कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए सख्त पाबंदियां लगाने वाले देशों में लोगों का मानसिक स्वास्थ्य, उन देशों की तुलना में खराब पाया गया है जिन्होंने वैश्विक महामारी को खत्म करने की दिशा में कदम उठाए हैं। ‘द लैंसेट पब्लिक हेल्थ’ पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में ऐसा दावा किया गया है। कनाडा में ‘साइमन फ्रेजर यूनिवर्सिटी’ के शोधकर्ताओं के नेतृत्व वाले एक दल ने अप्रैल 2020 से जून 2021 के बीच 15 देशों के दो सर्वेक्षणों के आंकड़ों का अध्ययन किया।
अध्ययन में देशों को दो श्रेणियों में बांटा गया
इस अध्ययन में देशों को दो श्रेणियों में बांटा गया। पहली श्रेणी में उन देशों को रखा गया जिन्होंने वैश्विक महामारी को खत्म करने की कोशिश की और दूसरी श्रेणी में उन देशों को शामिल किया गया जिनका उद्देश्य देश के भीतर संक्रमण के प्रसार को रोकना या कम करना था। वैश्विक महामारी को खत्म करने की कोशिश करने वाले देशों की सूची में ऑस्ट्रेलिया, जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया को शामिल किया गया। वहीं, संक्रमण को फैलने से रोकने की कोशिश में सख्त पाबंदी लगाने वाले देशों की सूची में कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली, नीदरलैंड, नार्वे, स्पेन, स्वीडन और ब्रिटेन को रखा गया।
दक्षिण कोरिया और जापान में इसलिए कम दिखा प्रकोप
दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देशों ने अंतरराष्ट्रीय यात्रा प्रतिबंध लगाने जैसी त्वरित और लक्षित कार्रवाइयां कीं। इससे कोरोना वायरस संक्रमण का प्रकोप वहां कम दिखा, इससे संक्रमण से मौत के मामले कम सामने आए और इससे लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव भी कम पड़ा।
कनाडा, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे संक्रमण को फैलने से रोकने की कोशिश करने वाले देशों ने यात्रा प्रतिबंधों में ढिलाई दिखाई और सामाजिक दूरी कायम करने, समारोह पर रोक लगाने और लोगों को घर तक सीमित करने की नीति पर अधिक जोर दिया। इन कदमों से ऐसे देशों में सामाजिक संबंध सीमित हो गए, जो मनोवैज्ञानिक परेशानियों का कारण बने