एजेंसी समाचार
इस्लामाबाद। देश में सियासी संकट के बीच पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने आज जनता को संबोधित किया। इस दौरान इमरान ने भारत और कश्मीर का जिक्र करने से लेकर अमेरिकी दखल पर भी बात की। इमरान ने कहा कि मैं रिकॉर्डेड नहीं बल्कि देशवासियों से लाइव बात कर रहा हूं। आज पाकिस्तान के लिए फैसले की घड़ी है। न झुकूंगा, न कौम को झुकने दूंगा। मैं आजाद विदेश नीति का पक्षधर हूं, मैं भारत या किसी से विरोध नहीं चाहता। अपने संबोधन में क्या-क्या कहा इमरान ने पढ़ें-
पाकिस्तान मेरे से सिर्फ पांच साल बड़ा
मेरे पाकिस्तानियों, मैं आपसे बड़ी अहम बात करना चाहता हूं। इसकी वजह ये है कि पाकिस्तान ऐसे मोड़ पर है, जब हमारे सामने दो रास्ते हैं और हमें कौन सा रास्ता लेना है। मैं चाहता हूं कि आज आपसे दिल की बातें करूं। मैं पाकिस्तान की पहली जेनरेशन था। पाकिस्तान मेरे से सिर्फ पांच साल बड़ा है। पाकिस्तान को एक इस्लामिफलाई रियासत बनना है। हमारे फाउंडिंग फादर्स ने लिखा था कि हमें मदीना की तरह की रियासत बनना है। मैंने अपने मैनिफेस्टो में लिखा था कि हमारे तीन मकसद रहेंगे- एक इंसाफ, दूसरा इंसानियत, तीसरा मकसद था खुद्दारी। एक मुसलमान कौम गुलाम नहीं हो सकती। सबसे बुरी चीज अल्लाह को लगती है कि जब आप किसी को भी अल्लाह की जगह पर रखते हैं। ये जो आप गुलामी करते हैं पैसे की, या किसी डर की यह इस्लाम में गलत है।
मैं अपनी कौम को किसी की गुलामी नहीं करने दूंगा
अगर अल्लाह मेरे में ईमान न डालता तो मैं राजनीति में ही क्यों आता। मैं जब स्कूल में था तो लोग पाकिस्तान की मिसालें देते थे। लेकिन पाकिस्तान को जिस तरह की जिल्लत मिली। मैं अपनी कौम को किसी की गुलामी नहीं करने दूंगा। जब मुझे तख्त मिला तो मैंने फैसला किया कि हमारी फॉरेन पॉलिसी आजाद होगी। इसका ये मतलब नहीं कि हम एंटी इंडिया या एंटी अमेरिका या एंटी यूरोप होंगे। हिंदुस्तान में जो मेरी दोस्ती थीं, वो क्रिकेट की वजह से थीं। इंग्लैंड मेरा दूसरा घर था। मैंने कभी किसी इंसानी मासरे की खिलाफत नहीं की। उनकी गलत पॉलिसी का जरूर विरोध करता हूं।
सबसे बड़ी गलती जनरल मुशर्रफ ने की
मैं इसी कमरे में था जब हमसे कहा गया था कि अगर हमने अमेरिका की खिदमत नहीं की तो वे जख्मी रीछ की तरह हमें ही न मार दें। तब मैंने कहा था कि 9-11 में पाकिस्तान का कोई हाथ नहीं था। मैंने कहा था कि हम दहशतगर्दी के खिलाफ हैं और हमें उनकी मदद करनी चाहिए। इसका क्या ये मतलब है कि हम अपनों को कुर्बान कर दें उनके लिए। सबसे बड़ी गलती जनरल मुशर्रफ ने की। हम अमेरिका के सहयोगी हैं और हम सोवियत के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं। यहां से कबायली गए और हमने उनकी हिमायत की। हमने उनसे कहा कि विदेशी अफगानिस्तान में जंग लड़ रहे हैं, हमें उसके खिलाफ जेहाद करना है। जब सोवियत चला गया तो वही अमेरिका जो हमारे साथ जंग लड़ रहा था, उसी ने हम पर प्रतिबंध लगा दिए।