देहरादून। उत्तराखंड में बाघों की बढ़ी तादाद के बावजूद ये आमजन के लिए कहीं भी खतरा नहीं बने। आंकड़े इसकी तस्दीक कर रहे हैं। पिछले तीन साल में 2019 ऐसा वर्ष रहा, जब बाघ ने जंगल से बाहर किसी भी व्यक्ति पर हमला नहीं किया। कार्बेट टाइगर रिजर्व में गश्त के दौरान तीन वनकर्मियों की मौत को छोड़ दिया जाए, तो प्रदेश में एक भी व्यक्ति की मौत बाघ के हमले में नहीं हुई। यह साबित करता है कि राज्य में बाघों के न सिर्फ मुफीद वासस्थल मौजूद हैं, बल्कि प्रबंधन की दिशा में प्रभावी कदम उठाए गए हैं। 2019 में बाघों को जंगल में ही थामे रखने और इनके हमले न होने से उत्साहित वन्यजीव महकमे ने अब 2020 में भी इसी रणनीति के तहत काम करने की ठानी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जुलाई 2019 में जब वर्ष 2018 की बाघ गणना के आंकड़े जारी किए तो तब उत्तराखंड में खुशी की लहर तो दौड़ी, मगर आशंका के बादल भी मंडराए। 2014 में यहां 340 बाघ थे, जिनकी संख्या 2018 में 442 हो गई। इनमें भी जितने बाघ कार्बेट व राजाजी टाइगर रिजर्व में हैं, उससे ज्यादा इन संरक्षित क्षेत्रों से बाहर। ऐसे में चिंता जताई जा रही थी कि बाघ मनुष्य के लिए खतरा साबित हो सकते हैं। साथ ही बाघों के वासस्थल और प्रबंधन को लेकर जानकार सवाल उठाने लगे थे।
2019 के अंत में जब वन्यजीवों के हमलों के आंकड़े जारी हुए तो बाघ इसमें बेदाग निकले। कार्बेट में गश्त के दौरान तीन वनकर्मियों पर बाघ ने हमले किए, लेकिन इसे छोड़ जंगल से बाहर राज्य में कहीं कोई हमला नहीं हुआ। राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक राजीव भरतरी कहते हैं कि बाघों के लिए यहां मुफीद वासस्थल हैं। साथ ही प्रबंधन को कई कदम उठाए गए। 2020 भी ऐसा ही गुजरे, इस हिसाब से कदम उठाए जा रहे हैं।