट में सम्मिट करने के आदेश दिए थे। प्रदेश सरकार ने सुध नहीं ली तो कोर्ट ने इसे उसकी अवमानना मानते हुए सरकार को फटकार भी लगाई थी। बाद में कोर्ट ने प्रदेश सरकार को दो माह का और समय दे दिया था। अब कोर्ट के द्वारा दिया गया समय भी खत्म होने को है, लेकिन सरकार की तरफ से इस मामले में कोई प्रगति नहीं है।

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