बकरीद मनाने को लेकर CM योगी का बड़ा फरमान, कुर्बानी विवादित जगह पर हुई तो…
सीएम योगी ने कहा है, ”बकरीद के दिन कुर्बानी सार्वजनिक स्थल पर नहीं होनी चाहिए। इसके लिए जो जगह तय की गई हो या जहां पर होता आया हो वहीं पर होनी चाहिए। कुर्बानी विवादित जगह पर नहीं होनी चाहिए।”बकरीद मनाने को लेकर CM योगी का बड़ा फरमानविवादित जगह पर नहीं होनी चाहिए कुर्बानीबकरीद के दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है
इस साल बकरीद इसी महीने 10 जुलाई को मानई जाएगी। इस दिन होने वाली कुर्बानी को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बड़ा आदेश जारी किया है। सीएम योगी ने कहा है, ”बकरीद (Bakrid) के दिन कुर्बानी सार्वजनिक स्थल पर नहीं होनी चाहिए। इसके लिए जो जगह तय की गई हो या जहां पर होता आया हो वहीं पर होनी चाहिए। कुर्बानी विवादित जगह पर नहीं होनी चाहिए।”
फर्ज़-ए-कुर्बान का दिन है ‘बकरीद’
ईद-उल-ज़ुहा या बकरीद का दिन फर्ज़-ए-कुर्बान का दिन होता है। आमतौर पर हम सभी जानते हैं कि बकरीद के दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। मुस्लिम समाज में बकरे को पाला जाता है और उसे बकरीद के दिन अल्लाह के लिए कुर्बान कर दिया जाता हैं जिसे फर्ज-ए-कुर्बान कहा जाता है | हर साल इस दिन बहुत सारे बकरों की बली दी जाती है। लोग अपनी हैसियत के हिसाब से बकरे को खरीदते हैं और उसकी कुर्बानी करते हैं।
लाखों रुपये में बिक रहे बकरे
इस साल भी बकरीद को लेकर बाजार गुलजार हैं। बकरा पालने वालों की चांदी है। यह वह त्यौहार जब बाजारों में बकरों के दाम लाखों में पहुंच जाते हैं। बकरा पालन करने वाले किसान साल भर बकरों की खूब सेवा करते हैं, जिससे इस त्यौहार से पहले उन्हें बकरों के ऊंचे दाम मिल सकें। और हर बार होता भी ऐसा ही है। एक-एक बकरा लाखों में बिकता है। इस बार भी ऐसा ही हुआ। बकरीद पर कुर्बानी देने के लिए भोपाल में एक बकरा 7 लाख रुपए का बिका है। कोटा प्रजाति के इस बकरे का नाम टाइटन है। इस बकरे का रखरखाव करने वाले सैयद शाहेब अली ने दावा किया है कि यह देश का सबसे महंगा बकरा है जो घी, मक्खन और जड़ी-बूटियां खाकर तैयार हुआ है।
क्यों मनाते हैं बकरीद?
कुर्बानी की ऐसी दास्तान है जिसे सुनकर दिल कांप जाता है। हजरत इब्राहिम अल्लाह के हुक्म पर अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गए थे। हजरत इब्राहिम को लगा कि उन्हें सबसे प्रिय तो उनका बेटा है इसलिए उन्होंने अपने बेटे की ही बलि देना स्वीकार किया। हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी। जब अपना काम पूरा करने के बाद पट्टी हटाई तो उन्होंने अपने पुत्र को अपने सामने जिन्दा खड़ा हुआ देखा। बेदी पर कटा हुआ मेमना पड़ा हुआ था, तभी से इस मौके पर बकरे और मेमनों की बलि देने की प्रथा है।