ऑनलाइन गेम्स 15 देशों में बैन, हमारे देश में भी रोक के लिए बने कानून, जानिए और क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?
ऑनलाइन गेम्स की लत इस कदर बच्चों में बढ़ गई है कि इसके आदी होने पर वे असामान्य व्यवहार करते हैं।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक ऐसा मामला सामने आया, जिससे सनसनी फैल गई। एक 16 साल के लड़के ने अपनी मां की सिर्फ इस वजह से हत्या कर दी कि जां ने उसे पबजी खेलने से रोका। ऑनलाइन गेम्स की लत इस कदर बच्चों में बढ़ गई है कि इसके आदी होने पर वे असामान्य व्यवहार करते हैं। लखनऊ में मां की हत्या इसी बात का उदारण है। जानिए कितने खतरनाक हैं ऑनलाइन गेम्स, कहां लगाए हैं प्रतिबंध और इसका क्या पड़ता है असर। हम यह विशेषज्ञों से भी जानेंगे कि बच्चों के मस्तिष्क पर ऑनलाइन गेम्स की लत का ऐसा क्या बुरा प्रभाव पड़ता है कि वे मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं।
भारत में कोई सख्त नियम नहीं
दुनिया के कई देश ऐसे गेम्स की लत से निपटने के लिए अलर्ट मोड पर हैं। ब्राजील में बहुत ज्यादा हिंसा वाले गेम बंद किए। ऑस्ट्रेलिया में भी हिंसक, आपत्तिजनक व विवादित कंटेंट वाले ऑनलाइन गेम्स की अनुमति नहीं है। वहीं भारत में अभी तक इसे लेकर कोई सख्त नियम नहीं हैं। हालांकि भारत पबजी जैसे कई चाइनीज ऑनलाइन गेम्स पर दो साल पहले ही पाबंदी लगा चुका है, लेकिन अब भी ये गेम उपलब्ध हो रहे हैं।
दुनिया के इन देशों में ऑनलाइन गेम्स प्रतिबंधित
जबकि चीन, वेनेजुएला, ब्राजील जापान जैसे 15 देश ऑनलाइन गेम्स पर प्रतिबंध लगा चुके हैं। बैन का आधार आपत्तिजनक और हिंसक कंटेंट को बताया गया है। वेनेजुएला वर्ष 2009 में ही वीडियो गेम्स बनाने, बेचने और इस्तेमाल करने पर रोक लगा चुका है। इसी तरह सिंगापुर, सऊदी अरब, जर्मनी, ब्रिटेन, मलेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड, यूएई, ईरान और पाकिस्तान भी कई पाबंदियां लगा चुके हैं। चीन में 18 साल से कम उम्र वालों को सुबह 8 से रात 9 बजे के बीच शुक्रवार, शनिवार, रविवार और सार्वजनिक छुट्टी के दिन अधिकतम 3 घंटे तक ही ऑनलाइन गेम खेलने की अनुमति दी जाती है।
कहां आ रही है समस्या? 4 अहम बातों से समझिए
सीनियर आईटी एंड साइबर एक्सपर्ट समीर शर्मा स्पष्ट इंडिया टीवी डिजिटल से चर्चा में स्पष्ट रूप से कहते हैं कि हमारे देश में कोई स्पष्ट पॉलिसी नहीं है जो ऑनलाइन गेम्स पर कंट्रोल कर पाए और उसे सेंसर करे।
होता यह है कि इसमें एडल्ट एजग्रुप की टास्क माइनर एजग्रुप के बच्चों को दी जाती है। इस उम्र में किशोरवय का लड़का न बच्चा रहता है न बड़ा होता है। उनका मानसिक संतुलन इतना मेच्चोर नहीं होता है। इस कारण वे ऐसे ऑनलाइन गेम्स के आदी हो जाते हैं।
ऑनलाइन गेम्स ग्लोबली होते हैं। यदि कोई बच्चा इन्हें खेलना चाहे तो ऐसे ऑनलाइन गेम्स इंटरनेशनल प्ले स्टोर से संचालित होते हैं, जहां पर से आसानी से डाउनलोड कर लेते हैं। हमारे देश में प्ले स्टोर पर प्रतिबंध भी लगा दिया जाए तो वे इंटरनेशनल प्ले स्टोर से डाउनलोड किए जा सकते हैं।
आजकल सोशल मीडिया के दौर में कुछ नहीं छिपाया या प्रतिबंधित किया जा सकता है। क्योंकि ऑनलाइन गेम्स यदि बैन भी कर दिया या उसे प्ले स्टोर्स पर बंद कर दिया तो भी उसकी लिंक टेलीग्राम, टॉरेंट जैसे प्लेटफॉर्म्स से आसानी से उपलब्ध हो जाती है। इनका आसानी से एक्सेस मिल जाता है और बच्चों को आसानी हो जाती है।
सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि बच्चों में मॉरल इनपुट्स और उनकी साइकोलॉजिकल बैलेंसिंग के लिए कोई पाठ्यक्रम नहीं है। ऐसा पाठ्यक्रम सरकार को संचालित या निर्धारित करना चाहिए, जिससे कि बच्चों को ऐसे ऑनलाइन गेम्स के अच्छे और बुरे प्रभावों के बारे में बताया जा सके या वे खुद इसके बुरे प्रभाव के बारे में समझ सकें।
…तो फिर क्या करे सरकार? 2 बातों से जानिए
सरकार को रीहेब सेंटर पर गैजेट डी—एडिक्शन के लिए काउंसलिंग सेंटर्स स्थापित करना चाहिए। समीर शर्मा बताते हैं किबच्चों को ऑनलाइन गेम्स की लत न लगे, इसमें पेरेंट्स का बहुत बड़ा रोल होता है। जो पेरेंट्स पढ़े लिखे हैं वो पेरेंटल मॉनिटरिंग ऐप्स बच्चों के मोबाइल में डालें। उनका ऑनलाइन गेम्स खेलने का समय निर्धारित करें। वहीं बच्चा कौनसा गेम्प खेल रहा है इसकी मॉनिटरिंग भी की जा सकती है। इसलिए पेरेंट्स भी स्मार्ट बनें।
देश में अगर कोई भी गेम लांच हो रहा है, तो इसके लिए भारत सरकार को यह चाहिए कि वो फिल्म सेंसर बोर्ड की तरह एक ऐसा प्लेटफॉर्म विकसित करे, जो गेम्स की उपयोगिता को जांचें। हमारे देश में आईटी एक्सपर्ट्स और साइबर एक्सपर्ट्स की कमी नहीं है। ऐसे लोगों को लेकर एक बोर्ड स्थापित करना होगा, जो ऑनलाइन गेम्स को पैमाने पर परखे। क्योंकि भारत में 40 करोड़ बच्चे हैं, जो इसके दुष्प्रभाव से बच सकते हैं।
कंडक्ट डिसॉर्डर की वजह से हिंसक हो जाते हैं बच्चे, जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
बच्चों की साइकोलॉजी पर कई वर्षों से काम कर रहे मनोचिकित्सक विनय मिश्रा ने इंडिया टीवी डिजिटल को बताया कि ये सिर्फ पबजी तक ही सीमित रहने वाली बात नहीं है। ऐसे बच्चों में कंडक्ट डिसॉर्डर होता है। इस कारण उन्हें किसी की बात सुनने में दिक्कत होती है। वे टीचर, माता पिता या बड़ों की बातें नहीं सुन सकते हैं। ऐसे बच्चे आगे चलकर क्रिमिनल मांइंड हो जाते हैं।
एक्सपर्ट बताते हैं कि ऐसे बच्चों की प्रवृत्ति कुछ ऐसी हो जाती है कि उन्हें जो चीज चाहिए वो उस समय न मिले, तो वे हतोत्साहित हो जाते हैं। कंडक्ट डिसॉर्डर वाले बच्चों के लिए यह असहनीय होता है और वे बहुत अधीर हो जाते हैं।
ऐसे बच्चों को कैसे कंट्रोल किया जाए?
ऐसे बच्चों में प्रारंभिक लक्षण देखें जाएं। क्योंकि ऐसे बच्चे जानवरों के प्रति ज्यादा निर्दयी होते हैं। कंडक्ट डिसॉर्डर वाले बच्चों के ये सबसे प्रारंभिक लक्षण होते हैं।
दूसरा यह कि ऐसे बच्चों में आग लगाने का व्यवहार रहता है यानी आग पकड़ती चीज जो जलकर राख हो जाती, उसे ध्वस्त होते हुए देखने में बहुत आनंद आता है।
इन बच्चों में वॉयलेंस का दर्जा बहुत ज्यादा होता है। यदि वे नाराज हो गए तो ब्लेड या नुकीली पेंसिल से किसी पर हमला कर देते हैं।
इन बातों का रखें ध्यान
ऐसे बच्चों को चाहित कि वे स्वयं का अवलोकन करें। इसके लिए माता-पिता भी उन्हें हेल्प करें।
बच्चे बड़ों का ही अनुसरण करते हैं। इसलिए पेरेंट्स बच्चों के सामने अभद्रता व हिंसा न करें।
कई बार बलि चढ़ाने जैसे दृश्य बच्चों के सामने हो जाते हैं। या फिर जानवरों को बुरी तरह पीटा जाता है। इसलिए बड़ों को चाहिए कि वे जानवरों के प्रति हिंसा बच्चों के सामने न करें। नहीं तो वे भी अनुसरण करेंगे।