‘आतंकवाद का प्रायोजक देश’: क्या होगा अगर अमेरिका ने रूस को दे दिया ये दर्जा, क्या भारत के लिए मुश्किल हो जाएगी दोस्ती, जानें

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रूस-यूक्रेन युद्ध का अंत अब तक नहीं हो पाया है। अमेरिका, ब्रिटेन समेत पश्चिमी देशों को उम्मीद थी कि वह राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की सरकार के खिलाफ सख्त प्रतिबंध लगाकर रूस को युद्ध आगे बढ़ाने से रोक सकता है। हालांकि, पश्चिमी देशों के मंसूबे अब तक सफल नहीं हो पाए हैं और पुतिन की सेना ने यूक्रेन के प्रमुख शहरों पर अपने हमले जारी रखे हैं। इस बीच यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने मांग की है कि पश्चिमी देश रूस को आतंकवाद के प्रायोजक देश के तौर पर चिह्नित करें, ताकि उसे आगे हमलों से रोका जा सके। रिपोर्ट्स की मानें तो अमेरिका ने इस प्रस्ताव को लेकर गंभीर विचार भी शुरू कर दिया है। ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर यह आतंकवाद प्रायोजक देश का मतलब क्या है और किन देशों को यह दर्जा दिया जाता है। जिन्हें इस श्रेणी में रखा जाता है, उन पर किस तरह के प्रतिबंध लागू होते हैं और उनके साथ किसी भी तरह की साझेदारी रखने वाले देशों को किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है?…
स्टेट स्पॉन्सर ऑफ टेररिज्म यानी आतंकवाद प्रायोजक देश का दर्जा अमेरिका के प्रतिबंधों के जखीरे का सबसे बड़ा हथियार है। किसी देश को इस लिस्ट में रखा जाना कितना गंभीर है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि फिलहाल इसमें सिर्फ चार देश- सीरिया, ईरान, उत्तर कोरिया और क्यूबा ही शामिल हैं। यानी अमेरिका की नजर में यह देश बुरे से भी बुरे देशों की श्रेणी में हैं। इस लिस्ट में पहले इराक, लीबिया, दक्षिण यमन और सूडान जैसे देश भी रह चुके हैं।अमेरिकी प्रशासन में किसी भी देश को आतंकवाद प्रायोजक देश का दर्जा देने की ताकत विदेश मंत्री यानी सेक्रेटरी ऑफ स्टेट के पास होती है। यानी मौजूदा विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के साथ सलाह-मशविरा करने के बाद रूस को आतंकवाद प्रायोजक देश के वर्ग में रख सकते हैं। अमेरिका की तरफ से किसी भी देश को आतंकवाद प्रायोजक देश का दर्जा तभी दिया जाता है, जब उनकी तरफ से बार-बार अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद को भड़काने या दूसरे देशों की जमीन पर आतंकी गतिविधियों में सहायता देने की बात साबित हो जाती है। अमेरिकी कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस (सीआरएस) के मुताबिक, मौजूदा समय में तीन तरह के नियमों के तहत अमेरिकी विदेश मंत्री किसी देश को आतंकवाद प्रायोजक की श्रेणी में रख सकते हैं जो…
(i). ‘ऐसी गतिविधियों में लिप्त पाए जाते हैं, जिनसे परमाणु हथियारों के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसार या किसी संगठन की मदद की बात साबित हो जाती है।’
(ii). ‘या उनकी ओर से असुरक्षित तौर पर परमाणु हथियारों के लेनदेन की बात सामने आती है।’
(iii). ‘या फिर किसी देश पर रासायनिक, जैविक या रेडियोएक्टिव हथियार बनाने के लिए किसी संगठन को मदद देने के पुख्ता सबूत मिल जाते हैं।’
अगर अमेरिका रूस को इस लिस्ट में शामिल करता है तो यह व्लादिमीर पुतिन की सरकार के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है। दरअसल, अमेरिका की ओर से आतंकवाद प्रायोजक देशों पर जो प्रतिबंध लगाए जाते हैं, वे सबसे सख्त प्रतिबंधों में आते हैं। इनसे रूस को आर्थिक तौर पर सबसे ज्यादा नुकसान हो सकता है, क्योंकि
(i). इसके तहत अमेरिका को अपने यहां रूस की किसी भी संपत्ति को जब्त करने का अधिकार होगा।
(ii). अमेरिका संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वीटो लगाकर ऐसे देशों को वर्ल्ड बैंक या अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से मिलने वाले फंड्स या कर्ज पर रोक लगा सकता है।
(iii). इसके अलावा इस श्रेणी में रखे गए देशों के निर्यातों पर रोक लगाया जासकता है। रूस इस वक्त दुनिया के बड़े रक्षा और तेल निर्यातकों में शामिल है।
