देहरादून। दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय में विस्तार की गुंजाइश ना के बराबर है। यह कमी न केवल सुविधा-संसाधन जुटाने बल्कि एमसीआइ के मानक पूरा करने में भी आड़े आ रही है। मेडिकल कॉलेज में नियमानुसार पोस्टमॉर्टम हाउस का निर्माण होना है, पर इसके लिए जगह का अभाव है। ऐसे में एमबीबीएस के छात्रों के लिए श्जुगाड़श् पर व्यवस्था चल रही है। उन्हें कोरोनेशन अस्पताल के पोस्टमॉर्टम हाउस में ले जाया जाता है। सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि मेडिकल कॉलेज के संसाधनों में किस कदम बिखराव है।
राज्य सरकार ने दून अस्पताल और दून महिला अस्पताल को एकीकृत कर मेडिकल कॉलेज में तब्दील किया था। जिसके बाद यहां एमसीआइ के मानकों के अनुरूप सुविधा-संसाधन जुटाए जा रहे हैं। पर जगह सीमित होने के कारण अस्पताल प्रशासन को इसमें भी कठिनाई आ रही है। स्थिति ये कि पांचवें सत्र की मान्यता के लिए 140 अतिरिक्त बेड तक की व्यवस्था कर पाना मुश्किल हो रहा है। इसके लिए प्रशासनिक भवन में व्यवस्था बनाई जा रही है। ऐसा ही कुछ पोस्टमॉर्टम हाउस के साथ भी है। कहने के लिए मेडिकल कॉलेज का अपना पोस्टमॉर्टम हाउस होना चाहिए, लेकिन इसके लिए कहीं जगह ही नहीं बन पा रही है।
बता दें, चिकित्सा शिक्षा के लिए आवश्यक पोस्टमॉर्टम का ज्ञान आवश्यक है। पोस्टमॉर्टम संबंधी समस्त प्रशिक्षण चिकित्सा शिक्षा के कार्यक्षेत्र फॉरेंसिक मेडिसिन में आता है। स्नातक स्तर पर मेडिकल कॉलेजों में फॉरेंसिक मेडिसिन एक अनिवार्य विषय है, जिसके अंतर्गत समस्त मानक स्थापित किए गए हैं। एमसीआइ के मेडिकल एजूकेशन अधिनियम-1997 के अनुसार, एमबीबीएस पाठ्यक्रम में अध्ययनरत छात्रों को फॉरेंसिक मेडिसिन विषय में प्रशिक्षण के लिए पोस्टमॉर्टम कार्य में उपस्थित रहना और पोस्टमॉर्टम हाउस की व्यवस्था होना अनिवार्य है।