बीजेपी का गढ़ है गाजियाबाद लोकसभा सीट, यहां आसान नहीं अखिलेश-जयंत की राह

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बीजेपी का गढ़ है गाजियाबाद लोकसभा सीट, यहां आसान नहीं अखिलेश-जयंत की राह
गाजियाबाद लोकसभा सीट पर इस वक्त भाजपा का कब्जा है। यह ऐसी लोकसभा सीट है, जहां पर जातीय गणित फिलहाल बीजेपी के पक्ष में है। बीजेपी के लिए यह सीट जीतना इसलिए आसान है क्योंकि यहां की आबादी में मुस्लिम और दलितों का समर्थन किसी एक दल के साथ नहीं है।
लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कभी भी हो सकता है। सभी सियासी पार्टियां चुनावी अभियान में जोर-शोर से मिशन 2024 में जुटी हैं। इस बार के चुनावों में भी उत्तर प्रदेश की सीटों की अहम भूमिका होगी। ऐसे में हम यहां उत्तर प्रदेश की हाई प्रोफाइल गाजियाबाद सीट की जानकारी दे रहे हैं। गाजियाबाद लोकसभा सीट राजधानी दिल्ली से सटी हुई है इसलिए इस सीट को वीआईपी का दर्जा प्राप्त रहा है। यही कारण है कि इस सीट से चुनाव लड़ने के लिए सभी दल पूरी ताकत झोंकते हैं। गाजियाबाद को गेटवे ऑफ यूपी, यानि यूपी का दरवाजा भी कहा जाता है। इसका गठन मेरठ से अलग होकर 14 नवंबर 1976 को हुआ था। जिले का नाम ग़ाज़ी-उद्-दीन के नाम पर पड़ा माना जाता है। बाद में इसका नाम गाजियाबाद हो गया।
गाजियाबाद लोकसभा सीट पर इस वक्त भाजपा का कब्जा है। साल 2014 में यहां पर बीजेपी के दिग्गज जनरल विजय कुमार सिंह ने कांग्रेस के पुरोधा राज बब्बर को हराकर ऐतिहासिक जीत हासिल की थी, उस साल यह देश में बीजेपी की दूसरी सबसे बड़ी जीत थी। वीके सिंह ने कांग्रेस के उम्मीदवार
गाजियाबाद लोकसभा सीट ऐसी सीट है, जहां पर जातीय गणित फिलहाल बीजेपी के पक्ष में है। बीजेपी के लिए यह सीट जीतना इसलिए आसान है क्योंकि यहां की आबादी में मुस्लिम और दलितों का समर्थन किसी एक दल के साथ नहीं है। मुस्लिमों और दलितों का समर्थन कई दलों में बंटा होने से उसका फायदा बीजेपी को मिलता है। जातीय आंकड़ों पर भरोसा किया जाए तो अखिलेश यादव और जयंत चौधरी के लिए यहां से जीत हासिल कर पाना बेहद मुश्किल है।गाज़ियाबाद लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत यहां 5 विधानसभा क्षेत्र आते हैं, जिनके नाम लोनी, मुरादनगर, साहिबाबाद, गाज़ियाबाद और धौलाना है। यहां की 72 प्रतिशत आबादी हिंदू और 25 प्रतिशत जनसंख्या मुस्लिम है। साल 2014 के चुनाव में 2357553 वोटरों ने हिस्सा लिया था, जिसमें 43 प्रतिशत महिलाएं शामिल थीं।
2009 में परिसीमन हुआ। हापुड़ का कुछ हिस्सा मेरठ लोकसभा और कुछ भाग गाजियाबाद में आ गया। लोनी विधानसभा क्षेत्र को मिलाकर गाजियाबाद लोकसभा सीट का गठन कर दिया गया। 2009 में पहली बार गाजियाबाद लोकसभा सीट पर चुनाव हुए। उस समय बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने यहां से चुनाव लड़े। उन्होंने उस समय के मौजूदा सांसद कांग्रेस के सुरेंद्र प्रकाश गोयल को 90 हजार से अधिक वोटों से हराकर पहले सांसद बने।साल 2014 के लोकसभा चुनाव की बात करे तो तब देश में मोदी लहर आई थी। राजनाथ सिंह अपनी सीट बदलकर लखनऊ से लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला लिया। इसके बाद बीजेपी ने सेना से रिटायर्ड जनरल वीके सिंह को टिकट दिया। वीके सिंह ने कांग्रेस के उम्मीदवार और अभिनेता राजबब्बर को 5.67 लाख से भी अधिक मतों से चुनाव हराया।
साल 2019 लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा का गठबंधन था। बीजेपी ने एक बार फिर से वीके सिंह पर भरोसा जताया और उन्हें टिकट दिया। बीजेपी के वीके सिंह को 9 लाख 44 हजार 503 वोट मिले। वहीं गठबंधन प्रत्याशी समाजवादी पार्टी सुरेश बंसल को 4,43,003 वोट मिले थे। वीके सिंह ने करीब 5 लाख के अंतर से जीत दर्ज की थी। तीसरे नंबर पर कांग्रेस की डॉली शर्मा रही थी। 1,11,944 वोट मिले थे।
गाजियाबाद लोकसभा क्षेत्र की आबाजी 50 लाख से ज्यादा है। जातिगत समीकरण के मुताबिक यहां की करीब 70 फीसदी आबादी हिंदू है जबकि करीब 25 फीसदी मुस्लिम आबादी है। दलित और मुस्लिम गाजियाबाद में काफी निर्णायक रहा है। जिले में ब्राह्मण, वैश्य, गुर्जर, ठाकुर, पंजाबी और यादव वोटर भी हैं।लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी को यूपी की 80 सीटों में से 62 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। दो सीटों पर उसकी सहयोगी अपना दल सोनेलाल ने जीत दर्ज की थी। इसके अलावा 16 सीटों पर बीजेपी को शिकस्त का सामना करना पड़ा था। इनमें से 10 सीटों पर बसपा, पांच सीटों पर समाजवादी पार्टी और एक सीट रायबरेली से कांग्रेस की सोनिया गांधी सांसद हैं। हालांकि बाद में रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी ने जीत हासिल की, जिसके बाद अब 14 सीटें रह गई हैं जिन पर गैर बीजेपी के सांसद हैं।
चुनाव आयोग ने 10 मार्च, 2019 को लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा की थी। चुनाव आयोग द्वारा 7 चरणों में 2019 के चुनाव कराए जाने की घोषणा की गई थी। ये चुनाव 11 अप्रैल से 19 मई तक चले थे। वोटों की गिनती 23 मई को हुई थी।

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