(iv). अमेरिका आतंकवाद प्रायोजक देश के खिलाफ कार्रवाई करने के साथ उन देशों के खिलाफ भी कार्रवाई कर सकता है, जो प्रतिबंधों के दायरे में आए देशों से व्यापार जारी रखते हैं।
भारत इस वक्त रूस के सबसे बड़े व्यापार साझेदारों में से एक है। खासकर भारत का रक्षा, कूटनीतिक और ऊर्जा क्षेत्र अपनी कुछ बुनियादी जरूरतों के लिए रूस पर पूरी तरह निर्भर है। खासकर थल, वायु और नौसेना के मामले में तो भारत की रूस पर निर्भरता करीब 60-70 फीसदी तक है। फिर चाहे वह भारत के टी-72, टी-90 टैंकों की बात हो, जो कि भारत के टैंक बेड़े का करीब 90 फीसदी हैं। या फिर वायुसेना का, जिसकी अधिकतर स्क्वाड्रन आज भी रूस के सुखोई और मिग विमानों से ही सुसज्जित हैं। वहीं, नौसेना की सबमरीन से लेकर एयरक्राफ्ट्स तक, भारत का रक्षा क्षेत्र बीते सालों में लगभग पूरी तरह रूस के सहयोग से ही आगे बढ़ा है।
इसके अलावा स्पेस सेक्टर और तेल-गैस के क्षेत्र में भी रूस ही भारत की कई बुनियादी जरूरतों को पूरा करता है। पोलर सैटेलाइट लॉन्चिंग व्हीकल के क्रायोजेनिक इंजन से लेकर न्यूक्लियर रिएक्टर्स और मशीनरी तक भारत की निर्भरता आज भी रूस पर सबसे ज्यादा है। ऐसे में अमेरिका की तरफ से रूस पर इस तरह का प्रतिबंध सीधे तौर पर भारत के हितों के लिए बेहद नुकसानदेह साबित हो सकता है।
गौरतलब है कि अमेरिका ने अब तक जिन भी देशों को आतंकवाद प्रायोजक देशों की श्रेणी में डाला है, उनके साथ संबंधों को सुधारने में भारत कोई खास प्रगति नहीं कर पाया है। गौरतलब है कि एक दौर में भारत और क्यूबा के बीच द्विपक्षीय व्यापार करीब 30 करोड़ डॉलर्स का रहा है। हालांकि, बीते सालों में यह व्यापार महज पांच से आठ करोड़ डॉलर्स के बीच का रह गया है। क्यूबा में भारत के राजदूत डॉक्टर एस जनकिरामन की मानें तो दोनों देशों के बीच व्यापार समझौते के 50 करोड़ डॉलर्स तक जाने की क्षमता है।
अमेरिकी प्रतिबंधों से जिन देशों से भारत के रिश्तों पर असर पड़ा उनमें ईरान एक और बड़ा उदाहरण है। मार्च 2019 तक जहां भारत और ईरान के बीच व्यापार करीब 17 अरब डॉलर का था, वहीं अगले 10 महीनों के अंदर ही यह व्यापार महज दो अरब डॉलर का ही रह गया। इस घटते व्यापार की मुख्य वजह भी अमेरिका की ओर से ईरान पर लगाए गए प्रतिबंध ही रहे थे, जिसके चलते भारत को अपने तेल आयात को बंद करने पर मजबूर होना पड़ा।
इन दो उदाहरणों से साफ है कि अगर अमेरिका की ओर से रूस पर आतंकवाद प्रायोजक देश का ठप्पा लगाया जाता है, तो भारत की मुश्किलें काफी बढ़ सकती हैं। खासकर रक्षा क्षेत्र में तो भारत को नए विकल्प ढूंढने को मजबूर होना पड़ सकता है। हालांकि, यह मुश्किल है कि भारत अपने गैर-झुकाव वाले रवैये को तोड़ते हुए अमेरिका के दबाव में रूस से व्यापार को पूरी तरह बंद करेगा, लेकिन अगर ऐसा होता है तो उसे अमेरिका और यूरोपीय देशों के महंगे हथियारों और तकनीक पर निर्भर होना पड़ेगा।
अमेरिकी कानून की तीन धाराओं के तहत किसी भी देश को आतंकवाद प्रायोजक देश का दर्जा दिया जा सकता है, यह धाराएं हैं…
(i). अमेरिकी विदेश सहायता कानून, 1961 की धारा 620ए के तहत, जिससे अमेरिका द्वारा दी जाने वाली मदद को रोका जा सकता है।
(ii). आर्म्स एक्सपोर्ट कंट्रोल एक्ट (एईसीए) की धारा 40 के तहत, जिससे किसी भी देश पर हथियारों के लेन-देन, उधार और आर्थिक मदद को रोका जा सकता है।
(iii). एक्सपोर्ट्स कंट्रोल एक्ट यानी निर्यात नियंत्रण कानून की धारा 1754 (सी), जिसके तहत किसी भी देश से होने वाले निर्यातों को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जा सकता है। अमेरिका के विदेश मंत्रालय के मुताबिक, ऐसे देशों पर प्रतिबंध के लिए चार तरह की श्रेणियां हैं। इनमें पहला वर्ग है उन देशों का जिन्हें अमेरिका की तरफ से कोई आर्थिक मदद नहीं मिलती। इसके अलावा दूसरे वर्ग में रखे गए देशों के रक्षा निर्यातों और व्यापार पर रोक लगा दी जाती है। तीसरी श्रेणी में रखे गए देशों के उस तरह के उत्पाद निर्यात पर रोक लगाई जाती है, जिनका एक से ज्यादा कामों में इस्तेमाल हो सकता है। चौथे वर्ग में रखे गए देशों पर लगभग सभी तरह के आर्थिक और अन्य प्रतिबंध लगा दिए जाते हैं। इस श्रेणी में रखे गए देशों के साथ व्यापार करने वाले देशों पर भी प्रतिबंधों का प्रावधान होता है।

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