सुप्रीम कोर्ट ने कहा है अगर आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थी की मेरिट अंतिम पायदान के सामान्य अभ्यर्थी से बेहतर है, तो वह सामान्य श्रेणी में सीट पाने का हकदार है। इस परिस्थिति में आरक्षित श्रेणी का अभ्यर्थी, सामान्य वर्ग यानी अनारक्षित श्रेणी में सीट की दावेदारी कर सकता है। वर्ष 2008 में राजस्थान में बीएसएनएल में टेलीकॉम टेक्निकल असिस्टेंट के पदों पर भर्ती निकाली गई थी। अन्य आरक्षित वर्ग (ओबीसी) के एक अभ्यर्थी ने याचिका दायर कर कहा था कि ओबीसी के दो अभ्यर्थियों की मेरिट सामान्य श्रेणी में आखिरी पायदान के अभ्यर्थी से अधिक है, इसलिए इन दोनों अभ्यर्थियों को सामान्य श्रेणी में नियुक्ति होनी चाहिए। उसके बाद जो जगह खाली हो, उसे आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों से भरा जाए। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि जब आरक्षित श्रेणी के दो अभ्यर्थियों को सामान्य श्रेणी में नियुक्त किया जाएगा, तो इस पर विवाद खड़ा नहीं होना चाहिए कि पहले से काम कर रहे सामान्य श्रेणी के दो व्यक्तियों को निकाल दिया गया। चूंकि वे काफी समय से काम कर रहे हैं, इसलिए उन्हें न निकाला जाए और आरक्षित श्रेणी की खाली सीटों पर आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों को ही नियुक्त किया जाए। इससे पहले जोधपुर के केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (सीएटी) ने ओबीसी के जिन दो अभ्यर्थियों की मेरिट सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों से अधिक थी, उन्हें सामान्य श्रेणी में नियुक्त करने के साथ ही आरक्षित श्रेणी की खाली सीटों को आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों से भरने के आदेश दिए थे।
न्यायाधिकरण के इस फैसले के खिलाफ बीएसएनएल ने हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की थी, जहां उसकी याचिका खारिज हो गई। जिसके बाद बीएसएनएल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी