आयुर्वेद विश्वविद्यालय में प्राध्यापकों की पदोन्नति सवालों के घेरे में

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देहरादून। उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय को अस्तित्व में आए एक दशक बीत चुका है। इस बीच निजाम बदला पर अफसरों की कार्यशैली नहीं। विवि में हमेशा ही अनियमितताओं का बोलबाला रहा है। अब सीएजी के ऑडिट से विवि की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। ऑडिट टीम ने इस पर आपत्ति लगाई है और जवाब मांगा है। जवाब अनुकूल आया तो ठीक, वरना उत्तर अमान्य करार देकर रिपोर्ट में गड़बड़झाले की पुष्टि कर दी जाएगी।
विवि के प्रभारी कुलपति और कुलसचिव समेत अन्य प्राध्यापकों की पदोन्नति से सरकारी खजाने पर लाखों रुपये का अतिरिक्त बोझ डाला गया। पूर्व कुलसचिव डॉ. मृत्युंजय मिश्र के निलंबन के बाद विवि में एक-एक कर कई अनियमितताओं पर से पर्दा उठता चला गया, जिस पर शासन ने स्पेशल ऑडिट कराने का निर्णय लिया। सीएजी के ऑडिट में सामने आया कि विवि में प्रोफेसर व एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर योग्यता व अनुभव का नियम दरकिनार कर पदोन्नति की गई, जिससे सरकारी खजाने को 46.74 लाख रुपये चपत लगी।
भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद की अधिसूचना का हवाला देते कहा गया है कि प्रोफेसर के लिए 10 वर्ष, जबकि एसोसिएट प्रोफेसर के लिए कम से कम पांच वर्ष टीचिंग का अनुभव जरूरी है। पर आयुर्वेद विवि के मुख्य परिसर और ऋषिकुल व गुरुकुल कॉलेजों की पदोन्नति पत्रवली की जांच में अनेक अनियमितताएं सामने आई।
विवि ने 14 असिस्टेंट से एसोसिएट प्रोफेसर और चार एसोसिएट प्रोफेसर से प्रोफेसर की पदोन्नति करियर एडवांसमेंट स्कीम के तहत दी। जिन चार की प्रोफेसर के पद पर पदोन्नति की गई, उनके पास दस वर्ष से कम शिक्षण अनुभव है। इसी प्रकार 10 पदोन्नत एसोसिएट प्रोफेसर भी कार्य अनुभव की शर्त पूरी नहीं करते हैं। इस 14 शिक्षकों पर वेतन-भत्तों में 46 लाख रुपये अधिक खर्च कर दिए गए हैं।

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