शेख हसीना का बांग्लादेश को पैगाम, बोलीं- ‘मुझे न्याय चाहिए’, जानें और क्या कहा?

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शेख हसीना का बांग्लादेश को पैगाम, बोलीं- ‘मुझे न्याय चाहिए’, जानें और क्या कहा?
बांग्लादेश में तख्तापलट के दौरान भारत में शरण लेने वाली शेख हसीना ने न्याय की मांग की है। उन्होंने बांग्लादेश के लोगों के नाम एक पत्र लिखा है। भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में हाल ही में तख्तापलट देखने को मिला। यहां की प्रधानमंत्री शेख हसीना बहुत कम समय में देश छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी। वहीं देश छोड़ने के बाद पहली बार शेख हसीना ने बांग्लादेश के लोगों के लिए एक पैगाम भेजा है। दरअसल, शेख हसीना के नाम से एक लेटर सामने आया है, जो उनके बेटे ने अपने एक्स अकाउंट से शेयर किया है। इस लेटर के जरिए शेख हसीना ने न्याय की मांग की है। इसके अलावा शेख हसीना ने आवामी लीग के नेताओं, कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों के खिलाफ हालिया हिंसा को “आतंकवादी हमला” बताया। उन्होंने कहा कि ‘मैं मांग करती हूं कि बांग्लादेश में हाल की हत्याओं और बर्बरता में शामिल लोगों की उचित जांच की जाए और उन्हें दंडित किया जाए।’
उन्होंने लिखा, “भाइयों और बहनों, 15 अगस्त 1975 को बांग्लादेश के राष्ट्रपति बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की निर्मम हत्या कर दी गई थी। मैं उनके प्रति गहरा सम्मान रखती हूं। उसी समय मेरी मां बेगम फाजिलतुन्नेस्सा, मेरे तीन भाई स्वतंत्रता सेनानी कैप्टन शेख कमाल, स्वतंत्रता सेनानी लेफ्टिनेंट शेख जमाल, कमाल और जमाल की नवविवाहिता दुल्हन सुल्ताना कमाल और रोजी जमाल, मेरा छोटा भाई शेख रसेल, जो सिर्फ 10 साल का था, की निर्मम हत्या कर दी गई।”
उन्होंने आगे लिखा, “मेरे इकलौते चाचा स्वतंत्रता सेनानी लकवाग्रस्त शेख नासिर, राष्ट्रपति के सैन्य सचिव ब्रिगेडियर जमील उद्दीन, पुलिस अधिकारी सिद्दीकुर रहमान की निर्मम हत्या कर दी गई। स्वतंत्रता सेनानी शेख फजलुल हक मोनी और उनकी गर्भवती पत्नी आरजू मोनी, कृषि मंत्री स्वतंत्रता सेनानी अब्दुल रब सरनियाबाद, उनके 10 वर्षीय बेटे आरिफ 13 वर्षीय बेटी बेबी, 4 वर्षीय पोते सुकांत, भाई के बेटे स्वतंत्रता सेनानी पत्रकार शहीद सरनियाबाद, भतीजे रेंटू और कई अन्य लोगों की बेरहमी से मौत के घाट उतार द‍िया गया। 15 अगस्त को शहीद हुए सभी लोगों की आत्मा को शांति मिले और शहीदों को मेरी श्रद्धांजलि।”हसीना ने आगे लिखा, “जुलाई से अब तक आंदोलन के नाम पर हुई तोड़फोड़, आगजनी और हिंसा में कई लोगों की जान जा चुकी है। मैं उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करती हूं। मेरी संवेदनाएं उन लोगों के साथ हैं, जो मेरे जैसे अपने प्रियजनों को खोने के दर्द के साथ जी रहे हैं। मैं मांग करती हूं कि इन हत्याओं और तोड़फोड़ में शामिल लोगों की पहचान कर उन्हें सजा दी जाए।”
उन्होंने आगे लिखा, “प्यारे देशवासियो हम दो बहनों ने 15 अगस्त, 1975 को धनमंडी बंगबंधु भवन में हुई नृशंस हत्याओं की स्मृति रखने वाले उस घर को बंगाल के लोगों को समर्पित किया। एक स्मारक संग्रहालय बनाया गया था। देश के आम लोगों से लेकर देश-विदेश के गणमान्य लोग इस सदन में आ चुके हैं। यह संग्रहालय आजादी का स्मारक है। यह बहुत दुखद है कि जो स्मृति हमारे जीवित रहने का आधार थी, वह जलकर राख हो गयी है। हम आपकी सेवा कर रहे हैं, इसका उद्देश्य बांग्लादेश के पीड़ित लोगों के चेहरों पर मुस्कान लाना है, अपने प्रियजनों के नुकसान की याद को अपने दिलों में बसाए रखना है। इसका शुभ फल भी आपको मिलना शुरू हो गया है। बांग्लादेश विश्व में विकासशील देश का दर्जा प्राप्त कर चुका है।”