बाढ़ के पानी में डूबे वाराणसी के घाट, गलियों में हो रहे दाह संस्कार, पीएम मोदी ने जताई चिंता

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बाढ़ के पानी में डूबे वाराणसी के घाट, गलियों में हो रहे दाह संस्कार, पीएम मोदी ने जताई चिंता
केंद्रीय जल आयोग के अनुसार शुक्रवार की सुबह 8 बजे वाराणसी में गंगा नदी का जलस्तर
वाराणसी में भारी बारिश के बाद आई बाढ़ में गंगा घाट पर शिवलिंग को धोता एक श्रद्धालु।
वरुणा के किनारे बसे रिहायशी इलाकों में पानी घुसना शुरू हो गया है।जिला प्रशासन बाढ़ प्रभावित लोगों को राहत शिविरों में भेज रहा है।बनारस के अस्सी घाट से लेकर नमो घाट तक पूरी तरह डूब चुके हैं।
वाराणसी: देश की आध्यात्मिक राजधानी कही जाने वाली वाराणसी में गंगा और वरुणा नदी का जलस्तर बढ़ने से जनजीवन प्रभावित हो रहा है। शहर के हरिश्चंद्र और मणिकर्णिका घाटों के पानी में डूब जाने से शवों का दाह संस्कार आस-पास की गलियों में करना पड़ रहा है। हालात को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चिंता जताई है और जरूरी निर्देश दिए हैं। यहां के सभी घाट और आस-पास के निचले इलाके पानी में डूब गए हैं, जिससे तटवर्ती इलाकों में रहने वाले लोग विस्थापन को मजबूर हैं।
प्रधानमंत्री ने दिए हैं सहायता के निर्देश
एक अधिकारी ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में गंगा के बढ़ते जल स्तर और बाढ़ पीड़ितों के विस्थापन को लेकर गुरुवार को चिंता व्यक्त की और अधिकारियों को फोन कर राहत शिविरों में रह रहे लोगों को हर सम्भव सहायता प्रदान करने का निर्देश दिया। प्रधानमंत्री ने जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा और आयुक्त दीपक अग्रवाल को फोन कर राहत शिविर में रह रहे लोगों को हर सम्भव सहायता प्रदान कराने के लिए कहा और आवश्यकता पड़ने पर सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) से संपर्क करने का निर्देश दिया।
वाराणसी से सिंधिया घाट पर गंगा नदी के तब पर पानी में डूबा एक मंदिर।
लोगों को राहत शिविरों में भेजा जा रहा
केंद्रीय जल आयोग के अनुसार शुक्रवार की सुबह 8 बजे वाराणसी में गंगा नदी का जलस्तर चेतावनी बिंदु 70.262 से बढ़कर 70.86 मीटर पर पहुंच गया, जो कि खतरे के निशान 71.262 मीटर से महज 0.40 मीटर नीचे है। वरुणा नदी में भी जलस्तर उफान पर है। वरुणा के किनारे बसे रिहायशी इलाकों में पानी घुसना शुरू हो गया है। हालात को देखते हुए जिला प्रशासन बाढ़ प्रभावित लोगों को राहत शिविरों में भेज रहा है। राहत शिविरों में विस्थापित लोगों को खाने-पीने के साथ ही मेडिकल सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है।बनारस के कई इलाके पूरी तह जलमग्न
वाराणसी के तटवर्ती इलाकों में बाढ़ का पानी आ जाने से नगवा, सामने घाट, मारुति नगर, काशीपुरम, रमना आदि क्षेत्र जलमग्‍न हो गये हैं। सामने घाट निवासी वीरेंद्र चौबे ने बताया कि जैसे ही घरों में पानी घुसना शुरू हुआ, उन्होंने अपने परिवार को गांव भेज दिया पर खुद रुक कर मकान में रखे सामान की हिफाजत के लिए परेशानियों से जूझ रहे हैं। हुकुलगंज निवासी चंद्रकांत सिंह ने बताया कि हुकुलगंज और नई बस्ती में 100 से अधिक घर बाढ़ से प्रभावित हैं।
वाराणसी के दशाश्वमेघ घाट पर उफनती हुई गंगा नदी में नहाते लोग।
गलियों में हो रहा है शवों का दाह संस्कार
घरों में पानी लगने से काफी नुकसान हो चुका है। जिला प्रशासन बाढ़ से घिरे लोगों को राहत शिविर में ले जाने की तैयारी कर रहा है। गंगा के बढ़ते जलस्तर से अस्सी घाट से लेकर नमो घाट तक पूरी तरह डूब चुके हैं। इलाके के लोगों ने बताया कि हरिश्चंद्र घाट और मणिकर्णिका घाट पर पानी भर जाने से यहां शवदाह या तो आस-पास की गलियों या छतों पर करना पड़ रहा है। जगह कम होने से शवदाह करने आये लोगों को काफी इंतजार भी करना पड़ रहा है।
’40 बाढ़ राहत शिविर तय किए गए हैं’
जिलाधिकारी और आयुक्‍त ने सरैया, ढेलवरिया सहित अन्य बाढ़ राहत शिविरों का निरीक्षण किया तथा मौके पर मौजूद अधिकारियों को राहत शिविरों में रह रहे बाढ़ प्रभावित लोगों को किसी भी प्रकार की समस्या न होने देने का निर्देश दिया। जिला प्रशासन के अनुसार जिले में कुल 40 बाढ़ राहत शिविर तय किये गए हैं, जिनमे से अभी 11 बाढ़ राहत शिविर क्रियाशील हैं। बाढ़ राहत शिविर में गुरुवार तक कुल 280 परिवारों के 1290 लोग शरण लिए हैं, जिसमें 12 वर्ष से कम बच्चों की संख्या 382 और वृद्धों की संख्या 132 है।
भारी बारिश के बाद बाढ़ग्रस्त हुए एक घाट का नजारा।
‘जरूरी सुविधाओं की व्यवस्था की गई है’
प्रशासन ने दावा किया कि शिविर में रह रहे लोगों के खाने-पीने, साफ बिस्तर, शौचालय, मेडिकल सुरक्षा आदि की व्यवस्था की गयी है। शिविर में विभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों को तैनात किया गया है। प्रत्येक बाढ़ राहत शिविर पर उपजिलाधिकारी, अपर नगर मजिस्ट्रेट, तहसीलदार और नायब तहसीलदार को नोडल अधिकारी बनाया गया है। जनपद में राहत शिविरों के लिए कुल 40 मेडिकल टीम का गठन किया गया है। बाढ़ से प्रभावित होने वाले पशुओं के लिए भूसा की व्यवस्था की गयी है और राहत शिविरों में पशु चिकित्साधिकारी तैनात किये गये हैं।

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